Farmer key issues: किसानों की पुकार पर शिवराज सिंह सख्त, कृषि वैज्ञानिकों को 3 फसलों पर रिसर्च का दिया टारगेट

Farmer key issues: किसानों की पुकार पर शिवराज सिंह सख्त, कृषि वैज्ञानिकों को 3 फसलों पर रिसर्च का दिया टारगेट

कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने स्पष्ट किया कि कृषि की असली प्रयोगशाला खेत है और किसान ही इसके सबसे बड़े अनुभवी विशेषज्ञ हैं. इसी सोच के तहत ‘लैब टू लैंड’ अभियान शुरू किया गया, जिसके माध्यम से देश के 60 हजार से अधिक गांवों में वैज्ञानिकों की टीमें पहुंचीं और किसानों की जमीनी समस्याओं का आकलन किया. इसी फीडबैक के आधार पर पहले चरण में तीन प्रमुख फसलों सोयाबीन, कपास और गन्ने की चुनौतियों को चिन्हित किया गया.

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Farmer key issues: किसानों की पुकार पर शिवराज सिंह सख्त, कृषि वैज्ञानिकों को 3 फसलों पर रिसर्च का दिया टारगेटकृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान

विकसित कृषि संकल्प अभियान' की सफलता के बाद, केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किसानों की प्रमुख समस्याओं को खुलकर सामने रखा है. इस बात पर विशेष जोर दिया कि सरकारी दफ्तरों में बैठकर योजनाएं नहीं बनाई जा सकतीं. उन्होंने वैज्ञानिकों से आह्वान किया कि वे जमीनी अनुभव और किसानों के सीधे सुझावों के आधार पर ही आगे की अनुसंधान दिशा और एक ठोस रोडमैप तैयार करें. शिवराज सिंह चौहान, 'विकसित संकल्प अभियान' के तहत किसानों द्वारा दिए गए सुझावों और उनकी खेती से जुड़ी समस्याओं पर गहरी नज़र रख रहे हैं. वे इन सुझावों और समस्याओं को प्राथमिकता के आधार पर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के कृषि वैज्ञानिकों के लिए लक्ष्य के रूप में निर्धारित कर रहे हैं जिससे कि किसानों की समस्याओं का प्रभावी समाधान ढूंढा जा सके. उनका मनाना है इस पहल से किसानों को सीधे तौर पर लाभ मिलेगा क्योंकि उनकी ज़मीनी समस्याओं को वैज्ञानिक स्तर पर हल करने का प्रयास किया जा रहा है. 

किसानों की पुकार पर शिवराज सिंह का एक्शन

कृषि मंत्री चौहान ने स्पष्ट किया कि कृषि की असली प्रयोगशाला खेत हैं और किसान ही असली अनुभवी हैं. इसी सिद्धांत पर आधारित 'लैब टू लैंड' अभियान के तहत देश के 60 हजार से अधिक गांवों तक वैज्ञानिकों की टीमें पहुंचीं, जिससे जमीनी समस्याओं की पहचान हुई. अब, पहले चरण में इन तीन फसलों उन्होंने विशेष रूप से सोयाबीन में पीला मौजेक रोग, कपास में गुलाबी सुंडी कीट और गन्ने में लाल सड़न रोग को किसानों की सबसे बड़ी परेशानी बताते हुए इसे इस समस्या को रिसर्च के जरिए कृषि वैज्ञानिकों को जल्दी और प्रभावी समाधान खोजने का स्पष्ट निर्देश दिया. यह पहल किसानों को इन फसलों कीटों और बीमारियों से होने वाले भारी नुकसान से बचाने और देश में कृषि उत्पादन को बेहतर बनाने की दिशा में एक अहम और दूरगामी कदम माना जा रहा है.

पहले सोयाबीन संकट पर मंथन

किसानों के सुझावों के आधार पर शिवराज सिंह ने कहा कि सबसे पहले तिलहनी फसल सोयाबीन की गंभीर समस्याओं पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा. सोयाबीन मध्य प्रदेश, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में बड़े पैमाने पर खेती की जाती है लेकिन पीला मौजेक रोग से सोयाबीन फसल बुरी तरह प्रभावित होती है. यह रोग 50 से 90 प्रतिशत तक उपज को प्रभावित करता है, जिससे किसानों के लिए लागत निकालना भी मुश्किल हो जाता है. इस समस्या के समाधान के लिए 26 जून को भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान, इंदौर में आइसीएआर के कृषि वैज्ञानिकों और किसानों विचार-विमर्श किया जाएगा. इस समस्या के निदान के लिए और रिसर्च की की रूपरेखा तैयार की जाएगी.

कपास पर करें गहन शोध

विकसित कृषि सकल्प अभियान के दौरान किसानों के फीडबैक में सामने आया है कि गुलाबी सुंडी कीट कपास की फसल को भारी नुकसान पहुंचा रहा है, जिससे किसानों की आय प्रभावित हुई है. बीटी कपास की प्रभावशीलता कम होने से कीटनाशकों का उपयोग और लागत दोनों बढ़ गई है. क्योंकि  2022-23 से 2024-25 तक कपास उत्पादन में लगातार गिरावट (+336.60 से घटकर 306.92 लाख गांठ) दर्ज की गई है. इस पर काबू पाने के लिए केंद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान, क्षेत्रीय स्टेशन, कोयंबटूर में बैठक आयोजित की जाएगी ताकि उपज में कमी के कारणों का पता लगाया जा सके और उत्पादन बढ़ाने के लिए शोध का रोडमैप बनाया जा सके.

कृषि मंत्री गन्ना को लेकर गंभीर

गन्ने की लाल सड़न (रेड रॉट) बीमारी को सबसे विनाशकारी रोगों में से एक माना जाता है. पहले ही इस बीमारी ने  50 से अधिक बेहतरीन व्यावसायिक गन्ना किस्मों को अपनी चपेट में लेकर पूरी तरह से नष्ट कर दिया है, जिससे चीनी उद्योग को भारी नुकसान उठाना पड़ा है. वर्तमान में, यह रोग विशेष रूप से अधिक उपज देने वाली Co 0238 जैसी प्रमुख किस्मों को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है, जो किसानों और चीनी मिलों दोनों के लिए भारी आर्थिक क्षति का कारण बन रहा है. इस बीमारी का तेजी से प्रसार के कारण चीनी की रिकवरी में भारी गिरावट दर्ज की गई है. इस गंभीर चुनौती से निपटने के लिए केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक विशेष बैठक आयोजित करने की बात कही है. उन्होंने इस समस्या से निजात पाने के लिए कृषि वैज्ञानिकों को शोध की दिशा में स्पष्ट निर्देश देने का आश्वासन दिया है, ताकि इस विनाशकारी रोग पर नियंत्रण पाया जा सके और गन्ना किसानों और चीनी उद्योग को नुकसान से बचाया जा सके.

कृषि की असली प्रयोगशालाएं खेत 

कृषि मंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि अभियान के दौरान जो कुछ भी देखा, सुना और अनुभव किया गया, वे सिर्फ आंकड़े नहीं बल्कि देशवासियों, खासकर किसानों की आकांक्षाओं का सही दर्पण हैं. चौहान ने इस बात को रेखांकित किया कि भारत, अपनी छोटी जोत के बावजूद, अन्न के भंडार भर रहा है. उन्होंने 'विकसित कृषि संकल्प अभियान' से मिले एक बड़े सबक को साझा किया. उनका स्पष्ट मानना है कि सरकारी दफ्तरों में बैठकर योजनाएं नहीं बनाई जा सकतीं. इसलिए किसानों के अनुभव को वैज्ञानिक ज्ञान से जोड़ने और खेती में बेहतर परिणाम आएगे. कृषि मंत्री का मानना है कि इस अभियान के माध्यम से जो परिश्रम किया है, उसी के आधार पर कृषि के लिए भविष्य का रोडमैप तैयार किया जाएगा.

शिवराज सिंह चौहान ने यह भी बताया कि कृषि योजनाओं का बड़े पैमाने पर मूल्यांकन किया जाएगा. जो योजनाएं अप्रासंगिक हो चुकी हैं, उन्हें समाप्त कर नई, बेहतर योजनाएं लाने का प्रयास किया जाएगा. उन्होंने इस बात पर बल दिया कि रिसर्च भी किसानों की वास्तविक जरूरतों के हिसाब से ही होगा, ताकि जमीनी स्तर पर समाधान मिल सकें. यह किसानों के अनुभवों और जरूरतों को केंद्र में रखकर कृषि विकास की एक नई दिशा का संकेत है.

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