केरल के 2,500 से ज्यादा मंदिरों में ओलियंडर फूल या अरली फूल को प्रसाद के रूप में चढ़ाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. ये सभी मंदिर दो मंदिर बोर्ड की ओर से संचालित किए जाते हैं. जबकि, दोनों मंदिर बोर्ड को केरल सरकार नियंत्रित करती है. मंदिर में फूलों को चढ़ाने पर रोक की वजह इसकी पत्तियां चबाने से एक युवती की मौत होना बताया जा रहा है. ओलियंडर का पौधा और फूल कई औषधीय खूबियों के साथ ही अपने जहरीले तत्वों के चलते दोनों वजहों के लिए प्राचीन काल से इस्तेमाल किया जा रहा है.
केरल के अलप्पुझा के पल्लीपाद में रहने वाली 24 साल की नर्स सूर्या सुरेंद्रन को गलती से ओलियंडर की पत्तियां चबाने से प्वाइजनिंग हो गई थी, जिसके बाद 30 अप्रैल को उनकी मौत हो गई. सूर्या सुरेंद्रन को यूके में नई नौकरी मिल गई थी और वह 28 अप्रैल को वहां जाने वाली थीं. 28 अप्रैल की सुबह उन्होंने अपने घर के बाहर लगे ओलियंडर पौधे की कुछ पत्तियां चबा लीं. सूर्या को कुछ देर बाद बेचैनी होने लगी और कई बार उल्टी भी हुई. इस दौरान वह एयरपोर्ट के लिए निकल चुकी थीं. बाद में वह कोच्चि एयरपोर्ट बेहोश होकर गिर गईं, जिसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उनकी 30 प्रैल को मौत हो गई. फोरेंसिक सर्जन ने पोस्टमार्टम के बाद पुलिस को बताया कि ओलियंडर की पत्तियां चबाने से फैले जहर से सूर्या सुरेंद्रन की मौत हुई है.
नेरियम ओलियंडर एक छोटा वनस्पति पौधा है, जिसे ओलियंडर या रोज़बे या फिर अरली, कनाविरम के नाम से भी जाना जाता है. इसकी कई किस्में हैं जिनमें अलग-अलग रंग के फूल होते हैं. दुनिया भर में गर्म इलाकों में यह उगता है. ओलियंडर का इस्तेमाल सजावट के रूप में किया जाता है. जबकि, इसे राजमार्गों और समुद्र तटों के किनारे बाड़ के रूप में उगाया जाता है.
आयुर्वेद में इस्तेमाल की जाने वाली दवाओं की क्वालिटी, प्योरिटी देखने वाली सरकारी संस्था आयुर्वेदिक फार्माकोपिया ऑफ इंडिया (एपीआई) के अनुसार ओलियंडर की जड़ की छाल से बनाए जाने वाले तेस से स्किन से जुड़ी बीमारियों को ठीक किया जा सकता है. ओलियंडर पौधे का जिक्र कई आयुर्वेदिक ग्रंथों में भी है. रिपोर्ट के अनुसार कुछ आयुर्वेद छात्रों ने अपनी रिसर्च में इस पौधे को जहर के रूप में जिक्र किया है और कुष्ठ रोग समेत कई तरह की स्किन से जुड़ी बीमारियों के इलाज में लाभदायक बताया है.
ओलियंडर भले ही यह कुछ आयुर्वेदिक तत्वों के चलते फायदेमंद हो, लेकिन दुनियाभर में लंबे समय से इसके जहरीला होना माना जा रहा है. रिपोर्ट में बताया गया है कि इस पौधे का इस्तेमाल प्राचीन काल से इलाज के रूप में और आत्महत्या के साधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है. जबकि, इस पौधे और फूल को जलाने के बाद इसके धुआं भी नशीला हो सकता है. इसके जहरीले होने का कारण ओलियंड्रिन, फोलिनरिन और डिजिटोक्सिजेनिन सहित कार्डियक ग्लाइकोसाइड्स रसायन हैं. यह रसायन पौधे के सभी भागों में मौजूद होते है.न्यूयॉर्क के माउंट सिनाई अस्पताल की वेबसाइट के अनुसार इस पौधे के जहर के लक्षण 1 से 3 दिनों तक रहते हैं और अस्पताल में भर्ती करना पड़ सकता है और पीड़ित की मौत भी हो सकती है.
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