पिछले आठ से दस दिनों से महाराष्ट्र के बीड जिले में हो रही मूसलधार बारिश ने न केवल जनजीवन अस्त-व्यस्त कर दिया है, बल्कि किसानों की उम्मीदों को भी पूरी तरह डुबो दिया है. जिले की कई नदियां उफान पर हैं, जिससे आसपास की हजारों हेक्टेयर कृषि भूमि जलमग्न हो गई है और फसलें पूरी तरह नष्ट हो गई हैं.
इस प्राकृतिक आपदा का सबसे भयावह पहलू यह है कि पिछले दो महीनों में बीड जिले में 25 किसानों ने आत्महत्या कर ली है. वहीं 1 जनवरी से अब तक यह संख्या 187 तक पहुंच चुकी है.
बीड तहसील के पांगर बावड़ी गांव में 65 वर्षीय किसान गहिनीनाथ सोपान पवार ने आत्महत्या कर ली. भारी बारिश से उनकी कपास और सोयाबीन की फसलें पूरी तरह बर्बाद हो गई थीं. ऊपर से बड़ौदा बैंक का 1.19 लाख रुपये का कर्ज उनके सिर पर सवार था.
उनकी बहू प्रियंका पवार ने बताया, "पिछले तीन सालों से बैंक का कर्ज चल रहा था, जिसे हर साल रिफाइनेंस करवाते थे. इस साल हालात इतने बिगड़ गए कि चुकाना संभव नहीं था. मेरी सास का एक्सीडेंट और खेती की तबाही ने सब कुछ बर्बाद कर दिया. अगर सरकार पहले कर्ज माफ कर देती, तो शायद मेरे ससुर आज जिंदा होते."
प्रियंका ने कहा, इस साल बारिश हुई और इस बारिश की वजह से खेतों में कुछ भी नहीं बचा. कपास, सोयाबीन, सब कुछ बर्बाद हो गया. अब क्या करें? मेरे भवनी ने यह आत्मघाती कदम उठा लिया. वह मुझसे पूछते रहे कि मैं कर्ज कैसे चुकाऊं. मैंने उनसे कई बार कहा कि कर्ज बढ़ता ही रहेगा, लेकिन आप शांत रहें. लेकिन उन्होंने वही किया जो उन्हें करना था. इसलिए सरकार को इन सब बातों पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए.
किसान के रिश्तेदार भीमा नाइकवाड़े ने भी सरकार से कर्ज माफी की मांग करते हुए कहा, "बहुत बारिश हुई है फसलें बची ही नहीं. मेरे भवनी (संबंधी) बहुत तनाव में थे. मैंने उन्हें समझाया, पर जब उम्मीद की कोई किरण न बचे तो लोग यही करते हैं."
बीड जिले के किसान सरकार से मांग कर रहे हैं कि
अगर गौर करें तो पता चलता है कि बीड जिले में किसानों की आत्महत्या का दौर जारी है. चौंकाने वाले आंकड़े सामने आ रहे हैं. दो महीने की अवधि में 25 किसान आत्महत्या कर चुके हैं. 1 जनवरी से आज तक 187 किसान आत्महत्या कर चुके हैं. इसलिए, किसान अब सरकार से जल्द से जल्द उनके कर्ज माफ करने की मांग कर रहे हैं.
अवधि | आत्महत्या की संख्या |
पिछले 2 महीने | 25 किसान |
1 जनवरी 2025 से अब तक | 187 किसान |
बीड जिले की यह स्थिति महाराष्ट्र और देश के किसानों की गहराती आर्थिक और मानसिक समस्याओं का प्रतीक बन गई है. यदि समय रहते सरकार ने कदम नहीं उठाए, तो यह संकट और भी भयावह रूप ले सकता है. किसानों को सिर्फ बारिश नहीं मार रही, बल्कि सरकारी अनदेखी भी उनकी जान ले रही है.
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