
उत्तर भारत में दिसंबर जनवरी में कोहरा और पाला पड़ना आम है लेकिन दक्षिण में जब यह मौसम होता है तो थोड़ी हैरानी होती है. लेकिन केरल और तमिलनाडु की कुछ जगहों पर तापमान जीरो से नीचे चला गया है. दक्षिण के मुन्नार और तमिलनाडु के नीलगिरी को खुशबूदार चाय बागानों के लिए जाना जाता है. लेकिन अब इन दोनों ही जगहों पर गिरते तापमान का असर बागानों पर नजर आने लगा है. इसकी वजह से पिछले कुछ दिनों में उत्पादन प्रभावित हुआ है. इस क्षेत्र की एक चाय प्रोडक्शन कंपनी के सूत्रों ने बताया कि अकेले मुन्नार क्षेत्र में तापमान गिरने से करीब 100 हेक्टेयर फसल का नुकसान हुआ है. इससे तीन महीने के प्रोडक्शन पर असर पड़ने की संभावना है.
UPASI टी रिसर्च फाउंडेशन के डेटा से पता चलता है कि चेंदुवरई, साइलेंट वैली, लेचमी, देवीकुलम और नल्लाथन्नी, देवीकुलम में UPASI हेडक्वार्टर में तापमान जीरो डिग्री तक पहुंच गया जबकि 1 डिग्री रिकॉर्ड किया गया. हैरिसंस मलयालम लिमिटेड-SBU A के वाइस प्रेसिडेंट (टी ऑपरेशंस) अनिल जॉर्ज ने अखबार बिजनेसलाइन से कहा कि तापमान में अचानक गिरावट के बाद लॉकहार्ट एस्टेट और मुन्नार के दूसरे चाय बागानों में कड़ाके की ठंड पड़ी. समुद्र तल से 6,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित लॉकहार्ट एस्टेट में तापमान जीरो से नीचे चला गया.
अनिल जॉर्ज ने बताया कि ज्यादा ठंड से चाय की झाड़ियों को बहुत ज्यादा नुकसान हो रहा है और पत्तियां झड़ रही हैं. अकेले लॉकहार्ट एस्टेट में करीब 49.04 हेक्टेयर (एस्टेट के कुल एरिया का लगभग 14.3 प्रतिशत) प्रभावित हुआ है. उन्होंने कहा कि फसल का नुकसान होने की उम्मीद है और रिकवरी बेहतर मौसम की स्थिति पर निर्भर करेगी. इसमें गर्म तापमान, ज्यादा नमी और बारिश शामिल है. उन्होंने दो घटनाओं - साइबेरियन हाई और कैटाबेटिक फ्लो - का जिक्र किया. दक्षिण भारत के ऊंचे इलाकों में चाय उगाने वाले क्षेत्रों में बहुत कम तापमान के कारण ये स्थितियां पैदा हो रही हैं.
साइबेरियन हाई हर साल हिमालय तक कम तापमान वाली हवा लाता है और यह दक्षिण भारत की ओर बढ़ने से रोकता है. लेकिन इस साल जलवायु परिवर्तन के कारण यह दक्षिण की ओर बढ़ गया. जब यह नीलगिरी और मुन्नार की ओर पहुंचता है तो रात में हवा घनी हो जाती है और कैटाबेटिक फ्लो के कारण चाय उगाने वाले क्षेत्रों में घाटियों की ओर बहती है जिससे आस-पास के चाय के खेतों में पाले से बड़े पैमाने पर नुकसान होता है. उन्होंने बताया कि यह दक्षिण भारत में चाय उगाने वाले इलाकों में क्लाइमेट चेंज का एक और असर है.
नीलगिरी भी इसका अपवाद नहीं है क्योंकि ऊटी, कोटागिरी और दूसरे अंदरूनी इलाकों में पाला पड़ रहा है. नीलगिरी बॉट टी लीफ मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट धनंजयन कृष्णमूर्ति ने बिजनेसलाइन को बताया कि ज्यादातर चाय के बाग छोटे किसानों के हैं और गिरता तापमान उनकी कमाई पर असर डाल रहा है. उन्होंने कहा कि प्रोडक्शन के नुकसान का अंदाजा लगाना अभी जल्दबाजी होगी.पाले का प्रोडक्शन पर असर 15 दिन बाद ही पता चल पाएगा. इंडस्ट्री के सूत्रों ने बताया कि केरल में चाय का प्रोडक्शन लगभग 64 मिलियन किलो होने का अनुमान है और इसमें से 25 प्रतिशत हिस्सा मुन्नार इलाके से आता है.
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