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खेसारी क्‍या साजिश का शिकार हो गई... 'दाल के अकाल' में अब माहौल बदलने की जरूरत है

खेसारी क्‍या साजिश का शिकार हो गई... 'दाल के अकाल' में अब माहौल बदलने की जरूरत है

असल में 15 नवंबर 1961 को महाराष्‍ट्र ने खेसारी दाल पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिसके बाद केंद्र सरकार की तरफ से अध्‍यादेश जारी हुआ. महाराष्‍ट्र के बाद 1963 में ओडिशा, 1964 में आंध्र प्रदेश, 1966 में असम, 1977 में यूपी, 1994 में कर्नाटक, 2000 में मध्‍य प्रदेश, 2003 में बिहार और 2004 में झारखंड ने खेसारी दाल पर प्रतिबंध लगाया.

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खेसारी दाल पर देश में माहौल बदलने की जरूरत है? खेसारी दाल पर देश में माहौल बदलने की जरूरत है?

खेसारी लाल भोजपुरी सिनेमा के चर्चित सितारे हैं. खेसारी लाल का असली नाम शत्रुघ्‍न कुमार यादव है, लेकिन इन्‍होंने एक पारंपरिक और प्रतिबंध झेल चुकी दाल पर रखे गए अपने उपनाम 'खेसारी' को ही अपनी पहचान बना लिया है, लेकिन इसके उलट भारत की ये पारंपरिक दाल खेसारी मौजूदा समय में अपनी वास्‍तविक पहचान और सम्‍मान वापस पाने के लिए जद्दोजहद करते हुए दिखाई दे रही है. खेसारी दाल की विशेषताओं के फलक को और अधिक बढ़ा करते हुए कहा जाए तो कहा जा सकता है कि खेसारी, दालों के गंभीर अकाल का सामना कर रहे भारत को दालों के मामले में आत्‍मनिर्भर बनाने का आधार बन सकती है, लेकिन खेसारी दाल का प्रतिबंध से अब तक का सफर देखा जाए तो ऐसा लगता है कि खेसारी साजिशों का शिकार हो गई है, जिससे उसको बाहर निकालने के लिए मौजूदा माहौल को बदलने की जरूरत है.

कैसी होती है खेसारी दाल

खेसारी दाल कैसी होती है. इस बात को समझना बेहद ही जरूरी है. क्‍योंकि खेसारी दाल पर प्रतिबंध की वजह से देश की बड़ी आबादी इसके बारे में नहीं जानती है. सीधे शब्‍दों में कहा जाए तो खेसारी दाल, अरहर की तरह दिखने वाली एक पीली दाल है, जिसकी खेती अभी भी पशुओं के चारे के तौर पर देश के कुछ चुनिंदा स्‍थानों पर होती है. खेसारी दाल के स्‍थानीय नामों के बारे में बात करते हैं तो पूर्वांचल में इसे लतरी कहते हैं. तो वहीं मराठी में लाख, लाखोड़ी कहा जाता है. वहीं बिहार, बंगाल और असम में इसका नाम खेसारी और खेसाड़ा है. खेसारी का वानस्पत‍िक नाम लेथाइरस सेटाइवस है, जबकि अंग्रेजी में इसे ग्रास पी कहा जाता है.  

कब लगाया गया प्रतिबंध और क्‍या थी वजह 

प्रतिबंध की वजह से खेसारी दाल के बारे में देश की आम जन को बहुत ही कम जानकारी है. असल में 15 नवंबर 1961 को महाराष्‍ट्र ने खेसारी दाल पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिसके बाद केंद्र सरकार की तरफ से अध्‍यादेश जारी हुआ. महाराष्‍ट्र के बाद 1963 में ओडिशा, 1964 में आंध्र प्रदेश, 1966 में असम, 1977 में यूपी, 1994 में कर्नाटक, 2000 में मध्‍य प्रदेश, 2003 में बिहार और 2004 में झारखंड ने खेसारी दाल पर प्रतिबंध लगाया. द‍िलचस्प बात यह है क‍ि इनमें से अध‍िकांश सूबों ने खेसारी दाल की ब्रिक्री और भंडारण पर तो प्रतिबंध लगाया, लेक‍िन खेसारी दाल को खाने और उगाने पर कोई रोक नहीं लगाई गई.  


खेसारी दाल पर प्रतिबंध की वजह असल में तंत्रिका संबंधी रोग लैथिरिज्म, न्यूरोलैथिरिज्म या कलायखंज की बीमारी है, जिससे निचले शरीर पर लगवा हो जाता है. इस दाल के सेवन से इस बीमारी के मामले सामने आए थे. असल में इस दाल में न्‍यूरो टॉक्‍सिन यानी ओडीपी की मात्रा अधिक होती है. इस वजह से इस दाल का सेवन अपंगता का कारण बनता है. 

खेसारी, अकाल, गरीबी और बीमारी का कनेक्‍शन 

खेसारी दाल से अपंगता, गरीबी और अकाल का सीधा कनेक्‍शन देखा गया है. वहीं इस दाल का गुण भी अकाल में बेहतर पैदावार देने का है. असल में खेसारी दाल से अपंगता का अंतिम मामला 1977 में इथोपिया में आया था. तब हुआ अकाल पड़ा था. वहीं मध्‍य प्रदेश में 1944 में फसल खराब होने पर खेसारी का लंबे समय तक प्रयोग करने वाले लोग इस बीमारी से ग्रसित पाए गए. असल में माना जाता है कि लंबे समय तक सिर्फ खेसारी दाल के प्रयोग से ये बीमारी पैदा होती है. वहीं ये माना जाता है कि अगर इस दाल का प्रयोग भिगा कर या अन्‍य दालों के साथ मिलाकर इसका प्रयोग किया जाए तो इससे कोई बीमारी नहीं होती है. आज भी कई आदिवासी इलाकों में इस दाल का सेवन किया जा रहा है. 

अब तीन राज्‍यों से हटा प्रतिबंध, देश भर में क्‍या हालात

मौजूदा समय में खेसारी दाल से महाराष्‍ट्र, छत्‍तीसगढ़ और बंगाल ने प्रतिबंध हटा दिया है. तीनों राज्‍यों में से सबसे पहले साल 2008 में प्रतिबंध हटाने वाले महाराष्‍ट्र शामिल था, जबकि महाराष्‍ट्र ने ही सबसे पहले प्रतिबंध लगाया था. वहीं ICMR, ICAR, CSIR और FSSAI की एक विशेषज्ञ समिति ने इसकी बिक्री और भंडारण पर प्रतिबंध हटाने की सिफारिश की थी. मसलन कम ओडीपी वाली किस्‍मों से प्रतिबंध हटाने की सिफारिश की गई थी, जिस पर केंद्र सरकार ने भी सहमति जताई थी, लेकिन अभी तक इसका कोई आदेश जारी नहीं किया गया है. हालांकि 2021 में FCI ने अन्‍य अनाजों में 2 फीसदी तक खेसारी दाल की मौजूदगी को स्‍वीकारा है. वहीं छत्‍तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2023 में कांग्रेस ने दोबारा सत्‍ता में आने के बाद खेसारी दाल की एमएसपी पर खरीद करने का वादा किया था.

दाल और प्रोटीन की कमी पूरी करेगी खेसारी

भारत समेत दुनिया के कई देश गंभीर जलवायु परिवर्तन संकट का सामना कर रहे हैं. तो वहीं भारत में दालों की कमी किसी से छिपी नहीं है. भारत बड़ी मात्रा में दाल इंपोर्ट करता है. ऐसे में खेसारी दाल भारत को दाल उत्‍पादन के मामले में आत्‍मनिर्भर बनाने में अहम योगदान निभा सकती है. तो वहीं बहुसंख्‍यक आबादी के लिए प्रोटीन की खुराक भी पूरी कर सकती है. असल में खेसारी दाल में 39 फीसदी प्रोटीन होता है. तो वहीं ये दाल बेहद ही सस्‍ती दाल है, जो ग्रामीण आबादी की प्रोटीन भरी खुराक का मुख्‍य आधार बन सकती है.

वहीं खेसारी दाल के उत्‍पादन की बात करें तो ये रबी सीजन में होने वाली फसल है, जो तीन महीने में तैयार हो जाती है और महाराष्‍ट्र, पूर्वी यूपी, बिहार,झारखंड, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक जैसे राज्‍यों में इसका उत्‍पादन होता है. प्रतिबंध से पहले खेसारी दाल का कुल उत्‍पादन 8 लाख टन के पास था, जो कुल दाल उत्‍पादन का 5 से 8 फीसदी था. ऐसे में फसल विविधिकरण के तौर पर खेसारी की वापसी एक तीर से कई निशाने कर सकती है.

खेसारी की वापसी को लेकर क्‍या कहते हैं कृषि वैज्ञानिक  

प्रतिबंध के बाद खेसारी दाल अपनी वापसी के इंतजार में हैं. खेसारी की वापसी को लेकर कानपुर स्‍थित भारतीय दाल अनुसंधान संस्‍थान के निदेशक डॉ जीपी दीक्षित कहते हैं खेसारी का प्रयोग अभी भी कई अनाजों में मिलावट के तौर पर हो रहा है. बेसन में खेसारी को मिलाया जा रहा है, लेकिन दाल के तौर पर वापसी के लिए देश की मेडिकल और न्‍यूट्रिश‍ियन लॉबी में सहमति नहीं बन पाई है, जबकि संस्‍थान और कृषि वैज्ञानिक खेसारी दाल की नई और बेहतर किस्‍में जारी करने को तैयार हैं. डॉ. जीपी दीक्षित कहते हैं कि खेसारी को लेकर, जो नेगेटिव माहौल बना हुआ है, उस वजह से खेसारी पर जो रिसर्च होनी चाहिए थी, वह नहीं हो पाई है.

वहीं खेसारी दाल से प्रतिबंध हटाए जाने को लेकर कानुपर स्‍थित चंद्रशेखर आजाद कृषि व प्रौद्योगिकी विश्‍वविद्यालय में एग्रोनॉमी के प्रोफेसर डॉ. अखिलेश मिश्रा कहते हैं कि खेसारी दाल बेहद ही पौष्‍टिक दाल है. आयुर्वेद में खेसारी को दवा कहा जाता है. अगर कम मात्रा में खेसारी का प्रयोग किया जाए तो ये भूख बढ़ाती है, हड्डियां मजबूत करती है. तो वहीं अधिक प्रयोग से पैराइलिसिस और कालायखंज का रोग होता है. वह कहते हैं कि भारत में दालों की कमी है. ऐसे में औषधीय महत्‍व वाली खेसारी का सीमित मात्रा में प्रयोग होना चाहिए. कई संस्‍थान खेसारी दाल की नई किस्‍में विकसित कर रहे हैं, लेकिन माहौल बदलने की जरूरत दिखाई पड़ती है.

क्‍या प्रतिबंध एक साजिश

खेसारी दाल भारत की पारंपरिक दाल रही है. आज भी आदिवासी इलाकों में इस दाल का उपयोग किया जा रहा है. लंबे समय से बेसन में खेसारी दाल की मिलावट की जाती है और आम घरों में वहीं बेसन प्रयोग किया जाता रहा है. मसलन, खेसारी को खाने का एक विशेष तरीका है, जिसके तहत खेसारी का प्रयोग अन्‍य दालों में मिला कर किया जा सकता है. मतलब, साफ है कि खेसारी के प्रयोग की अपनी एक आहार संस्‍कृति है, जिसकी तुलना अन्‍य दालों से नहीं की जा सकती है. ऐसे में प्रतिबंध को कई बार साजिश भी बताया गया है. 

अकेडमी आफ न्यूट्रीशन इम्प्रुव्हमेंट, नागपुर खेसारी दाल पर प्रतिबंध का विरोध करते हुए इसे साजिश बताता रहा है. अकेडमी के अध्‍यक्ष डॉ शांतिलाल कोठारी ने 90 के दशक में खेसारी को जहरीली साबित करने वाले को एक लाख रुपये ईनाम देने की भी घोषणा की थी. तो वहीं डॉ. कोठारी ने महाराष्‍ट्र सरकार से खेसारी दाल पर से प्रतिबंध हटाने की वकालत की थी. डॉ. शांतिलाल कोठारी पूर्व में कई बार कह चुके हैं कि खेसारी विदेशी साजिशों का शिकार हो गई.