हमारे देश में पर्व त्योहारों का विशेष महत्व है. कहा जाता है कि त्योहार लोगों के बीच के आपसी मतभेद को हटाकर समाज में प्रेम और सौहार्द की स्थापना करते हैं. भारत में कई धर्म और समुदाय के लोग रहते हैं, जो वर्ष भर पूरे हर्षोल्लास के साथ त्योहार मनाते हैं. होली, दिवाली, ईद, दशहरा, क्रिसमस आदि हमारे प्रमुख त्योहारों में से हैं. इसके अलावा हिंदू धर्म में मान्यताओं को लेकर भी लोगों की भावनाएं जुड़ी रहती हैं. जिसको लेकर देश के लोग विशेष त्योहार मनाते हैं. उन्हीं में लोहड़ी और मकर संक्रांति भी शामिल हैं. ये त्यौहार देश के कई हिस्सों में मनाए जाते हैं. लेकिन, अधिकांश लोगों को इन त्योहार को मनाने की वास्तविक वजह नहीं पता है. आइए जानते हैं कि लोहड़ी और मकर संक्रांति मनाने के पीछे की वजह क्या है.
भारतीय लोग पौराणिक मान्यताओं और पूर्वजों के बनाए रीति- रिवाजों को बहुत महत्व देते हैं. इसके अलावा धार्मिक मान्यताओं का भी खूब सम्मान करते हैं. हिंदुओं में पौराणिक मान्यता के अनुसार जल, वायु, पृथ्वी, आकाश और अग्नि में देवताओं का वास होता है और ये इन्हें पूजते हैं. बात करें लोहड़ी की तो ये उत्तर भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है. ये त्योहार मकर संक्रांति से एक रात पहले मनाया जाता है. इस दिन लोग गली मोहल्लों में परिवार, पड़ोसियों और रिश्तेदारों के आग जलाते हैं और उसकी पूजा पाठ करते हैं, फिर पारंपरिक खाद्य पदार्थ गुड़, तिल, गन्ना, रेवड़ी आदि का भोग लगाते हैं. पारंपरिक लोक गीतों का भी बहुत महत्व है.
ये भी पढ़ें मकर संक्रांति में तिल और गुड़ का है विशेष महत्व, जानें इसके पीछे क्या है वजह
दरअसल लोहड़ी मनाने के पीछे लोगों की मान्यता है कि वे अग्नि देव को धन्यवाद देते हैं. लोगों का मानना है कि अग्निदेव उनके फसलों की रक्षा करते हैं जिससे लोगों को खाने के लिए अन्न मिलता है. साथ ही आने वाली फसलों के स्वागत और अच्छी उन्नति के लिए अग्नि देव से प्रार्थना करते हैं. लोहड़ी को लेकर कई पौराणिक कथाएं हैं. एक कथा के अनुसार कंस ने इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण को मारने के लिए लोहिता नामक राक्षसी को गोकुल भेजा था, जिसे श्री कृष्ण ने खेल-खेल में ही मार डाला था.
लोहड़ी के दिन दूल्ला भट्टी के बहादुरी की कहानी सुनाई जाती है. दूल्ला भट्टी पंजाब के रहने वाले थे. मुंगलों के शासन में हिंदू बेटियों को अमीर सौदैगरों के हाथों बेचा जा रहा था उस वक्त इन्होंने बेटियों की रक्षा की और उनका विवाह कराया था. तब उन्हें नायक की उपाधि मिली थी. लोहड़ी के दिन दूल्ला भट्टी की कहानी खूब सुनाई जाती है.
हिंदू रीति रिवाजों में मकर संक्रांति का विशेष महत्व है. देश के अनेक जगहों पर अलग- अलग तरीके से इस त्योहार को मनाने की परंपरा है. इस दिन तिल और गुड़ खाने और दान करने का विशेष महत्व है. इस दिन लोग गंगा स्नान करने भी जाते हैं. माना जाता है कि सूर्य जिस दिन राशि परिवर्तित कर धनु से मकर राशि में प्रवेश करते हैं. उस दिन मकर संक्रांति मनाई जाती है.
पौराणिक कथाओं में मकर संक्रांति के दिन सूर्य और शनि देव के मित्रता का जिक्र है. ये दोनों ग्रह लोगों की राशि में विशेष होते हैं. इसलिए मकर संक्रांति के दिन पूजा पाठ करने से का विशेष महत्व है. इस दिन से खरमास की समाप्ति होती है. नए बसंत के आगमन की तैयारी भी लगभग शुरू हो जाती है जो लगभग रबी की फसलें भी परिपक्व होने लगती हैं
पौराणिक कथाओं के अनुसार बता दें कि शनिदेव भगवान सूर्य और माता संवर्णा के पुत्र हैं होनों के बीच शत्रुता थी. मकर संक्रांति के दिन सूर्य और शनि देव ने आपसी द्वेष को त्याग कर मित्रता को अपनाया था.
मकर संक्रांति के साथ खेती का भी अदभुत कनेक्शन है. असल में दिसंबर और जनवरी के शुरुआती दिनों में रबी फसलों को जमने के लिए नमी की जरूरत होती है. ठंड, पाला और शीतलहर से फसलों को ये नमी मिलती है. 15 जनवरी के बाद से फसलों के बढ़ने का दौर शुरू हो जाता है. असल में फसलों को ग्रोथ के लिए आवश्यक रूप से ऊर्जा की जरूरत होती है. जो ऊर्जा धूप से मिलती है. मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरायण होते है. जिसका सीधा मतलब है कि इसी दिन के बाद से नमी कम होती है और सूर्य की रोशनी वायुमंडल में बढ़ती है, जो फसलों के लिए अच्छी होती है.
ये भी पढ़ें Land Reform: किसानों को जमीन के मामले में बड़ी राहत देने की तैयारी, विधेयक लाएगी सरकार
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today