कितने लोगों ने लौंगन फल का नाम सुना है? कम ही लोग होंगे जिन्होंने इस अनोखे फल का नाम सुना हो, देखा हो या इसे खाया हो. लेकिन आपको बता दें यह फल थाईलैंड और वियतनाम का मशहूर फल है. अब इसकी खेती भारत के कुछ हिस्सों में भी की जाती है. यह अनोखा फल अब बिहार के मुजफ्फरपुर में उगाया जा रहा है. इस फल में कई औषधीय गुण पाए जाते हैं. यह फल बिल्कुल लीची की तरह ही होता है. बस यह लीची की तरह लाल नहीं होता है. इस फल का स्वाद भी लीची की तरह से स्वादिष्ट और मीठा होता है. इसमें एंटी पेन और एंटी कैंसर तत्व पाए जाते हैं. ये सारे तत्व शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने का काम करते हैं.
आपको बता दें कि लौंगन के पेड़ में अप्रैल में फूल लगते हैं और जुलाई के अंत में यह फल पक कर तैयार हो जाता है. अगस्त के पहले सप्ताह में यह खत्म भी हो जाता है. लौंगन का फल लीची जैसा ही होता है. एक तरह से कह सकते हैं कि यह लीची कुल का ही फल है, जो खाने में मीठा होता है. लीची की तरह इसके पत्ते भी होते हैं. पेड़ भी वैसा ही होता है. बस यह लीची की तरह लाल और अंडाकार नहीं होता है. इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें लीची की तरह कीड़े नहीं लगते. लीची का सीजन समाप्त होने के एक माह बाद तक यह उपलब्ध होता है.
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लौंगन के फल को औषधीय गुणों से भरपूर माना जाता है. वैज्ञानिकों की मानें तो इसमें एंटी पेन और एंटी कैंसर तत्व पाए जाते हैं. इसमें कार्बोहाइड्रेट, कैरोटीन, विटामिन-के, रेटिनाल, प्रोटीन, फाइबर, एस्कॉर्बिक एसिड की मात्रा होती है. ये सारे तत्व शरीर की अलग-अलग जरूरतों को पूरा कर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं. वहीं इसकी एक पेड़ पर लगभग 1 क्विंटल की उपज होती है. 20 अगस्त से इसकी तुड़ाई शुरू होती है. लौंगन के फल में काफी मिठास होती है और यह नेचुरल स्वीटनर का भी काम करता है. लौंगन के पल्प, गूदे और बीज में कई औषधीय गुण मौजूद होते हैं. जिस वजह से इसका उपयोग कई तरह के औषधि बनाने में भी किया जाता है.
लौंगन की खेती लीची की तरह ही गड्ढे करके की जाती है. इसके लिए मई-जून में गड्ढे को तैयार किया जाता हैं और जुलाई में इसकी बागवानी होती है. इसके लिए आपको पौधे मुजफ्फरपुर लीची अनुसंधान केंद्र में मिल जाएंगे. एक साल पुराने पौधे को लेकर किसान इसकी खेती शुरू कर सकते हैं.
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