सिर्फ बासमती ही नहीं, रटौल आम के GI Tag पर भी मुंह की खा चुका है पाकिस्‍तान

सिर्फ बासमती ही नहीं, रटौल आम के GI Tag पर भी मुंह की खा चुका है पाकिस्‍तान

भारत और पाकिस्‍तान के बीच लंबे समय से बासमती चावल के GI Tag को लेकर विवाद चल रहा है, जिसमें पाकिस्‍तानी म‍ीडिया ने कुछ दावे किए, लेकिन भारत के वैज्ञानिकों ने इन्‍हें नकार दिया है. यह पहला मौाका नहीं है जब किसी चीज को लेकर भारत-पाकिस्‍तान दावेदारी कर रहे हैं. रटौल आम पर भी दोनों देशाें ने दावेदारी जताई, लेकिन भारत ने सबूत मजबूत पक्ष रखते हुए GI टैग हासिल किया. जानिए पूरा मामला...

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सिर्फ बासमती ही नहीं, रटौल आम के GI Tag पर भी मुंह की खा चुका है पाकिस्‍तानरटौल आम विवाद

भारत और पाकिस्‍तान के बीच बासमती चावल का GI टैग हासिल करने के लिए इंटरनेशनल फोरम में विवाद चल रहा है, जो इन द‍िनों चर्चा में बना हुआ है. दरअसल, पाकिस्‍तानी मीडिया यह दावा कर रही है कि भारत आस्ट्रेल‍िया और न्यूजीलैंड में बासमती चावल का GI टैग हासिल करने में नाकाम हो गया है और यह पाकिस्‍तान को मिलने जा रहा है. पाकिस्‍तानी मीड‍िया रिपोर्ट्स में यह दावा किया जा रहा है कि पाकिस्तान को जीआई टैग देने को लेकर ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड ने मान्यता दे दी है. लेकिन, अभी यूरोपियन यूनियन से फैसला आना बाकी है. वहीं, भारतीय बासमती पर काम करने वाले कृष‍ि वैज्ञान‍िकों ने पाक‍िस्तान के दावे को सिरे से खार‍िज कर द‍िया है. यह बात तो हुई बासमती चावल की, लेकिन क्‍या आपको पता है कि पड़ोसी देश पाकिस्‍तान भारत के ‘रटौल’ आम पर भी बुरी नजर डाल चुका है, लेकिन उस समय भी उसने मुंह की खाई और GI टैग की लड़ाई हार गया. 

क्‍या होता है GI टैग और क्‍यों है जरूरी? 

सबसे पहले जान लीजिए क‍ि GI टैग क्‍या होता है और इसे हासि‍ल करने की होड़ क्‍यों मची रहती है. जियोग्राफिकल इंडिकेशन (GI) टैग ऑथेंटिसिटी और क्‍वालिटी को दर्शाने वाला एक टैग है, जो किसी प्रोडक्‍ट (उत्पाद) के मूल स्थान की पहचान करता है. यह तभी दिया जाता है, जब किसी उत्‍पाद की गुणवत्‍ता उसके मूल स्थान के कारण हो. GI टैग प्रोडक्ट को उसकी स्वीकृत क्वालिटी के चलते ऊंचे दामों पर बेचने में सक्षम बनाता है. यही वजह रहती है कि अक्‍सर एक ही उत्‍पाद पर कई देश दावे करते नजर आते हैं.  

क्‍या था रटौल आम का विवाद ?

दरअसल, 1980 के दशक की बात है, जब पाकिस्‍तान के राष्ट्रपति जनरल जिया उल हक ने भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को आम भेंट किए थे. ये आम ‘रटौल आम’ थे, पाकिस्‍तान ने इस दावे के साथ भेजे थे कि यह सिर्फ उनके यहां ही उगते है. पाकिस्‍तान से आए आम की खबर अखबारों में छपी तो इसके मूल स्‍थान उत्‍तर प्रदेश के बागपत जिले के रटौल गांव के लोग पीएम इंदिरा से मिलने आए और दावा किया कि यह भारत में विकस‍ित हुआ आम है. उस समय बागपत मेरठ जिले की तहसील हुआ करता था. 

पीएम से मिलने आए लोगों ने अपने पूर्वजों के बारे में बताते हुए सबूत भी पेश किए. इसके बाद तत्‍कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने प्रेस कॉन्‍फ्रेंस कर पाकिस्‍तान के रटौल आम को लेकर किए गए दावे का खंडन किया और इसे भारत की विरासत बताया. हालांकि पाकिस्‍तान लंबे समय तक दावा तो करता रहा कि यह आम मूल रूप से उसके यहां का ही है, लेकिन दावे को लेकर कोई दमदार सबूत पेश नहीं कर पाया. 

जीआई टैग की कहानी

वहीं, रटौल गांव के निवासी और रटौल आम की किस्‍म तैयार करने वाले अफाक फरीदी के पोते जावेद फरीदी के मुताब‍िक , रटौल आम भारत से पाक‍िस्तान वाले क्षेत्र में गया. कुछ पौधे हामिद खान दुर्रानी और दामोदर स्वरूप नाम के लोगों को मुल्तान और मीरपुर की नर्सरी में ले गए थे, जो वहां की मिट्टी और जलवायु में ढल गया. बाद में पाकिस्‍तान ने इस पर दावेदारी पेश कर दी. लेकिन साल 2021 में भारत को रटौल आम के लिए GI टैग मिला और पा‍किस्‍तान को अपने झूठ के लिए मुंह की खानी पड़ी. बता दें कि रटौल आम स्‍वाद बेहद गजब का होता है और ये साइज में छोटे होते हैं. जावेद फरीदी के मुताब‍िक, रटौल आम को अनवर रटौल भी कहा जाता है, क्‍योंकि उनके दादा ने उनकी पत्‍नी अनवर का नाम रटौल आम के साथ जोड़ा था.

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