क्या है पूरा मामला: सरकार ने चावल के निर्यात पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया है. पहले गैर-बासमती और अभी हाल में बासमती चावल के निर्यात पर रोक लगा दी गई. देसी मार्केट में चावल की बढ़ती कीमतों को थामने और खाद्य सुरक्षा को बनाए रखने के लिए सरकार ने यह कदम उठाया है. इसमें एक जरूरी बात जान लेनी चाहिए. सरकार ने 20 परसेंट एक्सपोर्ट ड्यूटी के साथ उबले चावल को निर्यात की मंजूरी दे रखी है. इसके अलावा, 1200 डॉलर प्रति टन से अधिक रेट वाले बासमती चावल के निर्यात को मंजूरी है. टुकड़ा चावल पर पिछले सितंबर से प्रतिबंध है. हालांकि सरकार से सरकार के स्तर पर निर्यात की मंजूरी दी गई है. आइए पूरे मामले को पांच पॉइंट्स में समझते हैं.
चावल की पैदावार घटने की आशंका है. पिछले रबी सीजन में भी इसमें गिरावट देखी गई है. सरकार के तीसरे अनुमान के मुताबिक रबी सीजन 2022-23 में चावल का उत्पादन लगभग 14 फीसद कम रहा. रकबे की बात करें पिछले साल से अधिक इस बार धान की रोपाई हुई है, लेकिन देश के कुछ खास इलाके हैं जहां बारिश की कमी से फसल प्रभावित हुई है. कई जगह रोपाई प्रभावित हो रही है. तमिलनाडु का उदाहरण लें तो वहां अगस्त में सांबा चावल की रोपाई हो जाती है, लेकिन इस बार बारिश की कमी से यह पिछड़ रही है.
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चावल की पैदावार और कीमतों पर अल-नीनो का असर दिखेगा. देश के कई इलाकों में सितंबर अंत में चावल की नई फसल निकलेगी. जहां अगेती किस्मों की रोपाई हुई है, वहां सितंबर में धान की कटाई होगी. उसी वक्त अल-नीनो का असर बढ़ने की संभावना जताई जा रही है. कुछ विदेशी मौसम एजेंसियों ने सितंबर-अक्टूबर में अल-नीनो का प्रभाव तेज होने की आशंका जताई है. अगर अल-नीनो का असर बढ़ता है तो सितंबर में नए धान की आवक प्रभावित होगी. इससे धान और चावल की कीमतें बढ़ सकती हैं. यह अभी से दिखने लगा है. तमिलनाडु में पिछले साल धान का दाम जहां 27 रुपये था, अभी 33 रुपये प्रति किलो पर पहुंच गया है.
चावल पर निर्यात प्रतिबंध लगने से नफा और नुकसान की बात करें तो ये मामला सबके लिए बराबर है. ग्राहक इस कदम से थोड़ी राहत में हैं क्योंकि चावल के भाव में बड़ी छलांग नहीं दिख रही है, लेकिन चावल सस्ता भी नहीं है. दूसरी ओर, नुकसान में वे व्यापारी हैं जो चावल के निर्यात से अपना बिजनेस चलाते हैं. कई व्यापारियों के चावल से लदे बड़े-बड़े जहाज पोर्ट पर फंसे हैं. पूरी दुनिया में भारत चावल का सबसे बड़ा निर्यातक है. लेकिन सरकार के हालिया कदम से निर्यातक नाखुश हैं क्योंकि उनका बिजनेस ठप पड़ गया है.
फसल के हिसाब से बात करें तो इस बार किसानों को फायदा होगा क्योंकि सरकार ने चावल का न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी कि MSP बढ़ा दिया है. चावल मिलर ने किसानों से जो चावल खरीदा है, उसका रेट भी एमएसपी से अधिक है. आगे किसानों के लिए चावल के दाम में कोई गिरावट नहीं होगी. दूसरी ओर, निर्यात पर बैन लगने से देसी मार्केट में चावल के भाव तेजी से नहीं बढ़ेंगे. सरकार ने चावल का एक बेंचमार्क रेट तय किया है जिससे किसानों को अच्छी कीमत का फायदा मिल रहा है. हालांकि आम लोगों को महंगाई का थोड़ा असर देखने को मिल रहा है, लेकिन लंबी अवधि में दाम में स्थिरता आएगी.
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उबले चावल के निर्यात पर 20 परसेंट टैक्स लगाए जाने के बावजूद विदेशी बाजारों में इसकी बेहद मांग है. स्थिति ये है कि इंडोनेशिया जो कि चावल का बहुत बड़ा निर्यातक है, वह भी भारत से चावल मंगाना चाहता है. इसलिए एक्सपोर्टर सरकार से कुछ छूट चाहते हैं. एक्सपोर्टर का कहना है कि सरकार चावल के नियमों में कुछ ढील दे और स्पेसिफिकेशन के नियम में बदलाव किया जाए ताकि निर्यात में आसानी हो. निर्यातकों का कहना है कि अभी बासमती और गैर-बासमती चावल की कैटगरी होने से निर्यात में परेशानी हो रही है. एक्सपोर्टर चाहते हैं कि सरकार नियमों में कुछ छूट दे जिससे निर्यात चलता रहे.
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