Mithila Makhaan: अप्रवासी भारतीयों के घर लौटने की इच्छा और मखाने की खेती में किसानों के संघर्ष की कहानी

Mithila Makhaan: अप्रवासी भारतीयों के घर लौटने की इच्छा और मखाने की खेती में किसानों के संघर्ष की कहानी

नितिन ने लल्लनटॉप को दिए एक इंटरव्यू में बताया कि 2008 से ही उनके मन में ये विचार था कि वे अपने प्रदेश में रहकर, इसी की भाषा में फिल्म बनाएं. इससे एक स्थानीय फिल्म उद्योग शुरू हो सकता था,

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Mithila Makhaan: अप्रवासी भारतीयों के घर लौटने की इच्छा और मखाने की खेती में किसानों के संघर्ष की कहानीआप्रवासी भारतीयों के घर लौटने की इच्छा और मखाने की खेती में किसानों के संघर्ष का मार्मिक चित्रण

बिहार और झारखंड राज्य अपनी ऐतिहासिक विरासत के साथ साथ सांस्कृतिक और साहित्यिक सम्पदा के लिए भी एक विशिष्ट पहचान रखते हैं. फिल्म जगत की बात की जाए तो हिंदी, बांग्ला, भोजपुरी और अन्य भाषाओं में भी इन राज्यों से अनेक लोकप्रिय निर्देशक, फिल्म निर्माता और अभिनेताओं ने अपना अप्रतिम योगदान दिया है. यह बात अलग है कि अब सिर्फ भोजपुरी सिनेमा को ही बिहार का सिनेमा समझ लिया जाता है और बदकिस्मती से भोजपुरी सिनेमा, जो कभी कलात्मक नज़रिये से बेजोड़ माना जाता था, अब सिर्फ छिछोरे और अश्लील सिनेमा तक सिमट कर रह गया है. लेकिन इस बीच इस अंचल की एक अन्य महत्वपूर्ण भाषा मैथिली उपेक्षा का पात्र बन कर रह गयी जबकि मैथिली में भी एक समृद्ध और परिष्कृत कला और साहित्य का संस्कार रहा है, जो बहुत लोकप्रिय भी है.

यह भाषा बिहार, झारखंड और नेपाल में भी बोली जाती है. मैथिली में पहली फिल्म बनी थी 1965 में, जिसे बनाने वाले निर्देशक बंगाल से थे, नाम था फणी मजूमदार. फणी मजूमदार भी एक दिलचस्प और अद्भुत प्रतिभावान निर्देशक थे. उन्होंने न सिर्फ मैथिली, हिंदी, पंजाबी, मगही में फिल्में बनाई बल्कि सिंगापुर में मलय भाषा में भी फिल्म बनाई, जिसे 1955 में बर्लिन अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में गोल्डन बीयर के लिए नामांकित भी किया गया.

बहरहाल, मैथिली फिल्मों का संसार बहुत फल-फूल ना सका और दो-चार हिट फिल्मों के अलावा इस भाषा में बनी फिल्में अच्छा कारोबार नहीं कर सकीं. सस्ती भोजपुरी फिल्मों के चलन के बीच 2016 में एक मैथिली फिल्म आई ‘मिथिला मखान’(यानी मिथिला के मखाने. इस फिल्म ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई और इसे सर्वश्रेष्ठ मैथिली फिल्म के राष्ट्रीय पुरस्कार से भी नवाजा गया. बिहार और झारखंड से यह पहली फिल्म थी जिसे राष्ट्रीय पुरस्कार मिला.

फिल्म के बनने की कहानी दिलचस्प और चुनौतियों से भरी रही. मशहूर अभिनेत्री नीतू चंद्रा ने तमिल, तेलुगु और हिन्दी में हिट फिल्में देने के बाद सोचा कि क्यों ना वे अपने क्षेत्र बिहार की भाषा में फिल्म बनाएं. भोजपुरी फिल्मों के सस्ते मनोरंजन के बीच एक स्तरीय और गंभीर फिल्म बनाने का विचार उनके भाई नितिन चंद्रा का भी था.

नितिन चंद्रा दिबाकर बनर्जी जैसे अनेक दिग्गज निर्देशकों के साथ काम कर चुके थे और उनके मन में अपनी खुद की कहानी पर एक फिल्म बनाने की तीव्र इच्छा थी. 2008 में कोसी नदी में आई भयावह बाढ़ के दौरान नितिन बिहार और नेपाल की सीमा पर एक गैर सरकारी संस्था के साथ ग्रामीणों की मदद भी कर चुके थे.

नितिन ने लल्लनटॉप को दिए एक इंटरव्यू में बताया कि 2008 से ही उनके मन में ये विचार था कि वे अपने प्रदेश में रह कर, इसी की भाषा में फिल्म बनाएं. इससे एक स्थानीय फिल्म उद्योग शुरू हो सकता था, जिसमें स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर भी पैदा किए जा सकते थे. भोजपुरी में सस्ती फिल्मों का चलन सा हो गया था. मैथिली में अब भी एक भाषायी संस्कार बाकी था. लेकिन फिल्में बॉक्स ऑफिस पर रेंगती थी. तो निश्चय किया गया कि मैथिली में ही फिल्म बनाई जाए.

अब समस्या थी फंडिंग की. नीतू चंद्रा ने क्राउड फंडिंग शुरू की. किस्मत से सिंगापूर के उद्यमी समीर कुमार भी सहयोग के लिए राज़ी हो गए. कहानी गढ़ी नितिन चंद्रा ने – एक ऐसी कहानी जिसमें अपनी ज़मीन छोड़ कर जाने का दर्द हो और वापिस आकर अपने गांव-घर में बसने की ज़िद और संघर्ष भी. तीन-चार साल लगे कहानी को अंतिम रूप देने में. 2015 में इस फिल्म को कनाडा, नेपाल और भारत में शूट किया गया. यह इस प्रदेश की पहली ऐसी फिल्म थी जिसे तीन देशों में शूट किया गया. जहां कनाडा में इसे -45 डिग्री तापमान के दौरान फिल्माया गया, वहीं बिहार के गांव में 45 डिग्री की भीषण गर्मी में शूटिंग की गई.

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फिल्म के नायक क्रांति प्रकाश झा के गांव में उन्हीं के घर में शूटिंग की गई. नायिका अनुरिता झा ने खास इस फिल्म के लिए मैथिली सीखी. विलेन के रोल में थे पंकज झा, जो भोजपुरी और हिन्दी सिनेमा में एक परिचित चेहरा हैं. ‘मिथिला मखान’ के निर्माण में अनेक दिक्कतें आईं. ज़्यादातर दिक्कतें संसाधनों की थीं. एक मुकाम तो ऐसा भी आया जब फिल्म की टीम हतोत्साहित हो गई और बिहार में शूटिंग के बाद उन्हें लगा कि ये फिल्म कभी पूरी नहीं हो पाएगी. लेकिन यहां प्रोड्यूसर समीर कुमार का दृढ़ निश्चय काम आया. उन्होने कमर कस ली कि वे इस फिल्म को समय रहते खत्म करके राष्ट्रीय पुरस्कार के चयन के लिए भेजेंगे. उनका यही निश्चय रंग लाया और फिल्म न सिर्फ बन कर तैयार हुई बल्कि इसने राष्ट्रीय पुरस्कार भी जीता.

अब आते हैं फिल्म की कहानी पर. ‘मिथिला मखान’ कहानी है, मिथिलांचल के युवक क्रांति की जो टोरोंटो में काम करता है और भारत में अपने परिवार से मिलने आता है. यहां उसे एक पारंपरिक अनुष्ठान के लिए अपने गांव जाना पड़ता है. 23 साल बाद अपने गांव वापिस जाकर वह पाता है कि उसकी स्मृति में जो खुशहाल और चहल-पहल भरा गांव था. वह अब सूना हो गया है; उसके बचपन की जगहें धीरे-धीरे खत्म हो रही हैं. अपनी मां के कहने पर वह मैथिली से मिलता है जो एक आदर्शवादी युवती है. मैथिली गांव जाकर परंपरागत हस्तशिल्प के कारीगरों और उद्यमियों को बढ़ावा देना चाहती है. क्रांति को एक दिन पता चलता है कि उसके दादा जी मखाने की खेती करते थे और उनका एक भरा-पूरा उद्योग था, ‘मिथिला मखान प्राइवेट लिमिटेड’. लेकिन उनकी हत्या कर दी गई थी. बहुत ज़हनी कश्मकश के बाद क्रांति निश्चय करता है कि वह दादा जी के काम को फिर से शुरू करेगा, मखाने की खेती और उत्पादन करेगा.

मां के समझाने के बावजूद क्रांति गांव वापिस आ जाता है और खेती की शुरुआत करता है. लेकिन उसके रास्ते में एक बड़ी अड़चन है. ब्रह्मा सिंह, जिसका मखाना उत्पादन में वर्चस्व है. फिल्म की कहानी उन तमाम समस्याओं से क्रांति को जूझते दिखाती है, जो मखाने की खेती और उत्पादन के दौरान उसके सामने खड़ी होती हैं. फिल्म न सिर्फ मखाने की खेती में किसानों की दिक्कतों को हाइलाइट करती है, बल्कि आप्रवासी भारतीयों की लौटने की इच्छा, और लौट कर बसने के कटु यथार्थ को भी हृदयस्पर्शी तरीके से दिखाती है. उल्लेखनीय बात ये है कि यह किसी भी स्थिति को आदर्श रूप से पेश नहीं करती बल्कि वास्तविकता दिखाने का प्रयास करती है. यह अलग बात है कि इसमें निर्देशक और अभिनेताओं की सघन भावनाएं भी साफ झलकती हैं. यही इस फिल्म की खासियत है.

फिल्मांकन दिल को छू लेने वाला है और संवाद प्रभावपूर्ण. प्रोडक्शन के लिहाज से ‘मिथिला मखान’ किसी भी भोजपुरी फिल्म से बेहतर है और अंतरराष्ट्रीय मानदंडों पर खरी उतरती है. फिल्म का संगीत भी मधुर है और इसमें उदित नारायण, हरिहरन और सोनू निगम जैसे मशहूर गायकों ने कुछ अविस्मरणीय सुरीले गीत गाये हैं, जिनमें लोक संगीत का पुट एक अमित छाप छोड़ जाता है.

कलात्मक, भावात्मक नज़र से बेहतरीन और मिथिलंचल के मखाना किसानों की असलियत को बयान करती यह फिल्म राष्ट्रीय पुरस्कार तो पा गई लेकिन इस फिल्म को कोई डिस्ट्रीब्यूटर नहीं मिला. विद्या बालन, रितिक रोशन, मनोज बाजपेयी, नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी जैसे कई हिन्दी फिल्म सितारों ने ‘मिथिला मखान’ को प्रोमोट भी किया लेकिन अफसोस, इसे कोई ओटीटी प्लेटफॉर्म भी लेने को राज़ी नहीं हुआ.

एक बार फिर फिल्म निर्माताओं के दृढ़ निश्चय की परीक्षा हुई और उन्होने तय किया कि वे फिल्म के लिए अपना अलग ओटीटी प्लेटफॉर्म तैयार करेंगे. इस तरह जन्म हुआ bejod.in का, जहां 2020 में यह फिल्म रिलीज़ हुई और सब्स्क्रिप्शन पर आप यह फिल्म देख सकते हैं. लाखों लोगों ने इस फिल्म को देखा और सराहा भी. फिल्म की सफलता इस बात से ज़ाहिर होती है कि हाल में एक और मैथिली फिल्म इस प्लेटफॉर्म पर रिलीज़ हुई है ‘जैक्सन हॉल्ट’ जो एक थ्रिलर है. इस तरह से, ‘मिथिला मखान’ उन लोगों के अथक प्रयासों की कहानी भी है जो हर असफलता से जूझते हुए अपनी जड़ों से जुड़े रहना चाहते हैं.

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