देश के उपभोक्ता जो भी रबी फसलों की उपज खरीदते हैं, उसका 40 से 67 परसेंट पैसा किसानों के पास जाता है. यह जानकारी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के एक सर्वे में सामने आई है. इसमें पैसे के भुगतान के बारे में भी बताया गया है. स्टडी कहती है कि उपज से जुड़े लेनदेन यानी ट्रांजैक्शन में नकद का बोलबाला है, मगर ऑनलाइन पेमेंट ने भी बड़ा उछाल दर्ज किया गया है.
इस सर्वे में रबी फसलों (खासकर टमाटर, प्याज और आलू) को शामिल किया गया है जो मई-जुलाई 2024 में उगाई और बेची गईं. सर्वे बताता है कि किसानों को उन उपजों का दाम अधिक मिला जो जल्द खराब होने वाली नहीं है, जबकि फल और सब्जियों का शेयर बहुत कम रहा.
देश के गेहूं किसानों को सबसे अधिक लाभ मिला है क्योंकि उपभोक्ता मूल्य का 67 परसेंट हिस्सा उनके पास गया है. इसकी बड़ी वजह है कि गेहूं एक नोटिफाइड कमॉडिटी है जिसका बड़ा हिस्सा सरकारी एजेंसियां एक सिस्टम के जरिये खरीदती हैं. चावल किसानों की बात करें तो उन्हें खुदरा दाम का 52 परसेंट हिस्सा मिला. चावल का यह ट्रेंड पिछले सर्वे में भी देखा गया था. इससे पता चलता है कि चावल की बिक्री में किसानों का एकसमान ट्रेंड चला आ रहा है.
2024 के सर्वे में पता चला कि गेहूं किसानों में से लगभग एक-चौथाई ने खरीद सिस्टम के तहत सरकार को अपनी उपज बेची है. न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर उपजों की खरीद किसानों को बाजार का विकल्प देती है. आरबीआई की सर्वे रिपोर्ट में कहा गया है कि 67 प्रतिशत लोगों का अनुमान बताता है कि उपभोक्ता मूल्य में गेहूं किसानों की हिस्सेदारी 53 से 74 प्रतिशत के बीच है.
रिपोर्ट बताती है कि किसानों को नहीं खराब होने वाली उपजों का अधिक दाम मिला है जबकि फल और सब्जियां, जो जल्द खराब होती हैं, उसके सबसे कम पैसे मिले हैं. व्यापारियों और खुदरा विक्रेताओं की बात करें तो खराब होने वाली उपजों में इन दोनों का शेयर 50 परसेंट से अधिक है. यानी फलों और सब्जियों का अधिक पैसा व्यापारियों और खुदरा दुकानदारों के पास जाता है. सर्वे में कहा गया है, खराब होने वाली उपजों (फल और सब्ज़ियां) की कीमतों में किसानों की हिस्सेदारी लगभग 40-63 प्रतिशत होने का अनुमान है."
सर्वे में कहा गया है कि दालों में मसूर किसानों को कुल दाम का लगभग 66 प्रतिशत और चना किसानों को लगभग 60 प्रतिशत मिलता है. दालों की खेती बढा़ने के लिए सरकार किसानों को कई सुविधाएं दे रही है, क्योंकि यह मुख्य रूप से छोटे किसानों द्वारा उगाया जाता है और इससे आयात पर निर्भरता को कम करना है. तिलहनों में रेपसीड और सरसों (आरएंडएम) के लिए किसानों की हिस्सेदारी 52 प्रतिशत रही, जबकि 2021 के एक अध्ययन में 55 प्रतिशत का अनुमान लगाया गया था.
सर्वे में किसानों, व्यापारियों और खुदरा विक्रेताओं को शामिल करके 12 रबी फसलों के लिए 18 राज्यों में 86 केंद्रों में मंडियों या गांवों को लिया गया. इसमें अलग-अलग जगहों के 10,699 लोग शामिल थे. यह सर्वे मई-जुलाई 2024 के दौरान आयोजित किया गया था, जिसमें अधिकांश शहरी बस्तियां शामिल रहीं.
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