तेलंगाना के मशहूर बालानगर कस्टर्ड एप्पल या शरीफ या सीताफल को आधिकारिक तौर पर जियोलॉजिकल टैग (जीआई) टैग के लिए प्रस्तावित किया गया है. इसके लिए सोमवार को कृषि और बागवानी उत्पाद श्रेणी के तहत आवेदन दाखिल किया गया है. अगर इसे मंजूरी मिल जाती है तो यह जीआई दर्जा पाने वाली भारत की चौथी कस्टर्ड एप्पल किस्म बन जाएगी. साथ ही तेलंगाना की ओर से जीआई आवेदन करने वाली यह 19वीं किस्म होगी.
बालानगर शरीफा अपने मोटे छिलके, ज्यादा पल्प, कम बीज, प्राकृतिक मिठास और लंबी शेल्फ लाइफ के लिए मशहूर है. ये ऐसे गुण हैं जो इसे घरेलू प्रयोग के साथ ही साथ इंडस्ट्री उपयोग के लिए भी आदर्श बनाते हैं. इस फल को क्षेत्र की विविध कृषि-जलवायु परिस्थितियों से लाभ मिलता है. इसमें यहां के जंगल, घरेलू खेती और यहां होने वाला वृक्षारोपण भी शामिल हैं. अगर इसे जीआई टैग मिल गया तो फिर इसको ब्रांडिंग का फायदा मिलेगा. इससे घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी पहुंच बेहतर हो सकेगी. साथ ही साथ स्थानीय किसानों को भी सशक्त बनाया जा सकेगा और ग्रामीण विकास को बढ़ावा देने में भी मदद मिलेगी.
शरीफा की यह किस्म अन्य शरीफा किस्मों की तुलना में कम बीज होने के लिए जानी जाती है. कई लैब टेस्ट्स में यह बात साबित हुई है कि बालानगर किस्म में कई तरह के मिनिरल्स और पोषक तत्वों हैं जिसमें शुगर और बाकी ठोस पदार्थ भी शामिल हैं. इसके अलावा यह किस्म कई परिस्थितियों के अनुकूल होने के लिए भी जानी जाती है. एसकेएलटीजीएचयू के कुलपति डांडा राजी रेड्डी ने कहा कि यूनिवर्सिटी तेलंगाना की विरासत वाली बागवानी फसलों को संरक्षित करने के लिए प्रतिबद्ध है. आगे भी जीआई अप्लीकेशन की प्रोसेस, किसानों के साथ परामर्श के बाद आगे बढ़ाई जाएगी.
सुभाजीत साहा जो अक्सर प्रॉडक्ट्स के लिए जीआई टैग अप्लीकेशंस भेजते हैं, उन्होंने किसान संघों, पोमल किसान उत्पादक कंपनी लिमिटेड, बालानगर किसान उत्पादक कंपनी लिमिटेड और प्राथमिक कृषि सहकारी समिति की ओर से नाबार्ड (राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक) से इसे पेश किया है. साथ ही इसके लिए आर्थिक मदद भी मुहैया कराई है. श्री कोंडा लक्ष्मण तेलंगाना हॉर्टीकल्च यूनिवर्सिटी (एसकेएलटीएचयू) के वैज्ञानिक ने इसे आसान बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
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