किसानों की आमदनी बढ़ाने और कम लागत में अधिक मुनाफा देने के लिए केंद्र सरकार लगातार प्रयास कर रही है. किसानों की फसलों की बिक्री और उनकी कृषि समस्याओं को हल करने के लिए सरकार ने 11 साल पहले किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) पर पॉलिसी लेकर आई थी. सरकार ने संकेत दिया है कि अब नई एफपीओ पॉलिसी लाने की तैयारी चल रही है. दरअसल, सरकार किसानों की फसल की क्वालिटी को बड़े स्तर पर बेहतर करने के साथ ही बुवाई से लेकर कटाई, बिक्री और स्टोरेज तक की छोटी-छोटी परेशानियों को दूर करने पर काम कर रही है.
केंद्र सरकार 11 साल के अंतराल के बाद किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) पर एक पॉलिसी लाने की योजना बना रही है. रिपोर्ट के अनुसार किसानों की कृषि समस्याओं को दूर करने और कृषि कार्य में सहूलियत देने के साथ ही पॉलिसी का उद्देश्य उन सभी लोगों के लिए समान अवसर तैयार करना होगा जिन्हें वित्तीय लाभ नहीं मिल रहा है. सूत्रों के अनुसार एफपीओ को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय नीति को संशोधित करने की आवश्यकता है, क्योंकि 2013 में पहली बार नीति की शुरुआत के बाद कई और एफपीओ बनाए गए हैं. इसके अलावा केवल वही एफपीओ लाभप्रद स्थिति में हैं जो वित्तीय सहायता योजना के तहत बनाए गए हैं. ऐसे में नई नीति लाने की जरूरत आन पड़ी है.
केंद्र ने किसानों की आय बढ़ाने के उपायों के तहत 6,865 करोड़ के खर्च के साथ 10,000 एफपीओ के गठन का लक्ष्य रखा था. कृषि मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि फरवरी 2024 तक 8,000 से अधिक एफपीओ पहले ही रजिस्टर्ड हो चुके हैं. केंद्रीय योजना के तहत एफपीओ को तीन साल की अवधि में प्रति एफपीओ 18 लाख रुपये तक की वित्तीय मदद दी जाती है. इसके अलावा प्रति एफपीओ 15 लाख की सीमा के साथ एफपीओ के प्रति किसान सदस्य को 2,000 तक मैचिंग इक्विटी जारी करने की भी अनुमति देता है.
एफपीओ नीति में संशोधन की आवश्यकता इसलिए महसूस की गई, क्योंकि प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (PACS) पर केंद्र के फोकस के साथ सहकारी क्षेत्र बड़े पैमाने पर बदलाव के लिए आगे बढ़ रहा है. पिछले साल PACS और FPO को आपस में जोड़ने के लिए बैठक भी हुई थी. इसके अनुसार एक मॉडल मसौदा बनाया गया है. सहकारिता मंत्रालय ने पैक्स के लिए प्रावधान किए हैं, लेकिन एफपीओ के लिए समान प्रोत्साहन का सुझाव अभी तक नहीं दिया गया है. इस कमी को अगली एफपीओ नीति में दूर किया जा सकता है.
सूत्रों ने कहा कि नई पॉलिसी तैयार हो के बाद एफपीओ को सरकारी ढांचे में अपनी उपज बेचने में प्राथमिकता मिल सकती है. इससे सरकारी स्वामित्व वाले केंद्रीय भंडार जैसे संगठन जो कृषि उत्पादों की सोर्सिंग में एफपीओ की तुलना में निजी कंपनियों को प्राथमिकता देते हैं, उसे खत्म किया जाएगा. नई नीति एफपीओ और बड़े खुदरा विक्रेताओं, निर्यातकों को जोड़ने और कृषि उपज की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद कर सकती है. हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि नीति से अधिक महत्वपूर्ण इरादा है क्योंकि इसका सही तरीके से लागू होना ही इसकी सफलता तय करेगी.
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