हरियाणा में धान खरीद में गड़बड़ियों को रोकने के लिए सरकार सख्त हरियाणा में धान की खरीद जारी है और इस बीच राज्य में दूसरे राज्यों से धान मंडियों में लाए जाने की खबरें हैं. ऐसे में राज्य सरकार ने पारदर्शिता सुनिश्चित करने और असली किसानों के हितों की रक्षा के लिए बड़े स्तर पर कार्रवाई शुरू की है. पड़ोसी राज्यों से अवैध रूप से धान की एंट्री रोकने के लिए चेकप्वाइंट लगाए गए हैं, ताकि किसी भी तरह की धोखाधड़ी को रोका जा सके. लेकिन इसके अलावा भी राज्य सरकार की तरफ से कई कददम उठाए गए हैं. आइए आपको विस्तार से बताते हैं कि आखिर क्यों सरकार की तरफ से यह कार्रवाई हुई है और अब तक क्या गड़बड़ियां सामने आई हैं. साथ ही इस समस्या पर काबू पाने के लिए सरकार और जिला प्रशासन की तरफ से क्या-क्या कदम उठाए रहे हैं.
जहां कुछ कर्मी और अधिकारियों को पहले ही सस्पेंड किया जा चुका है तो वहीं मुख्यमंत्री ने इनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के आदेश भी दिए हैं ताकि पूरी जवाबदेही सुनिश्चित की जा सके. उन्होंने साफ कर दिया है कि राज्य सरकार किसी भी सूरत में खरीद प्रक्रिया में किसी तरह का कोई भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं करेगी.
26 अक्टूबर तक के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 54.79 लाख मिट्रिक टन धान के लिए गेट पास पूरे राज्य की अनाज मंडियों की तरफ से जारी किए जा चुके हैं. इनमें से 52.93 लाख मिट्रिक टन धान की खरीद पहले ही हो चुकी है. वहीं 10,000 करोड़ रुपये किसानों के अकाउंट में अब तक ट्रांसफर किए जा चुके हैं. मंडियों में खरीद प्रक्रिया सुचारू रूप से चल रही है और सरकार की तरफ से हर एक दाना खरीदने का वादा किसानों से किया गया है.
लेकिन जब पिछले दिनों जब करनाल की अनाज मंडी में धान की आवक में बेतहाशा इजाफा हुआ और मात्रा असाधारण तौर पर काफी ज्यादा हो गई तो अधिकारियों के कान खड़े हो गए. इसके बाद इस पूरे मामले की जांच शुरू की गई. इसमें कुछ चौंकाने वाले सच अधिकारियों के हाथ लगे. जहां फसल की कटाई में इस बार देरी हुई तो वहीं उपज इस बार पिछले साल की तुलना में कम थी. अधिकारियों को फर्जी गेट पास का शक हुआ. उन्हें इस बात की शंका हुई शायद अलग-अलग आईपी एड्रेस की मदद से कई फर्जी गेट पास जारी कर दिए गए हैं. इस फर्जीवाड़े ने ई-प्रोक्योरमेंट पोर्टल पर हो रही हेराफेरी की तरफ इशारा किया.
जो जांच हुई उसमें करनाल अनाज मंडी के तीन कर्मियों को सस्पेंड कर दिया गया. इन कर्मियों पर अनियमितताओं के आरोप लगे हैं. फिलहाल इनके खिलाफ जांच जारी है. डिप्टी कमिश्नर उत्तर सिंह ने स्पेशल टीमों का गठन किया है. ये टीमें धान की आवक के साथ ही खेतों में वास्तविक फसल उत्पादन को किसान के नाम के साथ वैरीफाई कर रही हैं. राज्य में दो इंटर-स्टेट चेकप्वाइंट्स बनाए गए हैं जो एक मंगलोरा और शेरगढ़ टापू पर हैं. ये दोनों ही जगहें उत्तर प्रदेश के बॉर्डर पर हैं.
इन नाकाओं को लगाने का मकसद यूपी से गैर कानूनी तरीके से राज्य में आ रहे धान को रोकना है. डीसी और एसपी गंगा राम पूनिया इन अनियमितताओं पर नजर रख रहे हैं ताकि पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके. नाका पर गाड़ियों की लंबी-लंबी लाइनें लगी हुई हैं जिनमें धान लदा हुआ है. अथॉरिटीज को शक है कि ये धान यूपी और दूसरे राज्यों से आया है जिसे हरियाणा में एंट्री देने से मना कर दिया गया है ताकि राज्य के किसानों की सुरक्षा हो सके.
सीएम सैनी ने सभी प्रशासनिक अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वो मंडियों की रेगुलर विजिट्स करते रहें. साथ ही उन्हें किसानों से बात करने के भी निर्देश दिए गए हैं. सीएम सैनी का मानना है कि ऐसा करके ही वास्तविक खरीद पारदर्शिता के साथ हो सकेगी. इसके साथ ही उन्होंने किसानों से भी बातचीत करने के निर्देश अधिकारियों को दिए हैं. सीएम सैनी की तरफ से अधिकारियों को यह आदेश भी दिए गए हैं कि वो धान लेते समय राइस मिल्स का फिजिकल वैरीफिकेशन करें. इस तरह से अधिकारियों को समय-समय पर धान के वास्तविक स्टॉक से जानकारियों को मैच करने के लिए भी कहा गया है. उन्होंने साफ कर दिया है कि किसी भी तरह की लापरवाही या फिर भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. ऐसा होने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी.
सूत्रों की तरफ से बताया गया है कि धान खरीद में धोखाधड़ी का पूरा नेटवर्क सुव्यवस्थित तरीके से चलाया जा रहा हे. इसमें कुछ व्यापारी, मिलर्स और बिचौलियेभी शामिल हैं. इनसाइडर्स की मानें तो ये सभी कुछ भ्रष्ट अधिकारियों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं. सूत्रों की मानें तो ट्रेडर्स सस्ता धान यूपी और पड़ोसी राज्यों से खरीदते हैं और फिर उसे गैरकानूनी तरीके से हरियाणा की मंडियों में भेज देते हैं. इसके बाद फेक फार्मर आईडी और फर्जी गेट पास के जरिये मंडी में इसे पेश कर देते हैं. कुछ अधिकारियों की तरफ से ऐसी एंट्रीज को पोर्टल के जरिये मंजूरी दी गई है ताकि पूरी प्रक्रिया को वास्तविक दिखाया जा सके.
गैरकानूनी तरीके से खरीदा गया धान इसके बाद राइस मिलर्स को सप्लाई कर दिया जाता है. ये मिलर्स इस धान को उनके पास मौजूद कस्टम मिल्ड राइस (CMR) के साथ एडजस्ट करके सरकारी संस्थाओं को बेच देते हैं. इस हेराफेरी की वजह से व्यापारियों और मिलर्स को 400 रुपये से 500 रुपये तक का फायदा प्रति क्विेटल तक होता है. जबकि सरकार को बड़ा घाटा सहने के लिए मजबूर होना पड़ता है. साथ ही किसानों को पेमेंट में देरी होती है और उन्हें उपज बेचने में भी बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.
विशेषज्ञों के अनुसार इस मसले को सुलझाने के लिए एक टेक्नोलॉजी आधारित ट्रांसपेरेंसी मॉडल को अपनाया जाए ताकि ऐसी अनियमितताओं को हमेशा के लिए खत्म किया जा सके. उन्होंने इसके लिए सैटेलाइट मैपिंग, फील्ड सर्वे, बारकोड-बेस्ड पास और रियल-टाइम ट्रैकिंग सिस्टम जैसी टेक्नोलॉजी को लागू करने की बात कही है. इसके अलावा, मंडियों और मिलों के बीच डेटा के क्रॉस-वेरिफिकेशन की सिफारिश की गई है. साथ ही कई विभागों के अधिकारियों की जवाबदेही तय करने और थर्ड पार्टी की तरफ से ऑडिट कराए जाने का भी सुझाव दिया गया है ताकि किसी भी गड़बड़ी को तुरंत पकड़ा जा सके.
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