अमेरिका का नाम सुनते ही आपके सामने आती हैं ऊंची-ऊंची इमारतें और अमीर लोग. पढ़ाई करने का सपना हो या नौकरी का, अमेरिका में मौका मिले तो कोई भी दूसरी बार सोचना नहीं चाहता. मगर इसी अमेरिका में किसान कैसे होते हैं? कैसे रहते हैं? क्या उगाते हैं? क्या खाते हैं? इन सवालों के बारे में या तो ज्यादातर लोग सोचते नहीं है, सोचते हैं तो इनके सीधे तौर पर जवाब नहीं मिल पाते...आज आप जानिए अमेरिकी किसानों की कहानी और ये भी कि भारत के किसान और अमेरिका के किसानों में किस तरह का अंतर हैं.
भारत में जहां 60% आबादी किसी ना किसी तरह खेती से जुड़ी है, वहीं अमेरिका में सिर्फ 23 लाख लोग ही खेती करते हैं. अब आप सोचेंगे कि सिर्फ इतने से लोगों की खेती से इतने बड़े देश की खाद्य जरूरतें कैसे पूरी होती हैं, तो इसकी भी एक वजह है. दरअसल हमारे यहां ज़मीन को पैतृक संपत्ति माना जाता है और यह पीढ़ी दर पीढ़ी परिवार में बंटती रहती है. नतीजतन भारत में एक खेत का औसत आकार बहुत छोटा है. हमारे यहां एक खेत औसतन 2.5 हेक्टेयर का होता है जबकि अमेरिका में खेती बड़े स्तर पर की जाती है और वहां के खेत का औसत आकार करीब 250 हेक्टेयर होता है. इसलिए जो कम लोग वहां खेती कर रहे हैं वह बड़े स्तर पर कर रहे हैं, जबकि भारत में ज्यादातर लोग छोटे स्तर पर खेती से जुड़े हैं.
हमारे यहां के किसान जहां पारंपरिक रूप से खेती से जुड़े होते हैं, वहीं अमेरिका में अधिकतर किसान पढ़े-लिखे होते हैं. पढ़ाई-लिखाई पूरी करने के बाद वह कृषि विज्ञान की पूरी जानकारी लेते हैं और फिर खेती को एक व्यवसाय के तौर पर शुरू करते हैं.
अमेरिका में किसान नियमित तौर पर अपने खेत की मिट्टी की जांच करवाता रहता है ताकि सुनिश्चित कर सके कि उसके खेत की मिट्टी किस फसल के लिए अनुकूल है और उसकी उर्वरा शक्ति कितनी है. मौसम की जानकारी लेने के लिए वह सेटेलाइट तसवीरों की मदद भी लेते हैं. यही वजह है कि साल भर में वह अनेक फसलें उगा लेते हैं. जबकि भारतीय किसान के पास अमूमन यह सुविधा नहीं होती कि वह अपनी मिट्टी की जांच नियमित तौर पर करवा पाए. मौसम पर अत्यधिक निर्भरता के कारण हमारे यहां किसान साल में ज़्यादा से ज़्यादा तीन फसलें ही लगा पाते हैं.
भारतीय किसानों और अमेरिकी किसानों के कृषि के तरीके भी बहुत अलग हैं. भारतीय किसान प्रायः परंपरागत तरीके से खेती करता है जिसमें तकनीक का सीमित इस्तेमाल ही होता है. हमारे यहां कृषि श्रमिकों पर अधिक निर्भर करती है जबकि अमेरिका में कृषि पूंजी आधारित है और बड़ी और लेटेस्ट तकनीक का इस्तेमाल खेती के लिए किया जाता है.
भारतीय किसान आज भी सिंचाई के लिए मॉनसून पर निर्भर करता है जबकि अमेरिकी किसान तकनीक के सहारे साल भर उचित सिंचाई व्यवस्था का फ़ायदा उठाता है. चूंकि अमेरिकी खेत विशाल होते हैं, इसलिए उनके पास अपनी फसल को स्टोर करने के लिए हाइटेक गोदाम भी होते हैं जबकि हमारे यहां सिर्फ बड़े किसानों के पास ही ये सुविधा होती है. इसलिए विपरीत परिस्थितियों में भी अमेरिकी किसान अपनी उपज को बचाने में कामयाब हो जाते हैं.
अमेरिकी किसान एक बड़े कॉर्पोरेट या संस्था की तरह काम करते हैं. उनके पास मजदूर, लेटेस्ट तकनीक और वैज्ञानिक मदद भी होती है, इसलिए ये बाज़ार से सीधा संबंध रखते हैं. ना सिर्फ वे अपनी उपज की फूड प्रोसेसिंग खुद कर लेते हैं, बल्कि बाज़ार में भी सीधे बेच कर फ़ायदा भी उठाते हैं. लेकिन हमारे यहां जो फ़ायदा किसान को मिलना चाहिए वह अक्सर बिचोलिए ले जाते हैं क्योंकि किसान सीधा बाज़ार से नहीं जुड़ा हुआ है.
नवीनतम जानकारी, कार्यकुशलता और वैज्ञानिक मदद के परिणामस्वरूप कृषि की कम ज़मीन होने के बावजूद भारत की अपेक्षा अमरीका में उपज बहुत ज़्यादा होती है. आंकड़ों के अनुसार, चावल की प्रति हेक्टेयर उपज भारत में 3 टन है तो अमेरिका में करीब 8 टन, मक्का की उपज भारत में प्रति हेक्टेयर करीब 2 टन है तो अमेरिका में यह 9 टन है. इसी तरह गेंहू की उपज में भी अमेरिका के किसान हम से बहुत आगे हैं .
लेकिन एक बात में भारत और अमेरिका के किसानों में समानता भी है –और वो है सरकारी सहायता. चूंकि कृषि एक अनिश्चितता से भरा व्यवसाय है और तमाम मानवीय प्रयासों के बावजूद कभी-कभार मौसम की मार से फसलें बर्बाद हो जाती हैं, इसीलिए सभी देशों की सरकारें किसानों को तमाम तरह की सब्सिडी देती है. लेकिन अमेरिका में दी जाने वाली सब्सिडी भारत की तुलना में कहीं ज़्यादा है.
क्लाइमेट चेंज के साथ-साथ दुनिया भर में किसानों की मुसीबतें बढ़ी हैं. आज अमेरिका का किसान भी भारतीय किसान की तरह बाढ़ और सूखे की मार झेल रहा है, हालांकि, अमेरिकी किसान के हालात हमारे किसानों से बहुत बेहतर हैं.
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