MSP गारंटी कानून की मांग को लेकर देश की किसान राजनीति गरमाई हुई है. इस बीच किसान संगठनों की तरफ से किसानों को पेंशन दिए जाने की मांग भी की जा रही है. मजमून ये है कि किसान संगठन 60 साल की उम्र पार कर चुके किसानों यानी बुजुर्ग किसानों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करते हुए पेंशन देने की मांग कर रहे हैं.
इसी बीच केंद्र सरकार की तरफ से किसानों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए शुरू की गई पीएम किसान मानधन योजना अपने 5 साल पूरे करने वाली है. आज की पड़ताल इसी पर... जानेंगे कि ये योजना क्या है, कब और कैसे शुरू हुई. क्या पीएम मानधन योजना किसान संगठनों की तरफ से उठाई जा रही किसान पेंशन की मांग का समाधान है.
पीएम किसान मानधन योजना की शुरुआत 12 सितंबर 2019 को हुई थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रांची में आयोजित एक कार्यक्रम में इस योजना की शुरूआत की थी. इस योजना के बारे में बात करें तो ये याेजना किसानाें को पेंशन की गारंटी देती है. ये योजना 20 से 40 साल की उम्र वाले और दो हेक्टेयर तक जोत रखने वाले किसानों के लिए हैं. योजना के तहत ऐसे किसानों को कम से कम 20 साल और अधिकतम 42 साल तक 55 रुपये से 200 रुपये तक का मासिक अंशदान देना होता है. किसान, जब 60 साल की उम्र पार कर जाते हैं, तो योजना में शामिल किसानों को 3000 रुपये मासिक देने का प्रावधान किया गया है. हालांकि 2019 से शुरू हुई योजना से अब तक लगभग 20 लाख किसानों ने ही योजना में पंजीकरण कराया है.
ये योजना कैसे शुरू हुई. इसके बैकग्राउंड को समझते हैं. असल में 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में किसानों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करते हुए पेंशन देने का वादा किया था, जिसके तहत चुनाव जीतने के बाद मोदी सरकार ने इसे लागू किया, लेकिन किसान नेता और अखिल भारतीय किसान महासंघ (आईफा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डाॅ राजाराम त्रिपाठी दावा करते हैं कि उनके सुझाव पर ही बीजेपी ने किसानों को सामाजिक सुरक्षा देने के लिए अपने घोषणापत्र में किसानों को सामाजिक सुरक्षा देने के लिए किसान पेंशन को जगह दी थी.
डाॅ राजाराम त्रिपाठी बताते हैं कि 2019 के लोकसभा चुनाव में शिवराज सिंह चौहान बीजेपी चुनाव समिति के संयोजक थे. उनके नेतृत्व में समिति की एक बैठक राजनाथ सिंह के आवास पर हुई थी. इस बैठक में बीजेपी के आला नेताओं के साथ ही देश से 8 किसान नेता समेत कुल 24 लोगों को बुलाया गया था. डॉ राजाराम त्रिपाठी दावा करते हैं कि उन्होंने ही इस बैठक में किसानों काे सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए किसानों को पेंशन दिए जाने का सुझाव दिया था, जिसे बैठक में राजनाथ सिंंह ने अनुमोदित किया था और बीजेपी ने लोकसभा चुनाव के दौरान अपने घोषणापत्र में जगह दी.
2019 लोकसभा चुनाव के बाद 2024 का लोकसभा चुनाव भी संपन्न हो गया है. केंद्र में तीसरी बार नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए सरकार बनी है. तो वहीं किसानों को पेंशन का प्रावधान करने वाली पीएम किसान मानधन याेजना को भी 5 साल पूरे होने को है. इस बीच किसान आंदोलन में किसान पेंशन की मांग उठ रही है. ऐसे में सवाल ये है कि क्या पीएम मानधन याेजना किसान पेंशन की मांग का समाधान नहीं बन पाई है. इस सवाल काे दूसरी तरफ से देखें तो, जब पीएम मानधन योजना अस्तित्व में है तो आखिर क्यों किसान संगठन किसान पेंशन की मांग कर रहे हैं.
इस सवाल के जवाब में आईफा के संयोजक डाॅ राजराम त्रिपाठी पीएम किसान मानधन याेजना को चूचू का मुरब्बा बताते हैं. बकौल डॉ त्रिपाठी 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान किसान पेंशन को लेकर दिए गए सुझाव से उलट योजना शुरू की गई है. वह इस योजना को अव्यवहारिक बताते हैं. वह योजना की खामियां बताते हुए कहते हैं. पीएम मानधन योजना में 40 साल पार कर चुके किसानों को कोई फायदा नहीं है. ये योजना किसानों से नौकरीपेशा की तरह व्यवहार करती है, जिस तरीके से नौकरीपेशा से अंशदान लिया जाता है, उसी तरह किसानों से अंशदान लिया जा रहा है.
आईफा अध्यक्ष डॉ राजाराम त्रिपाठी कहते हैं कि मौजूदा वक्त में जो किसान 60 साल पार कर चुके हैं या 60 साल के पास हैं, उन्हें प्राथमिकता से पेंशन दी जानी चाहिए. इसके लिए अलग से किसान कल्याण कोष बनाया जाए. जिसमें एक निश्चित फंड रखा जाए और इस फंड से बुर्जुग किसानाें को दो से तीन हजार रुपये मासिक पेंशन दी जाए. इस व्यवस्था से ये ये योजना व्यवहारिक बन पाएगी.
डॉ त्रिपाठी कहते हैं कि बुर्जुग किसानों को अगर साल में 24 हजार रुपये दिए भी जाएं तो ये पैसा भी खेती और बाजार में ही जाएगा. वहीं ये समझना होगा कि सरकार किसान सब्सिडी पर जो पैसा खर्च कर रही है, उसे दूसरे तरीके से देने से किसानों की सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित हो सकेगी.
हालांकि किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट किसान पेंशन के विचार को ही नकारते हैं. वह कहते हैं कि सरकार आधारित समाज तरक्की नहीं कर सकता है. रामपाल जाट बताते हैं कि देश की व्यवस्था परिवार आधारित है. बेशक परिवार कमजोर हुए हैं, लेकिन परिवारों को अस्तित्व है. परिवार होते हैं तो पेंशन की जरूरत नहीं होती है. परिवार टूटते हैं तो पेंशन की जरूरत महसूस होती है. देश में परिवार व्यवस्था ठीक करने की जरूरत है. जनप्रतिनिधि और कर्मियों की पेंशन भी बंद कर देनी चाहिए.
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