सरसों की बुआई का सीजन शुरू होने को है और इस समय जीएम मस्टर्ड यानी जेनेटिकली मोडीफाइड सरसों को लेकर काफी हंगामा मचा हुआ है.वैज्ञानिकों के बाद अब इस मसले पर किसानों की तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक चिट्ठी लिखी गई है. चिट्ठी में किसानों ने सरकार को जीएम फसलों को लेकर आगाह किया है. किसानों का कहना है कि आत्मनिर्भर भारत कभी भी विदेशी जीन पर आगे नहीं बढ़ सकता है. चिट्ठी में किसानों ने जीएम सरसों को लेकर सरकार को चेतावनी दी है और इसे जल्दबाजी में जारी न करने के लिए कहा है. किसानों की मानें तो यह कदम बायो-सिक्योरिटी, फेडरल बैलेंस (संघीय संतुलन) और न्यायिक तर्क को खतरे में डालने वाला है.
पीएम मोदी को यह चिट्ठी किसान प्रतिनिधि और आईसीएआर की गर्वनिंग बॉडी के सदस्य वेणुगोपाल बदरवाड़ा की तरफ से लिखी गई है. उन्होंने अपनी चिट्ठी में लिखा है, 'बीटी कपास एक कड़वी सीख थी. इसे एक चमत्कार के रूप में सराहा गया था लेकिन आज किसान कीट प्रतिरोध, बढ़ती लागत और कर्ज के बोझ तले दबे हुए हैं. हम दूसरी त्रासदी बर्दाश्त नहीं कर सकते, इस बार सरसों के मामले में, जो हमारा सबसे महत्वपूर्ण तिलहन है और जिसे मंदिर में भी सबसे पवित्र समझा जाता है.'
उन्होंने इसमें लिखा है कि जीएम सरसों का मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है और सर्वोच्च न्यायालय ने जीएम फसलों को समय से पहले जारी करने के खिलाफ बार-बार चेतावनी दी है. बदरवाड़ा ने लिखा, 'न्यायालय का फैसला आने से पहले जीएम सरसों को आगे बढ़ाना न्यायिक तौर पर गलत होगा.' किसानों के प्रतिनिधियों ने प्रधानमंत्री को दस रिटायर्ड एडमिनिस्ट्रेटिव ऑफिसर्स और ब्रीडर्स की तरफ से साइन की गई उस चिट्ठी की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाया जो हाल ही जारी हुई है.
चिट्ठी के अनुसार, 'जीएम सरसों की पैरवी करने वाले 10 वैज्ञानिकों में से कोई भी प्लांट जेनेटिक इंजीनियर नहीं है. उनका करियर एडमिनिस्ट्रेशन या पारंपरिक ब्रीडिंग में था, न कि ट्रांसजेनिक फसलों की बायो-सिक्योरिटी को परखने में.' चिट्ठी की मानें तो यह उनकी ओर से लिखी गई चिट्ठी सिर्फ लॉबिंग है न कि साइंस. चिट्ठी के अनुसार, 'यह विडंबना है कि वही आवाजें जो कभी बीटी कपास को चमत्कारी फसल कहती थीं, अब जीएम सरसों को अगला चमत्कार बता रही हैं. किसान याद करते हैं कि उस कहानी का अंत कैसे हुआ, कीट वापस आ गए, कीटनाशकों की कीमतें बढ़ गईं और ग्रामीण कर्ज गहरा गया. अब फिर वही कहानी दोहराई जा रही है, बस फसल बदल गई है.'
आगे लिखा है, 'चमत्कार करने वालों ने बस अपने पुराने भाषणों पर धूल झाड़ दी है, 'कपास' की जगह 'सरसों' का इस्तेमाल कर दिया है, और उम्मीद करते हैं कि देश अतीत की कड़वी फसल को भूल जाएगा. अगर बीटी कपास रेशे के मामले में एक त्रासदी थी तो जीएम सरसों भोजन, आस्था और संघवाद के मामले में एक आपदा बनने का खतरा है.' चिट्ठी में जोर देकर यह बात कही गई है कि जीएम मस्टर्ड बायो-सिक्योरिटी के लिए खास खतरा पैदा करती है, यह स्वदेशी किस्मों के साथ अपरिवर्तनीय पर-परागण, परागणकों के लिए खतरा और विदेशी जीन संरचनाओं पर निर्भरता को आगे बढ़ाती है. इसमें पीएम के उस भाषण का भी जिक्र है जिसमें उन्होंने कहा था, 'भारत का मुख्य दुश्मन दूसरे देशों पर निर्भरता है.'
इसके साथ ही इसमें लिखा है, 'आत्मनिर्भर भारत विदेशी जीनों पर नहीं पनप सकता. सच्ची आत्मनिर्भरता स्वदेशी प्रजनन, बीज संप्रभुता, एमएसपी खरीद और किसान-नेतृत्व वाले नए विचारों में है, न कि आत्मनिर्भरता के नाम पर जोखिम भरी बायो-टेक्नोलॉजी के प्रयोगों में.' इसके साथ ही किसानों ने केंद्र सरकार से आग्रह किया कि जब तक बायोसिक्योरिटी, संघवाद और किसानों के अधिकारों के मुद्दों की राष्ट्रीय हित में पूरी तरह से रक्षा नहीं हो जाती तब तक जीएम सरसों पर लगी रोक न हटाई जाए.
दरअसल पिछले दिनों देश के कई सीनियर साइंटिस्ट्स की तरफ से भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखी गई है. इस चिट्टी में वैज्ञानिकों ने जीएम सरसों पर लगी रोक हटाने की अपील की है. इन साइंटिस्ट्स की मानें तो सरकार से देश के सर्वोत्तम हित में, जरूरी डाक्यूमेंट्स के साथ, जीएम फसलों के लिए एक स्पष्ट नीतिगत ढांचा अदालत में पेश करने की जरूरत है. साइंटिस्ट्स का कहना है कि अक्टूबर 2022 में, भारत के पर्यावरण मंत्रालय ने हाइब्रिड बीज उत्पादन के लिए जीएम सरसों को मंजूरी दे दी थी. इसके तहत पहला हाइब्रिड डीएमएच-11 भी शामिल है. हालांकि, यह प्रक्रिया तब से ही कई कानूनी विवादों में फंसी हुई है जिससे और देरी हो रही है.
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