उत्तरकाशी के धराली गांव में हाल ही में आई अचानक बाढ़ के बाद भागीरथी नदी में एक अस्थायी झील बन गई है और ये वैज्ञानिकों की चिंताओं को दोगुना कर रही है. अब जियोलॉजिकल एक्सपर्ट्स की एक टीम ने इस बात का पता लगाया है कि आखिर इस झील का निर्माण कैसे हुआ होगा. पांच अगस्त को धराली में बादल फटने के बाद पड़ोसी हर्षिल शहर को भी भारी नुकसान हुआ था. फिलहाल इस झील को हाथ से पंचर करने की कोशिशें जारी हैं ताकि पानी नियंत्रित तरीके से बहे और नीचे की ओर बाढ़ को रोका जा सके.
एक आधिकारिक विज्ञप्ति में कहा गया है कि टीम ने धराली और हर्षिल दोनों आपदा प्रभावित क्षेत्रों का जियोलॉजिक सर्वे किया और संभावित खतरों और बचाव के उपायों का अध्ययन किया. टीम को पता लगा है कि 5 अगस्त को आई तबाही के दौरान भारी बारिश हुई. इस वजह ये हर्षिल में सेना शिविर के पास तेलगाड़ नामक एक स्थानीय नाला एक्टिव हो गया. प्रशासन के अनुसार जहां हर्षिल में एक व्यक्ति की मौत हो गई तो 68 और लापता हैं. इस आपदा का सबसे ज्यादा असर शिविर पर पड़ा, जिससे कई संरचनाएं ध्वस्त हो गईं और एक जूनियर कमीशन अधिकारी और आठ जवानों सहित नौ कर्मचारी लापता हो गए.
विशेषज्ञों की टीम ने बताया कि भागीरथी नदी के संगम पर नाले में भारी मात्रा में मलबा और पानी जमा हो गया और तलछट का एक बड़ा पंखानुमा जमाव (जलोढ़ पंखा) बन गया. इसने भागीरथी नदी के मूल प्रवाह को ब्लॉक कर दिया और नदी के दाहिने तरफ एक अस्थायी झील बन गई. इस नवनिर्मित झील की लंबाई करीब 1,500 मीटर थी और इसकी अनुमानित गहराई 12 से 15 फीट थी. बाढ़ ने न सिर्फ राष्ट्रीय राजमार्ग और एक हेलीपैड के एक हिस्से को पानी में डूबा दिया बल्कि हर्षिल शहर के लिए भी एक गंभीर खतरा पैदा कर दिया.
इस घटना ने भागीरथी नदी की टोपोग्राफी या स्थलाकृति को भी महत्वपूर्ण रूप से बदल दिया. दाहिने किनारे पर स्थित रेत का टीला गिर गया है जबकि बाईं तरफ ताजा स्लिट जमा हो गई है. यह शहर के उत्तरी भाग की तरफ आ गई है जिससे खतरा बढ़ गया है. 12 अगस्त को जियोलॉजिकल टीम के सर्वे से पता चला कि भागीरथी नदी का बायां किनारा एक पानी में डूबे हुए जलोढ़ पंखा की तरफ से ब्लॉक था. इसमें नमी की उच्च मात्रा के कारण जेसीबी जैसी भारी मशीनरी - जो स्थानीय स्तर पर उपलब्ध एकमात्र उपकरण थी - का उपयोग नहीं किया जा सका.
क्षेत्रीय आंकड़ों और उपलब्ध संसाधनों के आधार पर, भूवैज्ञानिकों ने मलबा हटाने और पानी बहने की आंशिक बहाली के लिए एक योजना तैयार की. इस योजना में रुके हुए पानी को धीरे-धीरे छोड़ने के लिए लगभग 9-12 इंच गहरे छोटे मोड़ चैनल बनाना शामिल था. उत्तरकाशी के जिला मजिस्ट्रेट प्रशांत आर्य और महानिरीक्षक (एसडीआरएफ) अरुण मोहन जोशी के साथ चर्चा के दौरान, इस बात पर जोर दिया गया कि झील के बहाव वाले रास्ते को तीन या चार चरणों में खोला जाना चाहिए ताकि नीचे की ओर अचानक बाढ़ न आए. राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (एसडीआरएफ) और सिंचाई विभाग, उत्तरकाशी द्वारा तुरंत कार्य शुरू कर दिया गया.
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