पशुपालन ग्रामीण आबादी की आजीविका चलाने में महत्वपूर्ण योगदान करता है. भारत की बड़ी आबादी आज भी अपनी आजीविका के लिए इस पर निर्भर है. इसलिए पशुपालन को भारतीय कृषि की रीढ़ भी कहा जाता है. लेकिन, अगर हरा चारा न हो तो पशुपालन बेहतर तरीके से नहीं हो सकता. चारा उत्पादन क्षेत्र के अंतर्गत कुल कृषि क्षेत्रफल का लगभग 4.5 प्रतिशत भाग है और पिछले कुछ दशकों से लगातार यह क्षेत्र सिकुड़ रहा है. जिसकी वजह से आज भी हमारी प्रति पशु दुग्ध उत्पादकता विश्व की औसत उत्पादकता से निचले स्तर पर दर्ज की गई है. इसका प्रमुख कारण पशुओं की उच्च कोटि की नस्लों एवं उनके लिए पर्याप्त मात्रा में आवश्यक संतुलित पोषक आहार का की कमी है. भारतीय चारा अनुसंधान के विजन दस्तावेज वर्ष 2050 के अनुसार वर्तमान समय में देश में लगभग 35 प्रतिशत हरा चारा, 11 प्रतिशत शुष्क चारा एवं 44 प्रतिशत अनाज (दाना) और 2 प्रतिशत प्रोटीन की कमी है.
कृषि वैज्ञानिक राजेश कुमार मीना, फूल सिंह हिंडोरिया, राकेश कुमार, हंसराम, हरदेव राम और विजेंद्र मीना ने कहा है कि इसी कमी के कारण भारत की प्रति पशु उत्पादकता विश्व की औसत उत्पादकता से कम बनी हुई है. इसमें सुधार लाने के लिए पशुओं में नस्ल सुधार कार्यक्रम के साथ-साथ उन्हें आवश्यक संतुलित पोषण की पूर्ति सुनिश्चित करने की बेहद आवश्यकता है, जो आगे चलकर देश की पोषण सुरक्षा में अमूल्य योगदान प्रदान कर सकती है. इसमें हरे चारे की भूमिका अहम होगी. आईए पांच प्रमुख हरे चारे की फसल के बारे में जानते हैं.
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लोबिया एक बहुआयामी उपयोग वाली महत्वपूर्ण दलहनी फसल है. इसका उपयोग खाद्य, चारा, हरी खाद और सब्जी के रूप में किया जाता है. इसके हरे चारे में शुष्क पदार्थ के आधार पर 20-22 प्रतिशत क्रूड प्रोटीन, 43-45 प्रतिशत एन.डी.एफ. और 34-36 प्रतिशत ए.डी.एफ. पाया जाता है. चारे के लिए इसकी अनुशंसित बीज दर 30-35 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है.
पूर्वी-मध्य भारत एवं उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में उगाई जाने वाली शीतोष्ण जलवायु की जई प्रमुख धान्य चारा फसल है. यह रबी के मौसम में शीघ्रता से बढ़ने वाली प्रमुख फसल है, जिससे हरे चारे की उपलब्धता जल्दी प्राप्त हो जाती है. इसमें शुष्क पदार्थ के आधार पर 10-11.5 प्रतिशत क्रूड प्रोटीन और 17-20 प्रतिशत हेमी-सेलुलोज पाया जाता है. इसकी खेती के लिए अनुशंसित बीज दर 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है.
शीतोष्ण जलवायु के लिए राई घास एक महत्वपूर्ण बहुवर्षीय चारा फसल है. इसका चारा बहुत ही रसदार, सुपाच्य, स्वादिष्ट और अच्छी गुणवत्ता वाला होता है. इसमें शुष्क पदार्थ के आधार पर 13-14 प्रतिशत क्रूड प्रोटीन और 18-26 प्रतिशत हेमी-सेलुलोज पाया जाता है. इसकी बुवाई के लिए अक्टूबर-नवंबर का समय उपयुक्त माना जाता है. इसकी खेती के लिए अनुशंसित बीज दर 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है.
चारा सरसों, ठंडी जलवायु में बहुत कम अवधि में प्राप्त होने वाली एक महत्वपूर्ण चारा फसल है. किसान सामान्यतः इसे बरसीम, रिजका और अन्य फसलों के साथ मिश्रित खेती के रूप में अपनाकर प्रथम कटाई के समय अधिक चारे की प्राप्ति करते हैं.
बरसीम, शीतोष्ण क्षेत्र में उगाई जाने वाली हरे चारे की मुख्य दलहनी फसल है. इसका चारा पशुओं के लिए सबसे उत्तम व पौष्टिक माना जाता है. यह फसल पौष्टिक चारे के साथ-साथ भूमि की उर्वरा शक्ति को भी बढ़ाती है. इसमें शुष्क पदार्थ के आधार पर 20-22 प्रतिशत क्रूड प्रोटीन और 7-10 प्रतिशत हेमी-सेलुलोज पाया जाता है. चारे में पाचनशीलता लगभग 70 प्रतिशत से अधिक होती है. इसकी अनुशंसित बीज दर 25-30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है.
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