पंजाब-हरियाणा का कल्चर ही एग्रीकल्चर है. इन दोनों ही राज्यों की संस्कृति खेती-किसानी से जुड़ी हुई है. वहीं पंजाब-हरियाणा ही हरित क्रांति के पोस्टर स्टेट रहे हैं. इन दोनों राज्याें ने हरित क्रांति को सफल बनाने में अहम भूमिका निभाई और देश की बड़ी आबादी को भरपेट भोजन सुनिश्चित हो सका है, लेकिन हरित क्रांति के साइड इफेक्ट ने इन दाेनों ही राज्यों के फूड कल्चर को भी बुरी तरह प्रभावित किया.
मसलन, 'मक्के दी रोटी और सरसों दा साग' के ट्रेंड वाले पंजाब से मक्का और सरसों की फसलें अमूमन गायब हैं. इस बदले ट्रेंड ने पंजाब के फूड कल्चर को ही प्रभावित नहीं किया है, जबकि एग्रीकल्चर भी प्रभावित है. हालांकि हरियाणा हरित क्रांति के इस साइड इफेक्ट से निकलने में कामयाब रहा है, जिससे पंजाब को भी सीखने की जरूरत है. कुल जमा हरियाणा की राह पर चलकर पंजाब को फसल विविधिकरण पर जोर देना होगा. यानी मक्के दी रोटी-सरसों दा साग... वापिस मांगे पंजाब.
आइए आज इस पर विस्तार से बात करते हैं. समझते हैं कि हरित क्रांति के बाद पंजाब हरियाणा में क्या बदला. कैसे हरियाणा हरित क्रांति के साइड इफेक्ट से बाहर आने में सफल रहा.
पंजाब और हरियाणा देश में हरित क्रांति के पोस्टर स्टेट रहे हैं. दोनों ने हरित क्रांति को सफल बनाने को अहम भूमिका निभाई. नतीजतन दोनों ही राज्यों में गेहूं और धान यानी चावल की खेती का दायरा बढ़ा. उसके बाद से गेहूं और धान की खेती पंजाब और और हरियाणा का कल्चर बन गई. यानी दोनों ही राज्यों में मोनोकल्चर प्रभावी हो गया है. हरियाणा ने इस मोनोकल्चर के स्ट्रक्चर को बदलने में सफलता पाई है, लेकिन पंजाब में अभी भी मोनोकल्चर प्रभावी है.
आंकड़ों से समझें तो हरित क्रांति से पहले यानी 1960 के दशक में पंजाब में धान का एरिया कुल खेती में सिर्फ 5 फीसदी तक था. जो 2019 तक 40 फीसदी तक दर्ज किया गया. यानी हरित क्रांति के बाद पंजाब में धान की खेती में 8 गुना की बढ़ोतरी हुई. वहीं पंजाब में गेहूं और धान के एरिया की बात करें तो हरित क्रांति के वक्त 37 फीसदी था, वह 2019 में अकेले 86 फीसदी तक है. कुल जमा पंजाब में मोनोकल्चर प्रभावी रहा है.
वहीं हरित क्रांति के बाद हरियाणा में धान और गेहूं का कुल एरिया 20 फीसदी था, जो 2019 में 61 फीसदी तक पहुंच गया. मसलन, पंजाब की तुलना में हरियाणा ने धान और खेती को पूरी तरह से प्रभावh नहीं हाेने दिए.
पंजाब और हरियाणा में मोनोकल्चर से कई नुकसान हुए. धान की खेती में खर्च होने वाले पानी से पंजाब और हरियाणा के कई क्षेत्र में भूजल स्तर बेहद नीचे चला गया है. दोनों ही राज्यों के कई क्षेत्र डार्क जोन में चले गए हैं. तो वहीं एक ही तरह की फसलों की खेती से मिट्टी का स्वास्थ्य भी खराब हुआ है.
हरित क्रांति के साइड इफेक्ट को समझे तो वह ये है कि पंजाब से मक्के की खेती के एरिया कम हुआ है. आंकड़ों से समझें तो हरित क्रांति यानी 1966 में पंजाब में मक्के की खेती का रकबा 4.44 लाख हेक्टेयर था, जो 2019 में घटकर 1.09 लाख हेक्टेयर रह गया. समझे तो पंजाब में हरित क्रांति के साइड इफेक्ट से मक्के के एरिया में 4 गुना की कमी दर्ज की गई. हालांकि इस दौरान हरियाणा में भी मक्के की खेती 87 हजार हेक्टेयर से 6 हजार हेक्टेयर तक सिमटी है, लेकिन ये भी सच है कि मक्के की खेती पंजाब का कल्चर रही है और यहां पर ये ध्यान देने की जरूरत है कि मक्के की खेती में पानी कम लगता है.
वहीं हरियाणा हरित क्रांति के बाद सरसों की खेती बरकरार रहने में सफल रहा. मसलन, हरित क्रांति के बाद हरियाणा में सरसों का रकबा बढ़ा है. 1966 में हरियाणा में सरसों का रकबा 1.98 लाख हेक्टेयर था, जो 2019 में 6 लाख हेक्टेयर को पार कर गया. वहीं इसी दौरान पंजाब से सरसों की खेती का रकबा कम हुआ. मसलन, पंजाब में सरसों का रकबा 1.16 लाख हेक्टेयर से 30 हजार हेक्टेयर तक सिमट गया. कुल जमा हरित क्रांति से पंजाब में गेहूं और धान का रकबा बढ़ा और सरसों दा साग और मक्के दी रोटी का कल्चर कम हुआ.
पंजाब में गेहूं और धान की खेती के एकाधिकार यानी मोनोकल्चर ने नुकसान पहुंचाया है. गेहूं और धान की निश्चित दाम यानी MSP की वजह से किसान इन फसलों से दूरी नहीं बना पा रहे. नतीजतन, धान की खेती ने भूजल के गिरते स्तर को लेकर चिंता पैदा की है. वहीं हरियाणा ने फसल विविधिकरण का मंत्र अपना कर मोनोकल्चर के खिलाफ स्ट्रक्चर खड़ा किया. मसलन, हरियाणा सरकार पानी बचाने की मुहिम के तहत धान की जगह दूसरी फसलों की खेती करने डीएसआर से धान बुवाई पर सब्सिडी देती है. इसी तरह भावांतर पर दूसरी फसलों की खरीद से किसानाें को प्राेत्साहित करती है, जिससे पंजाब को सीखने की सतत् कृषि के लिए सीखने की जरूरत है.
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