बिहार में मखाना बोर्ड का गठन किसानों की समृद्धि की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है. यह न केवल मखाना किसानों की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करेगा बल्कि उनके उत्पादों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में नई पहचान भी दिलाएगा. केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में बिहार के मखाना किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण घोषणा की. बिहार में मखाना बोर्ड की स्थापना का निर्णय लिया गया है, जिसका उद्देश्य मखाना के उत्पादन, प्रसंस्करण, मूल्य संवर्धन और मार्केटिंग में सुधार लाना है. इस बोर्ड के लिए 100 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया है.
यह पहल मखाना किसानों के लिए एक इनकम बढ़ाने और बेहतर दाम बिहार में मखाना बोर्ड की स्थापना मखाना किसानों के लिए आशा की एक नई किरण है. अगर मखाना बोर्ड बेहतर काम किया तो इससे न केवल उत्पादन, प्रसंस्करण और मार्केटिंग में सुधार होगा बल्कि किसानों को आर्थिक रूप से भी सशक्त बनाया जा सकेगा.
यह पहल मखाना उद्योग के विकास के साथ-साथ किसानों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने अहम भूमिका निभाएगी. मखाना बोर्ड का गठन बिहार को न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मखाना उत्पादन के क्षेत्र में पहचान दिलाने में मददगार साबित होगा. मखाना बोर्ड मखाना उत्पादकों को तकनीकी मार्गदर्शन, प्रशिक्षण और मार्केटिंग सहायता देगा. साथ ही, यह सुनिश्चित करेगा कि किसानों को सरकारी योजनाओं का पूरा लाभ मिले. इसके अतिरिक्त, मखाना उत्पादन से जुड़े लोगों को किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) के माध्यम से संगठित किया जाएगा, जिससे उन्हें बेहतर बाजार पहुंच और लाभ प्राप्त हो सकेगा.
बिहार मखाना उत्पादन में देश का प्रमुख राज्य है, जो कुल उत्पादन का लगभग 90 परसेंट योगदान करता है. मखाने की खेती राज्य के लगभग 15,000 हेक्टेयर क्षेत्र में होती है, जिससे सालाना करीब 10,000 टन फूला हुआ मखाना उत्पादित होता है. उत्तर बिहार के दरभंगा, मधुबनी, पूर्णिया, कटिहार, सहरसा, सुपौल, अररिया, किशनगंज और सीतामढ़ी जैसे जिलों में मखाना उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है.बिहार में मखाना उत्पादन लगभग 5 लाख परिवारों की आजीविका का मुख्य स्रोत है. इनमें से अधिकांश परिवार मछुआरा समुदाय से आते हैं और मखाने की खेती, कटाई और प्रसंस्करण में प्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं. पारंपरिक रूप से मखाना स्थायी जल निकायों जैसे तालाबों, झीलों, और आर्द्रभूमियों में उगाया जाता है.
आईसीएआर की रिपोर्ट के अनुसार, मखाना उत्पादक किसानों को उपभोक्ताओं से मिलने वाले कुल लाभ का केवल 27 परसेंट ही प्राप्त होता है. दूर-दराज के किसानों को तो मात्र 10 परसेंट लाभ मिल पाता है. विपणन चैनल में बिचौलियों, कमीशन एजेंटों और व्यापारियों को 72.4 परसेंट तक का लाभ मिलता है. मखाने की कीमतें स्थानीय बाजारों की तुलना में दूर के बाजारों में 60-70 परसेंट अधिक होती हैं.
मखाना उत्पादन में सबसे बड़ी चुनौती इसकी श्रम-साध्य प्रक्रिया है. मखाना बीज की कटाई पूरी तरह से हाथों से की जाती है, जो कुल संचालन लागत का लगभग 40 परसेंट हिस्सा होती है. किसानों के खर्च को कम करने के लिए मखाना कटाई के लिए मशीनों का विकास जरूरी है. मखाना बोर्ड इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है.
मखाना न केवल स्वादिष्ट है बल्कि अत्यंत पौष्टिक भी है. इसमें 76.9 परसेंट कार्बोहाइड्रेट, 9.7 परसेंट प्रोटीन, 0.1 परसेंट वसा, 0.5 परसेंट खनिज, 0.02 परसेंट कैल्शियम, 0.9 परसेंट फॉस्फोरस और 0.004 परसेंट लोहा पाया जाता है. यह भारतीय घरों में नवरात्र, कोजगारा, ईद और शादी के मौसम जैसे विभिन्न त्योहारों के दौरान विशेष रूप से खाया जाता है. देश से पॉप्ड मखाना का निर्यात बादाम, काजू जैसे अन्य सूखे मेवों की तुलना में बहुत कम है. मखाना बोर्ड बनने से मखाना अधिक उत्पादन, कटाई और प्रसंस्करण में मशीनीकरण और मूल्य संवर्धन से निर्यात को बढ़ावा मिल सकता है.
कृषि उत्पादकता में वृद्धि: मखाना बोर्ड किसानों को आधुनिक खेती के तरीकों और वैज्ञानिक तकनीकों के बारे में जागरूक करेगा, जिससे उत्पादन में वृद्धि होगी.
निर्यात में बढ़ोतरी: मखाना का निर्यात वर्तमान में बहुत सीमित है. बोर्ड के प्रयासों से मखाना निर्यात को बढ़ावा मिलेगा, जिससे किसानों को वैश्विक बाजार तक पहुंच मिलेगी.
प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन: मखाना के प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन के लिए नई तकनीकों को अपनाने से किसानों को बेहतर मूल्य मिलेगा.
नए बाजारों की खोज: मखाना के लिए नए घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों की खोज की जाएगी, जिससे इसकी मांग बढ़ेगी.
गुणवत्ता मानकों का पालन: मखाना उत्पादों के लिए गुणवत्ता और सुरक्षा मानकों का पालन सुनिश्चित किया जाएगा, जिससे उत्पादों की विश्वसनीयता बढ़ेगी. किसानों को सीधे उपभोक्ताओं तक पहुंचने के अवसर मिलेंगे, जिससे बिचौलियों की भूमिका कम होगी और किसानों का लाभांश बढ़ेगा.
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