मॉनसून से बेखबर पंजाब और हरियाणा!- GFX Sandeep Bhardwaj मॉनसून ने देश के लगभग सभी राज्यों में दस्तक दे दी है. इस साल मॉनसून की चाल समझ से परे है. पहले जहां मॉनसून में देरी हुई तो तो वहीं इस बार समय से पहले मॉनसून देशभर में छाने को तैयार है. अमूमन देशभर में मॉनसून पहुंचने में 36 दिन लेता है, लेकिन इस बार मॉनसून के 18 दिन में ही देशभर में छा जाने की संभावनाएं हैं. इसके साथ ही माना जा रहा है कि इस साल मॉनसून पर अल नीनो का असर दिखाई देगा. नतीजतन, मॉनसून में कम बारिश होगी और सूखे के हालात बन सकते हैं. इन हालातों में देश में खाद्यान्न उत्पादन में गिरावट आने के आसार हैं. मौजूदा समय में ये अनुमान खाद्यान्न संकट की तरफ इशारा कर रहे हैं, लेकिन दूसरी तरफ इन्हीं हालातों में यानी खराब मॉनसून और सूखे जैसे हालात में पंजाब और हरियाणा देश को खाद्यान्न संकट से निकालने में सक्षम नजर आते हैं. पंजाब और हरियाणा के किसानों की इस मेहनत को समझने के लिए पूरे मामले को विस्तार से समझने की जरूरत है.
देश के अंदर मॉनसून सीजन में ही कुल बारिश की 70 फीसदी बारिश होती ही है. ये ही बारिश जहां खरीफ फसलों को सिंचाई की पूरी खुराक उपलब्ध करती है तो वहीं मॉनसूनी बारिश से जमीन में नमी बनी रहती है, जो रबी सीजन की फसलों के लिए मददगार साबित होती है. लेकिन अल नीनो की वजह से मॉनसून सीजन में कम बारिश होने का अनुमान है. अल नीनो का मतलब प्रशांत महासागर में समुद्र का तापमान सामान्य से ज्यादा होने से है. इस वजह से अल नीनो पैर्टन बनता है, जो लू और अधिक गर्मी के लिए जिम्मेदार होता है.
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मसलन, मॉनसून सीजन में कम बारिश और सूखे के आसार है. मौसम वैज्ञानिक मान रहे हैं कि इस बार अगस्त में अल नीनो का असर दिखाई देने की 90 फीसदी संभावनाएं है, जिससे खरीफ और रबी सीजन की फसलों पर असर पड़ेगा. संभावनाएं हैं कि इस वजह से अन्न के उत्पादन में गिरावट हो सकती है और देश में खाद्यान्न उत्पादन गहरा सकता है. इसके मायने ये है कि देश में मंहगाई अपने शीर्ष पर हो सकती है.
इस साल मॉनसून, अल नीनो, सूखे के आसार और खाद्यान्न संकट की संभावनाओं के बीच पंजाब और हरियाणा के किसानों की मेहनत पर चर्चा जरूरी है. असल में हरित क्रांति के बाद से ही पंजाब और हरियाणा देश में खाद्यान्न सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. देश के अन्य राज्यों से तुलना के आधार पर कहा जाए तो गेहूं और चावल खरीद के सरकार पूल में पंजाब और हरियाणा की संख्या सबसे अधिक है. मसलन गेहूं खरीद में दोनों राज्यों की हिस्सेदारी 65 फीसदी से अधिक है तो वहीं चावल खरीद में दोनों राज्यों की हिस्सेदारी 40 फीसदी से अधिक है.
इसे एक ताजा उदाहरण से समझने की काेशिश करते हैं. इस साल मार्च और अप्रैल में हुई बेमौसम बारिश हुई. मसलन, इस बारिश से गेहूं की फसल को सबसे अधिक नुकसान पंजाब, हरियााण, उत्तर प्रदेश में हुआ है, लेकिन सरकारी खरीद के मामले में पंजाब और हरियाणा ही अन्य राज्यों से आगे रहे. मसलन, देश में कुल 262 लाख मीट्रिक टन गेहूं सरकारी पूल के लिए खरीदा गया, जिसमें से अकेले 121 लाख मीट्रिक टन पंजाब और 63 लाख मीट्रिक टन गेहूं हरियाणा से खरीदा गया. तीसरे नंबर पर मध्य प्रदेश रहा है, जहां 70 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदा गया, जबकि दो साल पहले मध्य प्रदेश ने सबसे अधिक गेहूं सरकारी पूल के लिए किसानों से खरीदा था.
बेशक पंजाब और हरियाणा के किसान देश में खाद्यान्न सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन मॉनसून में अल नीनो के प्रभाव वाले पिछले सालों में दोनों राज्यों में हुई गेहूं और चावल की हुई सरकारी खरीद को समझने की जरूरत है. वर्ष 2010 से तब के आंकड़ों को देखें तो वर्ष 2015 के मॉनसून में अल नीनो का असर दिखाई दिया था. मसलन, इस साल मॉनसून सीजन में कम बारिश हुई थी. वहीं इस साल खरीफ सीजन यानी चावल की सरकारी खरीद की बात करें तो पंजाब में 93 लाख मीट्रिक टन और हरियाणा में 28 लाख मीट्रिक टन चावल की सरकारी खरीद हुई थी. इस साल दूसरे नंबर पर 43 लाख मीट्रिक टन के साथ आंध्र प्रदेश था. तो तीसरे नंबर पर छत्तीसगढ़ था, जबकि कुल 342 लाख मीट्रिक टन चावल की खरीद हुई थी. देखा जाए तो सूखे वाले साल में सबसे अधिक चावल की खरीद पंजाब में ही हुई थी, जो कुल खरीद की अकेले 25 फीसदीसे अधिक थी.
मॉनसून को खरीफ सीजन की फसलाें के लिए बेहद ही जरूरी माना जाता है. ऐसे में जब इस साल मॉनसून पर अल नीनो का असर होने से सूखा पड़ने के आसार हैं तो देश के सभी राज्याें के किसान चिंतित हैं, लेकिन पंजाब के किसानों के बीच अल नीनो का जिक्र गायब सा है. असल में पंजाब और हरियाणा में माॅनसून का गणित फेल रहता है. इसके पीछे दो वजह हैं एक तो दोनों ही राज्यों में मॉनसून देश में सबसे बाद में पहुंचता है. अमूमन सबसे अंत यानी जुलाई के पहले सप्ताह में मॉनसून पंजाब और इससे लगते हरियाणा के इलाकों में दस्तक देता है. तब तक पंजाब और हरियाणा में धान की रोपाई शुरू हो जाती है. बिना बारिश ही धान रोपाई के लिए सिंचाई की व्यवस्था किसान ट्यूबवेलों से करते हैं. पंजाब सरकार के आंकड़ों के अनुसान खरीफ सीजन में धान की रोपाई यानी सिंचाई के लिए 15 लाख ट्यूबवेल जमीन के अंदर से पानी खींचते हैं. ट्यूबवेल चलाने में किसानों को किसी तरह की परेशानी ना हो, इसके लिए पंजाब सरकार राज्य के किसानों को अतिरिक्त बिजली उपलब्ध कराई जा सकती है.
मॉनसून पर अल नीनो संकट और सूखे की संभावनाओं के बीच जहां देशभर में धान के रकबे में कमी दर्ज की गई है तो वहीं पंजाब में इस बार धान का रकबा बढ़ने के आसार हैं. अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने पंजाब कृषि विभाग के निदेशक गुरविंदर सिंह के हवाले से कहा कहा है कि किसानों को पिछले साल कॉटन का दाम कम मिला है. ऐसे में पंजाब के किसानों का कॉटन फार्मिंंग से मोह भंग हुआ है. नतीजतन धान के रकबे में बढ़ोतरी के आसार हैं.
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