नार्वे का अनोखा बीज बैंकइस बार किसान दिवस स्पेशल में हम आपको करवा रहे हैं दुनिया भर के खेतों की सैर. बता रहे हैं दुनिया भर के किसानों की इनोवेशन. इस आर्टिकल में जानिए राजस्थान में बनाई जाने वाली बावड़ियों की कहानी. ऐसी कहानी जो आपको बताएगी कि नॉर्वे के बीज बैंक के बारे में. दुनिया में जब भी बाढ़, सूखा, भूकंप, युद्ध या महामारी जैसी बड़ी आपदाओं की बात होती है, तो सबसे पहला खतरा खाद्य सुरक्षा पर मंडराता है.अगर फसलें नष्ट हो जाएं, तो इंसान का जीवन संकट में पड़ सकता है। इसी खतरे से दुनिया को बचाने के लिए नॉर्वे के बर्फीले पहाड़ों के बीच एक अनोखा और बेहद सुरक्षित बीज भंडार बनाया गया है, जिसे सवालबार्ड ग्लोबल सीड वॉल्ट कहा जाता है। इसे आम भाषा में डूम्सडे सीड बैंक भी कहा जाता है।यह बीज बैंक नॉर्वे के स्पिट्सबर्गन द्वीप पर स्थित है, जो आर्कटिक सर्कल के बेहद करीब है। यहां का तापमान सालभर बेहद ठंडा रहता है। बीजों को सुरक्षित रखने के लिए वॉल्ट के अंदर तापमान माइनस 18 डिग्री सेल्सियस रखा जाता है, जिससे बीज सैकड़ों साल तक खराब नहीं होते।
इस वैश्विक बीज बैंक की शुरुआत 10 फरवरी 2008 को की गई थी। आज यहां दुनिया भर से भेजे गए 13 लाख से ज्यादा बीज नमूने सुरक्षित रखे गए हैं। इनमें 6,000 से अधिक फसल प्रजातियों के बीज शामिल हैं। गेहूं, चावल, मक्का, जौ, आलू जैसी मुख्य फसलों के साथ-साथ कई दुर्लभ और पारंपरिक देसी बीज भी यहां सुरक्षित हैं।
बीजों को खास तकनीक से पैक किया जाता है। हर बीज की तीन-तीन कॉपियां बनाई जाती हैं और उन्हें नमी से दूर, ठंडी और सूखी जगह पर रखा जाता है। मोटी बर्फीली चट्टानें और प्राकृतिक ठंड इस वॉल्ट को और भी सुरक्षित बनाती हैं।
सवालबार्ड सीड वॉल्ट को बेहद मजबूत बनाया गया है। यह वॉल्ट पहाड़ के अंदर करीब 120 मीटर गहराई में स्थित है। इसके दरवाजे मोटे स्टील के बने हैं, जो भूकंप, सुनामी और यहां तक कि परमाणु हमले का भी सामना कर सकते हैं। समुद्र का जलस्तर बढ़ने पर भी पानी वॉल्ट के अंदर नहीं जा सकता।
इस बीज बैंक को नॉर्वे सरकार ने बनवाया है और इसका रखरखाव भी मुफ्त में करती है। दुनिया के 130 से ज्यादा देश इस वॉल्ट में अपने बीज सुरक्षित रख चुके हैं।
भारत भी इस वैश्विक प्रयास का अहम हिस्सा है। हमारे देश ने यहां 1 लाख से ज्यादा देसी बीज किस्में जमा की हैं। इनमें बासमती चावल, देसी बाजरा, काला चना, दालें और कई पारंपरिक फसलें शामिल हैं।
भारत सरकार और कृषि से जुड़ी संस्थाएं, जैसे ICAR (भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद), इन बीजों को यहां भेज चुकी हैं।
इन बीजों का मकसद साफ है—अगर भविष्य में जलवायु परिवर्तन, बीमारी या प्राकृतिक आपदा के कारण भारत की फसलें खतरे में पड़ती हैं, तो इन्हीं बीजों से दोबारा खेती की जा सके।
इस बीज बैंक की अहमियत का सबसे बड़ा उदाहरण सीरिया है। वहां गृहयुद्ध के दौरान खेती पूरी तरह तबाह हो गई थी। उस समय सवालबार्ड सीड वॉल्ट से सीरियाई बीज निकाले गए और दोबारा फसल उगाई गई। इससे साबित हुआ कि यह वॉल्ट सिर्फ संग्रहालय नहीं, बल्कि संकट के समय जीवन रक्षक है।
जलवायु परिवर्तन, बढ़ता तापमान और नई-नई बीमारियों के कारण खेती पर खतरा बढ़ रहा है। विशेषज्ञों के मुताबिक, हर साल दुनिया से करीब 100 फसल प्रजातियां खत्म हो रही हैं। ऐसे में यह बीज बैंक फसलों के लिए बीमा की तरह काम करता है।
नॉर्वे के प्रधानमंत्री ने इसे “भविष्य की पीढ़ियों के लिए सबसे कीमती उपहार” बताया है। अगर कभी पूरी दुनिया में बड़ी आपदा आती है, तो यही बीज इंसानियत को फिर से हरा-भरा बनाने में मदद करेंगे।
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today