International Tea Day: वैसे तो भारत चाय उत्पादक देशों में दूसरे स्थान पर है, लेकिन चाय की खपत और लोगों का चाय के प्रति प्रेम यहां सबसे ऊपर है. यहां लोग सुबह की चाय के साथ उठते हैं और शाम का अंत भी चाय के साथ ही करते हैं. इतना ही नहीं, यहां के लोगों के लिए चाय किसी औषधि से कम नहीं है. सिर में दर्द हो या तबीयत ठीक न हो, लोग सबसे पहले चाय पीने के बारे में सोचते हैं. इन्हीं वजहों से भारत में चाय की मांग लगातार बढ़ती जा रही है. अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस के इस खास मौके पर आज हम बात करेंगे कि चाय की वो कौन सी वेरायटी हैं जो भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में राज कर रही हैं. इस खबर और रोचक बनाने के लिए आप एक कप चाय की प्याली के साथ इसे पढ़ें.
अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस का उद्देश्य विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्था और संस्कृति में चाय की प्रासंगिकता को उजागर करना है. यह दुनिया भर में चाय के क्षेत्र में बने रोजगार के अवसरों पर ध्यान केंद्रित करता है, जिसमें चाय किसान, एस्टेट कर्मचारी, व्यापारी और निर्यातक शामिल हैं. संयुक्त राष्ट्र ने 2019 से 21 मई को अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस के रूप में घोषित किया है. इसे चाय के उत्पादन और व्यापार के साथ-साथ इसके सांस्कृतिक महत्व को बढ़ावा देने के लिए शुरू किया गया था. यह दिन हमें चाय की हर कप में चाय की खेती में लगे लोगों की कड़ी मेहनत की याद दिलाता है और चाय की खपत में जिम्मेदार और प्रथाओं के बारे में जागरूकता बढ़ाता है.
चाय की दुनिया में अपने नाम का परचम लहराने वाली चाय की वेरायटी
कांगड़ा चाय का इतिहास 170 साल पुराना है. कांगड़ा चाय दुनिया में सबसे स्वादिष्ट मानी जाती है, वहीं इसका इस्तेमाल देश के विभिन्न हिस्सों के साथ-साथ विदेशों में भी हेल्थ ड्रिंक के तौर पर किया जाता है. इसके गुणों से लोग लगातार प्रभावित हो रहे हैं और महिलाओं में खूबसूरती बरकरार रखने में इसका इस्तेमाल दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है. वहीं हाइ बीपी समेत कई रोगों में भी चाय का इस्तेमाल बेहतर माना जाता है. हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा चाय को यूरोपियन यूनियन ने जीआई टैग दिया था. यह हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में पैदा होने वाली एक प्रकार की चाय है. इसे कांगड़ा घाटी में उगाई जाने वाली चाय की कैमेलिया साइनेंसिस प्रजाति की पत्तियों, कलियों और मुलायम तनों से बनाया जाता है. कांगड़ा चाय को भारत में वर्ष 2005 में ही भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग प्राप्त हो चुका है.
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भारत में चाय उद्योग भले ही ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की देन हो, लेकिन चाय खुद भारत में उनके आने से बहुत पहले से उगाई, तोड़ी, भिगोई और पी जाती थी. असम और अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में रहने वाले सिंगफो को भारत में मूल चाय पीने वाले माना जाता है. पारंपरिक सिंगफो चाय ऐसी है, जिसे चाय की पत्तियों (जंगल या घर में उगने वाली बिना कटी झाड़ियों से) को भूनकर, सुखाकर और बांस में पैक करके चूल्हे पर धुआं देकर बनाया जाता है. आज, इसे पुनर्जीवित करने के प्रयास हो रहे हैं. ताकि आने वाली पाढ़ियों तक ये चाय और इस चाय की खूबी पहुंच सके.
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उत्तराखंड अपनी प्राकृतिक सुंदरता, पहाड़ों और शुद्ध वातावरण के लिए जाना जाता है. लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि यहां की बेरीनाग चाय भी काफी मशहूर है. यह चाय न सिर्फ स्वाद में खास है, बल्कि सेहत के लिए भी फायदेमंद मानी जाती है. बेरीनाग, उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित एक पहाड़ी इलाका है. यह जगह चाय उत्पादन के लिए आदर्श मानी जाती है क्योंकि यहां की मिट्टी, मौसम और ऊंचाई चाय की खेती के लिए उपयुक्त है.
उत्तराखंड के स्थानीय किसान इस चाय की खेती करते हैं, जिससे उन्हें रोजगार भी मिलता है और पारंपरिक खेती को बढ़ावा भी मिलता है. अब इस चाय को देश-विदेश में भी पहचान मिल रही है और लोग इसे हर्बल और हेल्दी चाय के रूप में पसंद कर रहे हैं.
भारत में चाय के कई प्रकार हैं, लेकिन दार्जिलिंग चाय को सबसे खास और अनोखा माना जाता है. इसे "चाय की रानी" भी कहा जाता है. दार्जिलिंग चाय का स्वाद, खुशबू और रंग इसे बाकी चायों से अलग बनाता है. दार्जिलिंग पश्चिम बंगाल राज्य का एक खूबसूरत पहाड़ी इलाका है, जो समुद्र तल से लगभग 6,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. यहां का ठंडा मौसम और नम मिट्टी चाय की खेती के लिए एकदम उपयुक्त माने जाते हैं. दार्जिलिंग चाय में एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं, जो शरीर को डिटॉक्स करने और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मदद करते हैं. यह चाय दिल के लिए भी फायदेमंद मानी जाती है.
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