पत्ता देकर शादी का प्रपोजल! आपको यह बात मजाक जैसी लग रही होगी. हो सकता है यह बात किसी फैंटासी जैसी लग रही होगी. लेकिन ऐसा नहीं है. बिहार के पूर्णिया में सचमुच में लोग पत्ता देकर शादी का प्रस्ताव देते हैं. इसके लिए एक खास मेले का आयोजन होता है जिसका नाम है पत्ता मेला. इस मेले में कुंवारे लड़के लड़कियां खूब दिलचस्पी लेते हैं. बड़ी संख्या लड़के लड़कियां मेले में आते हैं. इनमें वो भी होते हैं जिन्हें किसी को प्रपोज करना होता है. इसी प्रपोजल के आधार पर शादी के दिन भी तय होते हैं. इस मेले का नाम इतना है कि बिहार ही नहीं बल्कि अन्य राज्यों के लड़के लड़कियां भी खूब शामिल होते हैं. खास बात ये कि मेले में लड़के और लड़कियां अपने मनपसंद को पान देकर शादी के लिए प्रपोज करते हैं.
पूर्णिया के बनमनखी अनुमंडल के देबोतर पंचायत के मलिनिया दियारा मगांव में यह मेला लगता है. हर साल अप्रैल महीने में यह मेला लगाया जाता है. यह मेला मुख्य रूप से आदिवासियों का होता है जिसमें लड़के और लड़की को अपनी पसंद से अपना जीवनसाथी चुनने की आजादी होती है. यूं कहें कि मेले में पसंद आई लड़की घर वालों की रजामंदी से लड़के के साथ चली जाती है. फिर दोनों की शादी जल्दी ही आदिवासी रीति रिवाज से करा दी जाती है. यही वजह है कि पूर्णिया के बनमनखी में लगने वाले पत्ता मेले का क्रेज न सिर्फ पूर्णिया बल्की बंगाल और झारखंड के अलावा नेपाल में भी है. मेले में पड़ोसी राज्य और नेपाल से भी लोग आते हैं.
पत्ता मेले की शुरुआत बैसाखी सिरवा त्योहार से होती है. मेले का इतिहास 150 साल से ज्यादा पुराना है. प्रेम और भक्ति की पराकाष्ठा को लांघने वाला यह मेला चार दिनों तक चलता है जो अभी जारी है. इस दौरान प्रसिद्ध पत्ता मेले को देखने बिहार, बंगाल, झारखंड और ओडिसा जैसे राज्यों के अलावा नेपाल के लोग भी पहुंचते हैं. लड़की ने लड़के का दिया पान का प्रपोजल मंजूर कर लिया तो फिर आपसी रजामंदी से लड़का उस लड़की को अपने साथ लेकर घर चला जाता है. फिर जल्द ही दोनों की आदिवासी रीति रिवाज से शादी हो जाती है जिसमें दोनों पक्ष के परिजन मौजूद रहते हैं.
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इस शादी में एक खास शर्त है. इस प्रस्ताव को तब मंजूर किया जाता है जब यह शादी आदिवासी परंपरा से होती है. यानी लड़के का प्रस्ताव लड़की मान जाती है तो दोनों की शादी आदिवासी परंपरा के मुताबिक होती है. इस परंपरा को कोई नहीं बदल सकता. शादी करने वाले जोड़े को प्रकृति को अपना आराध्य देव मानना होता है. वहीं मेले में पसंद करने के बाद विवाह से इनकार करने वालों के लिए आदिवासी समाज के विधान के मुताबिक कड़े दंड का प्रावधान है.
इस मेले का इंतजार न सिर्फ कुंवारों को होता है बल्की शिव के साधकों को भी बड़ी ही बेसब्री से इंतजार होता है. 150 साल पहले से यह मेला चला आ रहा है. इसमें महादेव और पार्वती की पूजा अर्चना की जाती है. इस दौरान मेले का खास आकर्षण 40 फीट लंबी बांस की बल्ली से बंधा शिवभक्त होता है. इस भक्त को अपनी भक्ति साबित करने के लिए 40 फीट की ऊंचाई से नीचे दिख रही धरती की परिक्रमा कराई जाती है. ऐसी मान्यता है कि पौराणिक समय में भगवान शिव और मां पार्वती को प्रसन्न करने के लिए मेले के दौरान चार दिनों तक पूजा-अर्चना की गई थी.
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इस परंपरा में भक्त और साधक तीन दिनों तक उपवास करते हैं. साथ ही बांस की बल्ली से बंधकर शिवभक्त अपनी भक्ति की अग्नि परीक्षा देते हैं. भक्त खुद को भगवान को समर्पित कर देते हैं. वहीं इस मेले के आयोजक पीतांबर टुड्डू कहते हैं कि यह मेला सत्य का प्रतीक है जो सालों साल से चला आ रहा है.
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