नागलिंग के पेड़ को अंग्रेजी में कैननबॉल ट्री कहा जाता है. वहीं इस पेड़ का वैज्ञानिक नाम कौरौपीटा गियानेंसिस है. नागलिंग के फूल जायांग के ऊपर ऐसे फैलते हैं जैसे एक सांप ने शिवलिंग पर अपना फन फैला दिया हो. यही कारण है कि इस पेड़ को नागलिंग कहा जाता है. साथ ही इसके फल कैननबॉल की भांति दिखाई देते हैं. इसलिए इसे कैननबॉल ट्री के नाम से भी जाना जाता है. इसके फलों के कई औषधीय लाभ होते हैं. इसके अलावा, नागलिंग के फलों को चमगादड़ द्वारा बहुत पसंद किया जाता है.
हालांकि, पारिपक्व होने पर फलों से तेज दुर्गंध निकलने की वजह से लोगों द्वारा पसंद नहीं किया जाता है. वहीं ऐसा माना जाता है कि इस वृक्ष की उत्पत्ति दक्षिण अमेरिका में हुई थी. ऐसे में आइए नागलिंग के पेड़ के बारे में विस्तार से जानते हैं-
नागलिंग के पेड़ की ऊंचाई लगभग 3 मीटर होती है. वहीं पत्तियां शाखाओं के सिरों पर गुच्छों में होती हैं. इसके फूल गुच्छों में 80 सेंटीमीटर के आकार के होते हैं. इसके कुछ पेड़ों पर तब तक फूल लगते हैं जब तक कि पूरा तना गुच्छे से ढंक न जाए. साथ ही एक पेड़ पर प्रति दिन लगभग एक हजार से अधिक फूल मौजूद रहते हैं.
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फूल गुलाबी, बैंगनी, सफेद और पीले आदि रंगों का संयोजन होता है. इस वृक्ष की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि अचानक से सभी पत्ते पेड़ों से गिर जाते हैं और सात से 10 दिनों के भीतर, आ भी जाते हैं. पारिपक्व होने पर फलों से तेज दुर्गंध निकलता है. यही कारण है कि इसे प्रदूषण संकेतक वृक्ष भी कहा जाता है.
नागलिंग के बीज पशु-पक्षियों द्वारा फलों का सेवन करने के बाद फैलाए जाते हैं. दरअसल, जब फल जमीन पर गिरते हैं, तो फट जाते हैं, जिससे गुद्दा और बीज बाहर आ जाते हैं. कई जानवर गुद्दा और बीज का सेवन करते हैं, जिसमें पैक (Paca), घरेलू मुर्गियां और सूअर शामिल हैं. इसके सेवन से उनकी पाचन क्रिया मजबूत हो जाती है.
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वहीं नागलिंग वृक्ष के कई औषधीय लाभ भी हैं. पेड़ के अर्क का उपयोग हाई ब्लड प्रेशर, कैंसर, दर्द और सूजन के इलाज के लिए किया जाता है. यह आम सर्दी और पेट दर्द को भी ठीक करता है. यह त्वचा के स्वास्थ्य और घावों को ठीक करने में भी लाभकारी है. साथ ही मलेरिया और दांत दर्द में भी प्रभावी है.
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