
कृषि मंत्रालय के हाल ही में जो आंकड़े आए हैं, जो ये बता रहे हैं कि कृषि सेक्टर में ग्रोथ कितनी बुरी तरह से रेंग रही है. इस आंकड़े के मुताबिक, 2023-24 में समग्र रूप से अर्थव्यवस्था 7.2 प्रतिशत बढ़ने की उम्मीद है, लेकिन कृषि और इससे जुड़े सेक्टरों में केवल 1.4 प्रतिशत की वृद्धि होने की उम्मीद है. पिछले कुछ सालों की तुलना में यह कृषि क्षेत्र के लिए एक बड़ी गिरावट मानी जा रही है. साल 2022-23 में यह दर 4.7 प्रतिशत थी, जबकि 2021-22 में 4.6 प्रतिशत रही थी और 2022-23 में यही दर गिरकर 1.4 प्रतिशत पर रह गई. गौर करने वाली बात ये भी है कि यह गिरावट ऐसे समय में आई है जब देश की कुल आर्थिक वृद्धि दर में तेजी देखी जा रही है. अगर कृषि और इससे जुड़े सेक्टरों की वृद्धि इतनी कम है तो सरकार किसानों की आय करने का जो ढोल पीट रही है, वह निकट भविष्य में संभव होता नहीं दिख रहा.
इन आंकड़ों से साफ जाहिर है कि 2023-24 में देश की कुल अर्थव्यवस्था में 7.2% की ग्रोथ है लेकिन कृषि सेक्टर में 1.4 प्रतिशत. साल 2022-23 में अर्थव्यवस्था में 6.7% की वृद्धि और कृषि सेक्टर में 4.7 फीसद दर्ज हुई. 2021-22 में अर्थव्यवस्था की ग्रोथ 9.4 प्रतिशत और कृषि सेक्टर में 4.6 फीसदी और 2020-21 में समग्र अर्थव्यवस्था -4.1% (कोरोना काल) और कृषि में 4 प्रतिशत की ग्रोथ दर्ज हुई थी.
इतना ही नहीं 2019-20 में तो देश की कुल अर्थव्यवस्था (3.9%) से ज्यादा ग्रोथ तो कृषि सेक्टर (6.2%) ने दिखाई थी. आंकड़े गवाही दे रहे हैं कि जहां लगातार पिछले पांच सालों से कृषि और इसे जुड़े सेक्टर संतुलित ग्रोथ दे रहे थे, वहीं कृषि 2023-24 में धड़ाम से गिरी और वृद्धि 1.4% पर रह गई. जबकि आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 में वित्त मंत्रालय ने बताया था कि भारत के कृषि क्षेत्र में वित्त वर्ष 17 से वित्त वर्ष 23 तक औसतन 5 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि हुई है.
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2023 में सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की ओर से जारी किए गए आंकड़ों पर जब नजर डालेंगे तो पता चलता है कि देश की कुल अर्थव्यवस्था में कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों के जीवीए का हिस्सा 2020-21 में 20.3 प्रतिशत थी. 2021-22 में ये घटकर 19.0 प्रतिशत पर आई और फिर 2022-23 में और गिरकर कृषि की जीवीए 18.3 फीसदी तक फिसल गई. देश की कुल अर्थव्यवस्था में कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों के जीवीए का हिस्सा ही नहीं बल्कि इसकी वृद्धि भी नीचे आ रही है.
ये सरकार के आंकड़े खुद जाहिर कर रहे हैं कि देश की सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र का योगदान लगातार गिरता ही जा रहा है. अब ऐसें में तेजी से गिरते कृषि क्षेत्र में किसानों की आय दोगुनी करने का 'संकल्प' कोई सपना ही लगता है. पिछले साल, दिसंबर 2024 में नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चरल एंड रूरल डेवलपमेंट (NABARD) की एक रिपोर्ट ने किसान परिवारों की आय के बारे में चौकाने वाले खुलासे किए थे. NABARD की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि 2021-22 में प्रति किसान परिवार सभी स्रोतों से औसत मासिक कमाई सिर्फ 13,661 रुपये है.
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NABARD की रिपोर्ट के अनुसार, किसान अपनी मासिक कमाई 13,661 में से 11,710 रुपये खर्च कर देता है. यानी कि महीने में सिर्फ 1951 रुपये की बचत हो पा रही है और अगर रोज का औसत निकालें तो ये सिर्फ 65 रुपये होगा. मगर इसमें भी किसानी की कुल इनकम में खेती से कमाई का हिस्सा महज 4476 रुपये है. यानी किसान परिवारों की कमाई में खेती का हिस्सा महज 33 फीसदी ही है. मतलब साफ है कि किसान परिवार खेती से रोजाना 150 रुपये भी नहीं कमा पा रहे हैं. नाबार्ड की यही रिपोर्ट ये बता रही थी कि देश के 55.4 फीसदी कृषि परिवार कर्जदार हैं. हर कृषि परिवार पर औसतन 91,231 रुपये का कर्ज है.
2021-22 के इकोनॉमिक सर्वे में अनुमान लगाया गया था कि में कृषि विकास दर 3.9 फीसदी रहेगी. इससे पहले साल 2018 में 'स्ट्रेटजी फॉर न्यू इंडिया@75' नामक रिपोर्ट में नीति आयोग ने कहा था कि 3.31 प्रतिशत की वार्षिक कृषि वृद्धि से किसानों की आय दोगुनी करने में देश को 22 साल लग गए. इस हिसाब से 2015-16 से 2022-23 तक किसानों की इनकम डबल करने के लिए 10.4 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि दर की जरूरत होगी. मगर आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 में वित्त मंत्रालय ने बताया था कि भारत के कृषि क्षेत्र में औसतन 5 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि हुई है. यानी कि किसानों की आय डबल करने के लिए जो वार्षिक वृद्धि दर की जरूरत है, असल में ये वृद्धि दर उससे आधी भी नहीं है.
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