सरसाें की बरसों पुरानी कहानी में एक बात सामान्य हो चुकी है. खाद्य तेल का संकट झेल रहे भारत में सरसाें किसानों को उनकी उपज का बेहतर दाम नहीं मिलता है. मसलन, सरसों के दाम (कोरोना काल को छोड़कर) हमेशा MSP से नीचे ही रहते हैं. ऐसे में सरसों किसानों को नुकसान में फसल बेचनी पड़ती है. कुछ ये ही हाल इस साल का भी है. सरसों के रिकॉर्ड उत्पादन के बावजूद सरसों किसानों के हिस्से बदहाली आई है. बदहाली का आलम ये है कि सरकारी हस्तक्षेप के बावजूद भी सरसों किसानों की परेशानियां बढ़ी हुई हैं. ऐसे में सरसों किसानों की मदद के लिए सरकारी हस्तक्षेप को बढ़ाने की जरूरत दिखाई पड़ती है. आइए इसी कड़ी में आज बात करते हैं सरसों किसानों की बदहाली, सरसों के दाम, सरकारी खरीद, सरकारी हस्तक्षेप की...
देश के सरसों किसानों की बदहाली वाली बरसाें पुरानी कहानी को समझने से पहले देश में खाद्य तेल संकट पर बात कर लेते हैं. असल में भारत में खाद्य तेलों की खपत की तुलना में तिलहनी फसलों का अनुपात कम है. इस वजह से देश खाद्य तेलों की अपनी घरेलू जरूरतों का 60 फीसदी से अधिक इंपोर्ट करता है.
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मसलन, भारत मलेशिया-इंडोनेशिया से पाम ऑयल, रूस-यूक्रेन से सूरजमुखी और ब्राजील से सोयाबीन तेल इंपोर्ट करता है. वहीं खाद्य तेल की घरेलू खपत की बात करें तो इसमें सरसों की सबसे अधिक 40 फीसदी की हिस्सेदारी है.
देश में खाद्य तेलों की कमी के बीच इस साल देश के किसानों ने सरसों का रिकॉर्ड उत्पादन किया है, लेकिन इसके बावजूद भी सरसों के दाम MSP से कम हैं. केंद्र सरकार ने साल 2024-25 के लिए सरसों का MSP 5650 रुपये क्विंटल घोषित किया हुआ है, लेकिन किसानों को इस साल 4500 से 5200 रुपये क्विंटल के बीच सरसों बेचने को मजबूर होना पड़ा है. वहीं सरकारी एजेंसियों ने इस साल सरसों की ऑल इंंडिया मॉडल कीमत 5300 रुपये प्रति क्विंटल दर्ज की हैं, जो सरसों के MSP से 6 फीसदी कम हैं.
विदेशों से इंपोर्ट होने वाले सस्ते खाद्य तेलों ने सरसों की चाल बिगाड़ी हुई है. असल में कच्चे पाम ऑयल, सोयाबीन, सूरजमुखी इंपोर्ट पर कोई शुल्क नहीं है. इसी तरह दिसंबर 2021 को रिफाइंड पाॅम आयल से इंपोर्ट् ड्यूटी 17.5 फीसदी से घटाकर 12.5 फीसदी कर दी गई थी, जिसकी समयावधि बीते दिनों 31 मार्च 2025 तक कर दी गई है. वहीं इसी साल 15 जनवरी को खाद्य तेल इंपोर्ट से एग्री सेस 20 फीसदी से घटाकर 5 फीसदी कर दिया गया है. इस वजह से विदेशों से सस्ते इंपोर्ट हो रहे खाद्य तेलों ने सरसों किसानों की मुश्किलें बढ़ाई हुई हैं.
MSP पर सरसों की खरीद को सरकारी हस्तक्षेप कहा जाता है. केंद्र व राज्य सरकारें पीएम अन्नदाता आय संरक्षण अभियान यानी पीएम आशा के तहत सरसों की MSP पर खरीद करती हैं. इस योजना के तहत कुल उत्पादन की 25 फीसदी सरसों समेत अन्य तिलहनी फसल MSP पर खरीदने का नियम है. इस सरकारी हस्तक्षेप से किसानों को MSP का भाव मिलता है और बाजार पर दबाब बनता है.
इसी कड़ी में नेफेड और एनसीसीएफ ने राज्य एजेंसियों के साथ मिलकर 20 मई तक 1.11 मिलियन टन सरसों की खरीद की है, जो कुल उत्पादन का 9 फीसदी है. ऐसे में नियमानुसार 16 फीयदी यानी 25 फीसदी टारगेट पूरा करने के लिए कई राज्याें में 15 जून तक खरीद की तारीख निर्धारित की गई है, लेकिन इस सरकारी हस्तक्षेप के बाद भी सरसों किसानों की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं.
सरसों की सरकारी खरीद की व्यवस्था जमीन में कितनी दुरस्त है ये किसी से छिपी नहीं है, लेकिन MSP पर सरसों की खरीद संबंधी सरकारी हस्तक्षेप वाले प्रयास दामों में सुधार के लिए ही किए जाते हैं, लेकिन ये सरकारी हस्तक्षेप बेअसर रहे हैं. हालांकि ये जरूर कहा जा सकता है कि सरसों को संभालने के लिए सरकारी हस्तक्षेप को बढ़ाने की जरूरत है, जो व्यवहारिक भी है. क्योंकि पीएम आशा के तहत MSP पर सरसों की 25 फीसदी खरीद की लिमिट को बढ़ाया जा सकता है. हालांकि इसके लिए केंद्रीय कृषि,वाणिज्य और वित्त मंत्री की समिति को मंजूरी आवश्यक होगी. नई सरकार को इसे प्राथमिकता में रखना चाहिए. वहीं राज्य सरकार को सरसों के तेल को पीडीएस में बंटवाना चाहिए. इससे हर घर को सरसों तेल मिलेगा और किसानों को उनकी फसल का वाजिब दाम...
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