प्रकृति के पर्व सरहुल को लेकर झारखंड में काफी उत्साह है. सरहुल का मतलब है साल के पेड़ की पूजा है. यह पर्व आदिवासियों के लिए नए साल की शुरुआत भी है. मुंडा, ओरान, हो जनजाति इस पर्व को बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं. सरहुल पर्व का मुख्य उद्देश्य प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करना और धरती माता, पेड़-पौधे, जल और पर्यावरण के संरक्षण का संदेश देना है. आदिवासी समुदाय में यह पर्व धरती से जुड़ा है, जिसे प्राकृतिक संसाधनों और पर्यावरण के संरक्षण के लिए मनाया जाता है.
इस पर्व के बाद ही राज्य में नए साल के लिए खेती-किसानी शुरू हो जाती है. पारंपरिक रूप से पाहन यानी पूजा कराने वाला व्यक्ति आकलन और गणना करता है कि नए साल में बारिश कैसी होगी. यानी मॉनसून कैसा रहेगा, सामान्य रहेगा या कम रहेगा. किसान उस आकलन के आधार पर खेती की तैयारी करते हैं.
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मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन आज प्रकृति पर्व सरहुल के पावन अवसर पर रांची के सिरमटोली स्थित सरना स्थल और आदिवासी छात्रावास में आयोजित पूजा कार्यक्रम में शामिल हुए. उन्होंने यहां पारंपरिक रीति-रिवाज के साथ पूजा-अर्चना की और राज्य के सर्वांगीण विकास, सुख-समृद्धि और शांति की कामना की. सोरेन दंपत्ति मांदर की थाप पर थिरकते नजर आए. वे गले में मांदर लटकाकर बजाते भी नजर आए. सीएम हेमंत सोरेन ने कहा कि इस नए साल में लंबी लकीर खींचनी है. सफर लंबा है और समय कम है.
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सीएम हेमंत सोरेन ने सरहुल पर्व के अवसर पर झारखंड में दो दिवसीय राजकीय अवकाश घोषित किया है. सीएम ने इंस्टाग्राम पर एक पोस्ट शेयर कर यह जानकारी दी. हेमंत सोरेन ने लिखा कि पिछले कई वर्षों से सरहुल के अवसर पर दो दिवसीय राजकीय अवकाश की मांग की जा रही थी. आदिवासी समाज के इस महान पर्व के महत्व को देखते हुए इस वर्ष से दो दिवसीय राजकीय अवकाश घोषित किया जाता है.
सीएम ने कहा कि हम झारखंड की संस्कृति और परंपराओं की गौरवशाली विरासत को संजो कर रखते आए हैं और हमेशा संजो कर रखेंगे. जय सरना, जय झारखंड. इस घोषणा के बाद आदिवासी समाज में खुशी की लहर दौड़ गई है.
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