गुजरात में प्राकृतिक खेती की बड़ी पहलगुजरात के किसानों के बीज प्राकृतिक खेती काफी तेजी से लोकप्रिय होती जा रही है. दरअसल, यहां के किसान पहले से ही इस कम लागत वाली तकनीक का लाभ उठा रहे हैं, जिसे सरकार द्वारा वित्तीय सहायता और अन्य उपायों का समर्थन मिलता है. राज्य सरकार की एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि देश में लगभग 22 लाख हेक्टेयर भूमि पर प्राकृतिक खेती हो रही है, जबकि अकेले गुजरात में 5.64 लाख किसान 2024-25 तक 2 लाख हेक्टेयर भूमि पर इस तकनीक को अपना चुके हैं. इस विज्ञप्ति में कहा गया है कि प्राकृतिक खेती किसानों की लागत कम करके रसायन-आधारित खेती की निर्भरता कम करना है. साथ ही मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार करके अधिक आय अर्जित करने में मदद करता है.
गांधीनगर जिले के लिम्बाडिया गांव के निवासी महेंद्रभाई पटेल ने सेवानिवृत्ति के बाद खेती शुरू की, लेकिन उन्होंने सामान्य रासायनिक तरीकों को नहीं अपनाया. महेंद्रभाई पटेल गौ-आधारित कृषि तकनीक का उपयोग करके सब्जियां, फल, मसाले और अनाज उगा रहे हैं. इससे उनकी आय में वृद्धि हुई है और उनकी भूमि की उर्वरता में सुधार हुआ है. पटेल ने कहा कि मैंने हाल ही में अपने खेत में प्राकृतिक खेती से मूंगफली और हल्दी बोई है. वो जैविक खाद 'जीवामृत' भी तैयार करते हैं. बता दें कि गुजरात सरकार इन गौ-आधारित सामग्रियों के लिए वित्तीय सहायता भी करती है.
अधिकारियों ने बताया कि प्राकृतिक खेती से खाद और कीटनाशकों पर खर्च कम होता है. किसान खुद जैविक खाद तैयार कर सकते हैं, जिससे उन्हें अतिरिक्त खर्च करने की ज़रूरत नहीं पड़ती. वहीं, प्राकृतिक खेती से उगाई गई सब्जियों और फलों की मांग भी बढ़ रही है. उन्होंने बताया कि बड़ी संख्या में लोग जैविक रूप से उगाई गई सब्जियों और फलों की ओर आकर्षित हो रहे हैं.
गुजरात राज्य योग बोर्ड के अध्यक्ष शीशपाल राजपूत ने कहा कि एक स्वस्थ आहार एक ऐसी चीज़ है जिसे हम अपना सकते हैं... जब हम प्राकृतिक भोजन को बढ़ावा देते हैं, तो हमें स्वास्थ्य मिलता है और किसानों को समृद्धि मिलती है. प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए गुजरात सरकार देशी गायों का पालन करने वाले किसानों को सालाना 10,800 रुपये की सहायता करती है. विज्ञप्ति में कहा गया है कि इसके अलावा, प्राकृतिक खेती सिखाने के लिए 6,031 मॉडल फार्म स्थापित किए गए हैं और इस वर्ष 2,100 और मॉडल फार्म स्थापित किए जा रहे हैं.
राज्य सरकार प्राकृतिक खेती को बढ़ाने के लिए 'विकास सप्ताह', 'कृषि महोत्सव' और 'प्राकृतिक खेती महोत्सव' जैसे कार्यक्रम भी आयोजित करती है. इन पहलों के माध्यम से किसानों से अपनी फसलों पर 'बीजामृत', 'जीवामृत' और 'घन-जीवामृत' का उपयोग करने का आग्रह किया जाता है. बीजामृत एक जैविक घोल है जो बीजों को फफूंद और जीवाणु जनित रोगों से बचाता है. यह गाय के गोबर और गोमूत्र जैसे मिश्रण से बनाया जाता है. जीवामृत एक तरल जैविक खाद है जो गाय के गोबर, गोमूत्र और गुड़ के मिश्रण से बनाई जाती है.
राज्य के पूर्व कृषि मंत्री राघवजी पटेल ने कहा कि एक महिला और एक पुरुष को 'कृषि मित्र' के रूप में प्रशिक्षित करके, हमने मास्टर ट्रेनर तैयार किए हैं. साथ ही तीन-तीन गांवों के समूह बनाए हैं. इन तीनों गांवों के किसानों को प्राकृतिक खेती के बारे में आवश्यक जानकारी और मार्गदर्शन दिया जा रहा है ताकि वे इसे अपना सकें. साथ ही अधिकारियों ने बताया कि प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों को ब्लॉकचेन तकनीक का उपयोग करके प्रमाण पत्र दिए जाएंगे. उनके उत्पादों को बेचने के लिए प्रसंस्करण और विपणन केंद्र स्थापित किए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि इन उत्पादों के लिए 'प्राकृतिक खेती भारत-प्रभा' नामक एक नया ब्रांड भी बनाया जा रहा है.
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