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Explained: धान का कटोरा है छत्तीसगढ़, फिर खुले बाजार में क्यों बढ़ रहे चावल के दाम?

Explained: धान का कटोरा है छत्तीसगढ़, फिर खुले बाजार में क्यों बढ़ रहे चावल के दाम?

छत्तीसगढ़ में खुले बाजार में चावल के रेट बढ़ रहे हैं. वहां के चावल मिलर और व्यापारी परेशान हैं. उनका कहना है कि एफसीआई ने राज्य सरकार की एजेंसियों की मदद से लगभग सारा धान खरीद लिया है. अब उनके लिए कुछ बचा ही नहीं है. उन्हें महंगे रेट पर दूसरे राज्यों से धान खरीदना पड़ रहा है.

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छत्तीसगढ़ में बढ़े चावल के भाव छत्तीसगढ़ में बढ़े चावल के भाव

छत्तीसगढ़ में चावल के भाव में तेजी है. यहां के चावल मिलर और व्यापारी बढ़े दाम से परेशान हैं. यह हालत तब है जब छत्तीसगढ़ को देश का धान का कटोरा कहा जाता है. पिछले एक दशक का रिकॉर्ड देखें तो छत्तीसगढ़ देश में धान का गढ़ बनकर उभरा है. देश के छह टॉप राज्यों में इसका भी नाम है जहां सबसे अधिक धान की उपज होती है. इसके बावजूद ऐसा क्या हुआ जो इस बार यहां के आम लोगों को चावल की महंगाई से जूझना पड़ रहा है. इसे समझने के लिए यहां की धान की सरकारी खरीद को समझना होगा.

एक रिपोर्ट बताती है कि इस बार छत्तीसगढ़ में सरकार ने किसानों का 95 प्रतिशत धान खरीद लिया है. यानी प्रदेश का लगभग पूरा धान अब एफसीआई के पास पहुंच गया है. राज्य सरकारें अपनी एजेंसियों के मार्फत अनाजों की खरीद करती हैं जिनमें एक एफसीआई भी है. अब सवाल ये भी है कि एफसीआई या सरकार की एजेंसियां अन्य राज्यों में भी अनाज खरीदती हैं. फिर वहां 95 प्रतिशत तक खरीद क्यों नहीं होती? इसका जवाब छत्तीसगढ़ में धान पर दिया जाने वाला बोनस है.

बोनस के नियम पर रार

पाठकों को यह जानना चाहिए कि केंद्र के मुताबिक अनाजों की खरीद में MSP के ऊपर बोनस देने पर रोक है. केंद्र इस बोनस को जायज नहीं ठहराता. लेकिन राज्य सरकारें नियमों में कुछ रद्दोबदल कर ऐसा करती हैं. छत्तीसगढ़ ने ऐसा ही किया और धान की खरीद पर 900 रुपये का बोनस दिया. यह किसानों को मिलने वाली बहुत अच्छी रकम है. किसान भी इससे खुश हुए और अपना पूरा धान एफसीआई को बेच दिया. नतीजा रहा कि इस बार छत्तीसगढ़ में रिकॉर्ड 95 फीसद तक धान की खरीद हुई है. 

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इस बोनस और सरकारी खरीद से किसानों की तो चांदी हो गई, लेकिन व्यापारी और धान मिलर खतरे में आ गए. हालत ये हो गई कि उनके लिए प्रदेश में धान बचा ही नहीं क्योंकि सारी उपज एफसीआई के गोदामों में चली गई. अब व्यापारियों और मिलरों को अपनी खपत के लिए दूसरे राज्यों से धान-चावल मंगाना पड़ रहा है. इन व्यापारियों का तर्क है कि बाहर से अनाज मंगाना पड़ रहा है, लिहाजा दाम बढ़ गया है. यही वजह है कि खुले बाजार में चावल के रेट बढ़ गए हैं.

किसानों की चांदी!

व्यापारियों का कहना है कि अभी बाजारों में वही चावल बिक रहा है जिसे उन्होंने रिजर्व में रखा था. उनका यह भी दावा है कि पहले चावल की खरीद एमएसपी से अधिक रेट पर किया गया है. इसलिए अभी बढ़े हुए दाम पर उन्हें मार्केट में चावल बेचना पड़ रहा है. इससे एक तरफ आम लोगों पर बोझ बढ़ा है जबकि किसान की कमाई बढ़ी है. लेकिन किसान भी उपभोक्ता होते हैं, इसलिए उनका खर्च भी बढ़ा है. इस बारे में व्यापारियों की एक शिकायत और है. वे कहते हैं कि जब किसान को धान का रेट 3100 रुपये मिलेगा तो वह हर हाल में बेचेगा. एक तरफ वह ऊंचे भाव पर बेचकर कमा रहा है तो दूसरी ओर अपने खर्च के लिए राशन से सस्ते में अनाज ले रहा है. इस तरह किसानों को हर तरफ से चांदी है, जबकि आम जन महंगाई से जूझ रहे हैं.

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