Cinnamon Production in India भारत में गरम मसाले खूब इस्तेमाल किए जाते हैं. भारतीय रसोई में बनने वाले बहुत सारे ऐसे पकवान है जो बिना गरम मसाले के पूरे नहीं होते हैं. तीज-त्यौहर के मौके पर तो गरम मसालों की मात्रा बढ़ जाती है. लेकिन बिना दालचीनी की बात किए गरम मसाले अधूरे माने जाते हैं. किसी भी घर का कीचिन ऐसा नहीं होगा जहां दालचीनी न हो. दालचीनी के बारे में न्यूट्रिशन एक्सपर्ट का कहना है कि इससे जहां गरम मसालों का स्वाद बढ़ता है, वहीं ये शरीर में इम्यूनिटी भी बढ़ाती है. साल 2020-21 में कोरोना के दौरान इसके बारे में खूब बात हुई थी. लेकिन दालचीनी को बड़ी मात्रा में इंपोर्ट किया जाता है.
अगर इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ बॉयो रिसोर्स टेक्नोलॉजी (आईएचबीटी), पालमपुर, हिमाचल प्रदेश के साइंटिस्ट की मानें तो जल्द ही देश के लोग हिमाचल में उगी दालचीनी खाएंगे. अभी तक सिर्फ 10 फीसद दालचीनी का उत्पादन ही देश में होता है. संस्थान का दावा है कि आने वाले वक्त में हिमाचल प्रदेश देश में दालचीनी की डिमांड को पूरा करने में कामयाब हो जाएगा.
आईएचबीटी के साइंटिस्ट डॉ. रमेश चौहान का कहना है कि हमारे देश में 50 हजार टन तक दालचीनी की खपत है. इसमे से 45 हजार टन दालचीनी श्रीलंका और वियतनाम समेत दूसरे देशों से आयात की जाती है. अगर हम अपने ही देश में दालचीनी के उत्पादन की बात करें तो दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में करीब पांच हजार टन तक इसका उत्पालदन होता है. इन्हीं आंकड़ों से इसकी खपत का अंदाजा लगाया जा सकता है. खासतौर पर गरम मसालों के साथ इसका इस्तेमाल किया जाता है.
डॉ. रमेश चौहान ने बताया कि रिसर्च के दौरान हिमाचल प्रदेश के पांच शहरों में दालचीनी के पौधे लगाए गए हैं. ऊना, बिलासपुर, कांगड़ा और सिरमौर में हमने इसके पौधे लगाए हैं. पालमपुर में हमारे संस्थान में भी इसके पौधे लगे हुए हैं. साल 2022 में भी हमने 10 हजार पौधे किसानों को दिए थे. शुरुआत में हमने केरल से यह पौधे मंगाए थे. इसका पौधा चार साल बाद दालचीनी का उत्पादन देने लगता है. हमारे कुछ पौधों को चार साल हो चुके हैं. अभी तक सब कुछ बढ़िया चल रहा है. उम्मीद है कि इसी साल हमे दालचीनी की पहली फसल हिमाचल प्रदेश में मिल जाएगी.
डॉ. रमेश ने बताया कि दालचीनी के लिए कोस्टल एरिया वाला वातावरण चाहिए होता है. जैसे तापमान की बात करें तो 25 से 30 होना चाहिए. वहीं आद्रता 70 से 80 हो. अगर हिमाचल की बात करें तो पोंग डैम और गोविंद सागर झील का इलाका दालचीनी के पौधों के लिए बहुत ही लाभदायक है. अभी हमने नौ हेक्टेयर एरिया में फसल लगाई है. हमारा शुरुआती लक्ष्य. 50 हेक्टेयर का है. दालचीनी लगाने के लिए हमारे पास हिमाचल में ही इतनी जमीन है कि देश की खपत को पूरा किया जा सकता है.
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