पंजाबी में मुख्यतः एक खास तरह की हास्य फिल्मों का चलन रहा है. लेकिन, ऐसा नहीं है कि पंजाबी में गंभीर फिल्में न बनी हों. पंजाबी साहित्य की तरह ही पंजाबी फिल्मों की भी एक समृद्ध परंपरा रही है. 1928 में बनी ‘अज्ज दिया धियां’ (आज की बेटियां) पंजाब अंचल की पहली मूक फिल्म थी जिससे प्रेरणा पाकर 1932 में ए के करदार ने पहली पंजाबी talkie बनाई जिसका नाम था ‘हीर रांझा’. इसके बाद पंजाबी फिल्म इंडस्ट्री ने न सिर्फ अपनी एक अलग पहचान बनाई बल्कि हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री को भी बहुत से उम्दा अभिनेता, फिल्म निर्माता और निर्देशक दिये. पंजाब के संगीत की तो हिन्दी फिल्मों में हमेशा से एक अमिट छाप रही है.
गुर्विन्दर सिंह (चौथी कूट), अनुराग सिंह (पंजाब 1984), हैरी भट्टी (रब्ब दा रेडियो) ऐसे कुछ निर्देशक हैं, जिन्होने पंजाबी सिनेमा को कलात्मक आयाम दिए. गुरिंदर चड्ढा, मीरा नायर और दीपा मेहता –पंजाब मूल की फिल्म निर्देशक हैं, जिन्होने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पंजाबी से परे अपनी एक अलग पहचान बनाई है.
हाल ही में कुछ युवा पंजाबी निर्देशक बहुत लोकप्रिय हुए हैं, जिनमें सिमरजीत सिंह, स्मीप सिंह, जगदीप सिद्धू और अंबरदीप सिंह के नाम अमूमन लिए जाते हैं. बहरहाल, ज़्यादातर पंजाबी फिल्में ग्रामीण पृष्ठभूमि पर तो बनी होती हैं. लेकिन उनमें किसानों और ग्रामीणों के मुद्दे अक्सर नहीं उठाए जाते. ये फिल्में प्रायः कॉमेडी होती हैं या पारिवारिक ड्रामा.
इन्हीं फिल्मों के बीच 2021 दिसंबर में अंबरदीप सिंह की एक फिल्म आई ‘तीजा पंजाब’. पंजाब के अबोहर में जन्में अंबरदीप सिंह एक अभिनेता, लेखक प्रोड्यूसर और निर्देशक हैं. उन्होने अपने कैरियर की शुरुआत में मशहूर हास्य कलाकार कपिल शर्मा के साथ भी दस साल काम किया, बहुत सी सफल पंजाबी फिल्मों के संवाद लिखे. ‘अंग्रेज़’ और ‘गोरियाँ नु दफा करो’ फिल्मों के संवाद और स्क्रीनप्ले के लिए उन्हें सम्मानित किया गया, तो फिल्म ‘लाहोरिये’ के लिए उन्हें पंजाबी में बतौर निर्देशक सर्वश्रेष्ठ पहली फिल्म के लिए फिल्मफ़ेयर पुरस्कार से नवाज़ा गया.
फिल्म निर्देशक अंबरदीप सिंह एक अच्छे संवाद लेखक हैं और असरदार हास्य बोध भी रखते हैं. ये फिल्म की कसी हुई स्क्रिप्ट और मज़ेदार संवादों से साबित हो जाता है. लेकिन बतौर अभिनेता वे इतना प्रभावित नहीं करते. बहरहाल फिल्म का कथानक दिलचस्प है और किसान से जुड़े कुछ अहम मुद्दों को हास्यपूर्ण तरीके से उठता है. ‘तीजा पंजाब’ (यानी तीसरा पंजाब) का नायक भगत एक मस्त मौला किसान है, जो ज़िंदगी और दुनिया को गंभीरता से नहीं लेता. वह अपने नशे की लत के लिए पैसों के बदले अपना वोट भी बेच सकता है और उसे अगर कोई पैसे दे, तो वह और लोगों को भी उस व्यक्ति के पक्ष में वोट डालने के लिए राज़ी कर सकता है.
उसके इसी लापरवाह रवैये का फ़ायदा उठाता है. गाँव का सरपंच, गाँव में एक अध्यापक भी है जो लगातार लोगों में जागरूकता जगाने, उन्हें एक जिम्मेदार नागरिक बनाने की कोशिश करता रहता है और कुछ लोग उससे प्रभावित भी हैं, जब सरपंच धोखे से भगत की ज़मीन पर भी कब्जा जमा लेता है तो भगत की पत्नी टूट जाती है. उसके लिए ज़मीन से ही सारे रिश्ते जुड़े होते हैं.
"सारे रिश्ते तो ज़मीन से ही थे. ज़मीन खत्म रिश्ते खत्म" भगत को तब होश आता है, जब उसकी पत्नी उनके बेटे के साथ उसे छोड़ कर चली जाती है. वह ज़मीन वापस लेने की कोशिश करता है तो उसे एहसास होता है कि वह एक षड्यंत्र का शिकार हो चुका है. इसी बीच तीन क़ानूनों के खिलाफ देश भर के किसानों का आंदोलन दिल्ली में शुरू हो जाता है.
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गांव के मास्टर जब लोगों को इस आंदोलन के बारे में बताते हैं तो गाँव के बूढ़े-बच्चे और औरतें भी फैसला करते हैं कि वे भी इस आंदोलन मे शामिल होने दिल्ली जाएंगे. भगत की पत्नी और बच्चा भी इन लोगों के साथ दिल्ली चले जाते हैं. इधर मास्टर के बढ़ते रसूख को देख कर सरपंच को असुरक्षा होने लगती है कि यही हाल रहा तो आगामी चुनावों में उसकी सरपंची चली जाएगी और मास्टर सरपंच बन जाएंगे. वह फिर एक षड्यंत्र रचता है और भगत को कहता है कि अगर वह गाँव वालों को आंदोलन से वापिस ले आए तो उसकी ज़मीन वापिस कर दी जाएगी. भगत एक बार फिर सरपंच के झांसे में आ जाता है और चल पड़ता है. दिल्ली के बॉर्डर पर, जहां हजारों किसान धरने पर बैठे हैं.
लेकिन गांव वालों को वापिस लौटने के लिए राज़ी करने की कोशिश में वह खुद किसान आंदोलन का एक सक्रिय कार्यकर्ता बन जाता है. उसे अपने साथी किसानों की दुर्दशा का पता चलता है और ये भी कि किस तरह उसका फ़ायदा उठाया जा रहा था. भगत को अपनी ज़मीन की एहमियत के साथ ही एकता और इंसानी रिश्तों की महत्ता का भी एहसास होता है. वह ना सिर्फ सरपंच की इच्छा के खिलाफ आवाज़ उठाता है, बल्कि अपनी ज़मीन को वापिस हासिल करता है और अपनी पत्नी और बच्चे का दिल भी दुबारा जीत लेता है.
भगत के जरिये एक पारिवारिक कहानी के साथ राजनीतिक और सामाजिक हालत और संदेश को कुशलता से पिरोया गया है. इस लिहाज से फिल्म का कथानक दिलचस्प है और अंत तक बांधे रखता है. नायक के जरिये किसान आंदोलन में आए तमाम उतार-चढ़ाव, मतभेद, अफवाहें और अंततः एकजुट होकर अहिंसापूर्ण विरोध करने का निश्चय –इन सभी को भी चित्रित करने का प्रयास किया गया है.
‘तीजा पंजाब’ से ज़ाहिर होता है कि अंबरदीप बहुत अच्छे अभिनेता नहीं. उनकी डायलॉग डिलीवरी कमजोर है लेकिन वे एक अच्छे संवाद-लेखक हैं। कुछ संवाद दिल को छू जाते हैं और देर तक उन दिनों की याद दिलाते रहते हैं, जब किसान गर्मी-सर्दी-बरसात की परवाह किए बगैर दिल्ली की सीमाओं पर अहिंसापूर्ण धरने पर बैठे थे. मसलन एक किरदार कनाडा से धरने पर बैठे अपने बूढ़े पिता को फोन करता है और कहता है, “पिताजी अब तो हम दोनों एक से ही हो गए हैं. मैंने सुना है जहां आप बैठे हो वहाँ तीसरा पंजाब बस गया है और मैं जहां हूँ उसे तो तीसरा पंजाब ही कहते हैं.”
फिल्म के अन्य अनुभवी अभिनेताओं के साथ निमरत खैरा का अभिनय भी लाजवाब है. लेकिन सबसे ज़्यादा प्रभावित करते हैं बाल कलाकार गुरतेज सिंह. ‘तीजा पंजाब’ मनोरंजक तरीके से किसानों और गाँव से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों को सामने लाती है. लोकतन्त्र में वोट और मतदान का महत्व, नशे की बुरी आदत का दुष्प्रभाव, किसान के लिए उसकी ज़मीन का महत्व और किसी भी समस्या के सामने एकजुटता, कभी हार ना मानने के जज़्बे और अहिंसापूर्ण विरोध की अहमियत.
फिल्म के रिलीज़ होने के बाद अंबरदीप सिंह ने इन्स्टाग्राम पर एक स्टोरी सांझा की थी कि किस तरह पंजाब के एक गाँव में आंधी-बारिश की वजह से फिल्म का सेट बर्बाद हो गया था. लेकिन गांव वालों और फिल्म की टीम ने मिल कर पूरे सेट को एक दिन में ही दुबारा खड़ा कर दिया था.
किसानों से संबन्धित तीन क़ानूनों को सरकार ने आखिरकार नवम्बर 2021 में वापिस ले लिया और इस तरह सबसे लंबा चलने वाला यह अभूतपूर्व किसान आंदोलन सफल हुआ. फिल्म ‘तीजा पंजाब’ रिलीज़ हुयी दिसम्बर 2021 में, कहना ना होगा कि यह फिल्म सुपर हिट साबित हुई. इसने विदेशों में भी अच्छा कारोबार किया. हालांकि यह फिल्म विशुद्ध कमर्शियल फिल्म है और कला की दृष्टि से औसत, लेकिन इसमें किसान आंदोलन के कुछ शॉट्स अविस्मरणीय हैं और चूंकि यह किसान आंदोलन पर बनी पहली फिल्म है, इसलिए यह हमारी समूहिक स्मृति में हमेशा ज़िंदा रहेगी. जब भी किसान आंदोलन और उसके अद्भुत जज़्बे का ज़िक्र किया जाएगा, ‘तीजा पंजाब’ को भी याद किया जाएगा.
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