विदेशी खरीदारों की कमजोर मांग के कारण सोयामील का निर्यात एक साल पहले के 11.71 लाख टन की तुलना में लगभग 19 प्रतिशत घटकर 9.50 लाख टन रह गया है. दूसरी ओर सोयामील का उत्पादन एक साल पहले इसी अवधि के 44.98 लाख टन के मुकाबले लगभग 10 प्रतिशत घटकर 40.64 लाख टन रह गया. उत्पादन में गिरावट का कारण घरेलू और विदेशी बाजारों से कमजोर मांग को बताया गया है.
सोयाबीन बाजार में जारी सुस्ती के कारण पेराई सुस्त रही है, जहां तिलहन की कीमतें न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के स्तर से नीचे बनी हुई हैं. अक्टूबर-फरवरी की अवधि में बाजार में आवक 66 लाख टन रही, जो एक साल पहले के 70 लाख टन से 6 प्रतिशत कम है. इस अवधि में सोयाबीन की पेराई 57 लाख टन से कम होकर 51.50 लाख टन रह गई.
व्यापार संस्था सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SOPA) के अनुमानों के अनुसार, पशु चारे के रूप में सोयामील की घरेलू मांग में भी कमी आई है. इसकी खरीद में 6.7 प्रतिशत की गिरावट देखी गई, जो पहले 29.50 लाख टन थी, वह 27.50 लाख टन रह गई. सोयामील का फूड सेगमेंट भी धीमा रहा, जिसकी खरीद 3.65 लाख तक रहने का अनुमान है, जो पिछले साल की इसी अवधि में 3.75 लाख टन थी.
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सोपा का अनुमान है कि फरवरी के अंत तक व्यापारियों और पेराई प्लांटों के पास 48.01 लाख टन स्टॉक है. सरकारी एजेंसियों के जरिये एमएसपी पर खरीद किए जाने के कारण, नेफेड और एनसीसीएफ के पास लगभग 20 लाख टन स्टॉक होने का अनुमान है. फ्रांस और जर्मनी जैसे यूरोपीय खरीदारों की मांग मजबूत बनी रही है, जबकि ईरान जैसे देशों से उठाव धीमा रहा. इस अवधि के दौरान फ्रांस सबसे बड़ा खरीदार रहा, जिसकी मात्रा 1.4 लाख टन से अधिक थी. उसके बाद जर्मनी 1.34 लाख टन और नेपाल 1.03 लाख टन से अधिक मात्रा में आयात किया.
सोयामील के आयातक देशों की लिस्ट देखें तो इसमें बांग्लादेश, वियतनाम, नेपाल, ईरान और जापान प्रमुख हैं. तेजी से बढ़ते बाजार की बात करें तो इसमें बांग्लादेश, वियतनाम और ईरान शामिल हैं. साल 023 में भारत से निर्यात होने वाले प्रोडक्ट में सोयामील का स्थान 67वां था. इससे समझा जा सकता है कि भारत के निर्यात में सोयामील भी अपनी एक भूमिका रखता है. देश में मध्य प्रदेश सोयाबीन उत्पादन में पहला स्थान रखता है.
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