पंजाब के फरीदकोट में क्यों नाराज हैं किसान पंजाब जहां पर रोजाना पराली जलाने के मामले नए आयाम छू रहे हैं, वहां किसानों का एक कदम मुश्किलों के दोगुना कर सकता है. फरीदकोट के किसानों ने सरकार को नई चेतावनी दी है. किसानों ने राज्य सरकार को आगाह किया है कि अगर फसल अवशेष के गट्ठर तुरंत नहीं उठाए गए तो उन्हें मजबूरन खेतों में पराली जलानी पड़ जाएगी. किसानों का कहना है कि अवशेष हटाने में हो रही देरी के कारण गेहूं की समय पर बुवाई प्रभावित हो रही है और पूरी रबी फसल जोखिम में पड़ गई है.
अखबार ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार विरोध प्रदर्शित करने के मकसद से रविवार को किसानों के एक समूह ने कोटकपूरा क्षेत्र में पराली के एक छोटे ढेर को आग के हवाले कर दिया. साथ ही इन किसानों ने प्रशासन को खुली चुनौती दी कि चाहे तो उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करे. एक किसान ने कहा, 'मामले दर्ज करो हमें जेल में डाल दो, हमें कोई डर नहीं. सरकार जो करना चाहती है करे, लेकिन अगर पराली के गट्ठर नहीं उठाए गए तो हम अपने खेतों में ही इसे जलाएंगे.' उनका यह बयान बताता है कि पूरे जिले के किसानों का गुस्सा किस कदर बढ़ रहा है.
किसानों के अनुसार, धान की पराली को समेटने के लिए ठेकेदारों ने कई हफ्ते पहले ही गट्ठर तैयार कर दिए थे लेकिन बार-बार भरोसा दिलाए जाने के बाद भी अब तक उन्हें उठाया नहीं गया है. एक किसान ने बताया, 'हमने ठेकेदारों को भुगतान भी कर दिया है फिर भी गट्ठर हमारे खेतों में पड़े हैं. इस देरी से हमारी बुवाई का पूरा शेड्यूल बिगड़ गया है.' किसानों ने मांग की है कि सरकार तुरंत ज्यादा से ज्यादा संख्या में बेलर मशीनें तैनात करे. साथ ही सख्त निर्देश जारी करे ताकि सभी पराली गट्ठरों को समय पर उठाया जा सके.
गेहूं की बुवाई का समय तेजी से खत्म होता जा रहा है. किसानों का कहना है कि ऐसे में अब उनके पास कार्रवाई के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है. पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) के दिशा-निर्देशों के अनुसार, नवंबर का पहला हफ्ता गेहूं की बुवाई की अंतिम सीमा मानी जाती है. इसके बाद की अगर देरी होती है जो हर देरी से प्रति एकड़ किसान को करीब 10 किलो उपज का नुकसान हो सकता है. किसानों ने कहा, 'हम ऐसे नुकसान झेल नहीं सकते. हमारे खेतों को अब तुरंत खाली किया जाना जरूरी है.'
किसानों की परेशानी यहीं नही खत्म होती है. किसानों ने धान मिल मालिकों पर बड़े पैमाने पर शोषण का आरोप भी लगाया है. उनका कहना है कि मिल मालिक कई बहानों से प्रति क्विंटल लगभग 4 किलो की कटौती कर रहे हैं. किसानों ने इसे 'खुली लूट' करार देते हुए कहा कि यह सब मंडी बोर्ड की नाक के नीचे हो रहा है. उन्होंने सरकार से तुरंत हस्तक्षेप की मांग की है.
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