आज 16 अक्टूबर 2025 को, जब पूरी दुनिया विश्व खाद्य दिवस मना रही है, तो इसका - एक बेहतर भोजन और बेहतर भविष्य के लिए हाथ मिलाएं." संदेश बिल्कुल साफ है. यह विषय हम सभी को एकजुट होकर यह सोचने के लिए प्रेरित करता है कि हम भोजन उगाने, बांटने और खाने के तरीके में कैसे सुधार ला सकते हैं. यह एक साझा ज़िम्मेदारी है, जिसे मिलकर ही निभाया जा सकता है. आज हमारी खेती और भोजन से जुड़े सिस्टम के सामने कई गंभीर चुनौतियां हैं. खेती के लिए जमीन और पानी जैसे संसाधन कम हो रहे हैं, जलवायु परिवर्तन का असर बढ़ता जा रहा है, और खाने-पीने की चीज़ों को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने की व्यवस्था अभी भी बहुत नाज़ुक है.
यह एक कड़वी सच्चाई है कि दुनिया में आज भी 67 करोड़ से ज्यादा लोग भूखे सोते हैं, जबकि दूसरी तरफ मोटापा और भोजन की बर्बादी भी तेजी से बढ़ रही है. यह दिखाता है कि हमारी व्यवस्था में कितना असंतुलन है, जहां एक तरफ बहुतायत है तो दूसरी तरफ भारी कमी. इन समस्याओं को सुलझाने के लिए सरकारों, वैज्ञानिकों, व्यापारियों और आम नागरिकों को साथ मिलकर काम करना होगा ताकि हम कम संसाधनों में ज्यादा और बेहतर भोजन पैदा कर सकें.
हम अपनी भोजन व्यवस्था को कैसे सुधार सकते हैं? इसके बारे भूमि एवं जल प्रबंधन प्रभाग, आईसीएआर, पूर्वी अनुसंधान परिसर पटना के हेड डॉ. आशुतोष उपाध्याय का कहना है कि भोजन की व्यवस्था को बदलने में हर व्यक्ति की एक अहम भूमिका है. हम अपने रोजमर्रा के छोटे-छोटे फैसलों से बड़ा बदलाव ला सकते हैं. भोजन की व्यवस्था को बेहतर बनाने में हम सभी की एक महत्वपूर्ण भूमिका है, जिसे हम अपने रोजमर्रा के छोटे-छोटे फैसलों से निभा सकते हैं. हमें अपने आस-पास के किसानों से स्थानीय और मौसमी फल-सब्ज़ियां खरीदनी चाहिए, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को सहारा मिलता है और हमें ताजा भोजन प्राप्त होता है.
इसके साथ ही, अपने आहार में दालों, साबुत अनाज और विभिन्न प्रकार के पौष्टिक खाद्य पदार्थों को शामिल करना जरूरी है. हमें भोजन की बर्बादी को भी रोकना चाहिए. अपनी थाली में उतना ही खाना लें जितनी जरूरत हो और बचे हुए भोजन का सही उपयोग करें. अंत में, हमें अपने स्थानीय किसानों, सब्जीवालों और उन सभी लोगों का सम्मान और समर्थन करना चाहिए जो हम तक भोजन पहुंचाने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं.
किसान इस बदलाव की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी हैं. वे धरती के संरक्षक हैं जो स्थायी तरीकों को अपनाकर हमारा भविष्य सुरक्षित करते हैं. किसान इस बदलाव की सबसे अहम कड़ी हैं, क्योंकि वे धरती के असली संरक्षक हैं जो टिकाऊ तरीकों से हमारा भविष्य सुरक्षित करते हैं. वे जैविक और कृषि-वानिकी जैसे प्राकृतिक तरीके अपनाकर जमीन की सेहत और जैव-विविधता की रक्षा करते हैं. एक ही तरह की फसल बार-बार उगाने की जगह, वे अलग-अलग और देसी किस्मों को चुनकर जमीन को उपजाऊ बनाए रखते हैं और अपनी खेती को भी फायदेमंद बनाते हैं.
साथ ही, फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान को रोककर और भंडारण के बेहतर तरीके अपनाकर, वे यह सुनिश्चित करते हैं कि उनकी मेहनत से उगाया गया ज्यादा से ज्यादा भोजन लोगों तक पहुंचे.
खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में समाज के हर वर्ग की अहम भूमिका है. वैज्ञानिक और शोध संस्थान अपने ज्ञान से किसानों के लिए ऐसी नई तकनीकें बनाते हैं, जिससे पैदावार बढ़े और पर्यावरण को भी नुकसान न हो. वहीं, सामाजिक संस्थाएं आम लोगों की आवाज बनकर सरकार तक पोषण और खाद्य सुरक्षा जैसी जरूरी बातें पहुंचाती हैं, ताकि कोई भी भूखा न रहे. इसी तरह, छोटे व्यापारियों से लेकर बड़ी कंपनियों तक, उद्योग जगत की भी यह जिम्मेदारी है कि वे सिर्फ मुनाफा न देखें, बल्कि समाज के प्रति अपनी भूमिका निभाते हुए पौष्टिक भोजन को सस्ता और सुलभ बनाएं और भोजन की बर्बादी को रोकें.
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