ट्रंप के टैरिफ से बहुत असर नहीं! सीफूड और बासमती एक्सपोर्ट पर विशेषज्ञों ने समझाया पूरा गुणा-गणित

ट्रंप के टैरिफ से बहुत असर नहीं! सीफूड और बासमती एक्सपोर्ट पर विशेषज्ञों ने समझाया पूरा गुणा-गणित

तिलहन, अरंडी का तेल, प्रोसेस्ड फल, मसाले और काजू जैसी अन्य चीजों के निर्यात में भी गिरावट देखी जा सकती है, क्योंकि कीमतें अधिक हैं और ब्राजील की ओर रुख हो रहा है, जिसका टैरिफ भारत से कम है. लेकिन जब सीफूड और बासमती चावल की बात आती है, तो विशेषज्ञों को टैरिफ के किसी बहुत खराब प्रभाव की आशंका नहीं है.

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ट्रंप के टैरिफ से बहुत असर नहीं! सीफूड और बासमती एक्सपोर्ट पर विशेषज्ञों ने समझाया पूरा गुणा-गणितअमेरिकी टैरिफ से सीफूड निर्यात पर असर हो सकता है

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप सरकार की ओर से लगाए गए टैरिफ से आगे चलकर झींगा जैसे कुछ भारतीय कृषि उत्पादों के निर्यात पर असर पड़ने की संभावना है. फिर भी कई विशेषज्ञों का कहना है कि दूसरे देशों की तुलना में भारत पर लगा टैरिफ अभी भी कम है, जिससे पता चलता है कि इसमें राहत मिलने की संभावना है और निर्यात पर बहुत अधिक असर नहीं होने वाला. 

एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, भारत ने वित्त वर्ष 2024 में अमेरिका को लगभग 1.9 अरब डॉलर का सीफूड निर्यात किया. अमेरिका को भारत के सीफूड निर्यात का बड़ा हिस्सा "वन्नामेई झींगा" के रूप में है. कुछ अनुमानों में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2024 में, भारत के झींगा निर्यात का लगभग 41 प्रतिशत अमेरिका गया, जो अब तक का सबसे बड़ा बाजार था. व्यापार सूत्रों ने कहा कि अब तक, भारत से निर्यात किए जाने वाले झींगा पर अमेरिका का लगाया गया अधिकतम टैरिफ लगभग 8 प्रतिशत था, जो 27 प्रतिशत के नए टैरिफ के बाद, काउंटरवेलिंग ड्यूटी (सीवीडी) आदि जोड़ने के बाद 45 प्रतिशत तक जा सकता है.

भारत पर क्या होगा असर

बासमती चावल और भैंस के मांस के बाद सीफूड भारत के सबसे बड़े कृषि निर्यातों में से एक है. बड़े पैमाने पर निर्यात किए जाने वाले अन्य कृषि उत्पादों में बासमती चावल प्रमुख है और अमेरिका हर साल भारत से इस किस्म के लगभग 300,000-350,000 टन चावल खरीदता है. 

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तिलहन, अरंडी का तेल, प्रोसेस्ड फल, मसाले और काजू जैसी अन्य चीजों के निर्यात में भी गिरावट देखी जा सकती है, क्योंकि कीमतें अधिक हैं और ब्राजील की ओर रुख हो रहा है, जिसका टैरिफ भारत से कम है. लेकिन जब सीफूड और बासमती चावल की बात आती है, तो विशेषज्ञों को टैरिफ के किसी बहुत खराब प्रभाव की आशंका नहीं है. नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने 'बिजनेस स्टैंडर्ड' को बताया, "टैरिफ में बदलाव के कारण अमेरिका को भारतीय सीफूड और बासमती निर्यात पर खराब प्रभाव प्रभाव के बजाय, मैं थोड़ा पॉजिटिव असर देख रहा हूं."  

एक्सपर्ट की खास सलाह

चंद का मानना ​​है कि सीफूड निर्यात के मामले में भारत के प्रमुख कंपटीटर देशों में थाइलैंड, वियतनाम और इंडोनेशिया जैसे देश शामिल हैं और इन देशों में टैरिफ में बढ़ोतरी भारत की तुलना में कहीं ज्यादा रही है. "इसलिए, ऐसा नहीं है कि बहुत कम दिनों में अमेरिका सीफूड का उत्पादन तेजी से बढ़ाएगा और अगर वे अपनी घरेलू क्षमताएं बनाना भी चाहते हैं तो इसमें समय लगेगा. ये नए टैरिफ अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए प्रोडक्ट को महंगा बना देंगे, जिससे मांग पर कुछ हद तक खराब असर पड़ सकता है, लेकिन यह अस्थायी होगा."

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भारत से अमेरिका को कृषि-रसायनों के निर्यात का भी यही हश्र हुआ. उद्योग के अनुमान के अनुसार, वित्त वर्ष 24 में भारत ने वैश्विक स्तर पर लगभग 5.5 अरब डॉलर मूल्य के कृषि-रसायनों का निर्यात किया, जिसमें से अमेरिका का हिस्सा 1.1 बिलियन डॉलर (20 प्रतिशत) था. यहां भी, उद्योग विशेषज्ञों ने कहा कि टैरिफ बढ़ने के बाद भारत (6 प्रतिशत) और चीन (24 प्रतिशत) के बीच टैरिफ अंतर और अधिक बिगड़ गया है, जिससे चाइनीज प्रोडक्ट की तुलना में थोड़ा अधिक कीमत होने के बावजूद भारतीय सामान और भी सस्ते हो गए हैं. 

झींगा निर्यात का क्या होगा

विशेषज्ञों का कहना है कि भारत अपने झींगा निर्यात के लिए चीन, यूरोप और पश्चिम एशिया जैसे बाजारों पर विचार करना शुरू कर सकता है. इनक्रेड इक्विटीज के नितिन अवस्थी ने कहा, "अमेरिका में झींगा बाजार पर इस तरह के उच्च टैरिफ का बड़ा असर हो सकता है और सुपरमार्केट में झींगा खत्म हो सकता है. लेकिन एक बार जब अमेरिकी किराना स्टोर में झींगा खत्म हो जाएगा, तो झींगा की कीमतें एडजस्ट हो जाएंगी." अखिल भारतीय चावल निर्यातक संघ के पूर्व अध्यक्ष विजय सेठिया ने कहा, "बासमती चावल के मामले में इसका असर दो-तीन महीने तक रह सकता है और उसके बाद चीजें सामान्य हो जाएंगी."

 

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