केंद्रीय पौधशाला फसल अनुसंधान संस्थान (CPCRI) के निदेशक डॉ. के. बालचंद्र हेब्बार ने बताया कि संस्थान द्वारा विकसित की गई फसल प्रणाली (cropping systems) खेती की उत्पादकता, मुनाफे और जलवायु सहनशीलता को बेहतर बना सकती है. ये मॉडल खासतौर पर नारियल और सुपारी की फसलों पर आधारित हैं. सीपीसीआरआई की तरफ से विकसित एक प्रमुख मॉडल नारियल, काली मिर्च, केला और अनानास की फसलों का मिश्रण है. इस प्रणाली से प्रति हेक्टेयर सालाना 13.5 से 14 लाख रुपये तक की आय होती है, जो अकेले नारियल की फसल से होने वाली आमदनी से 2-3 गुना ज्यादा है. यह मॉडल अब तक नारियल की खेती वाले 22 लाख हेक्टेयर में से लगभग 10% क्षेत्र में अपनाया गया है. लेकिन इसके विस्तार की बड़ी संभावना है.
एक और प्रभावशाली मॉडल सुपारी, काली मिर्च, कोको और केले की मिश्रित खेती है. यह प्रणाली किसानों को सालभर स्थिर आय देती है. इससे सालाना 10 से 14.4 लाख रुपये तक की शुद्ध आमदनी होती है. यह मॉडल छोटे और मझोले किसानों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद साबित हो सकता है.
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हेब्बार ने बताया कि नारियल के पौधों की कतारों के बीच में ट्रेंच (गड्ढे) बनाकर उसमें जैविक कचरा डालने से मिट्टी की नमी बनी रहती है और इसकी गुणवत्ता में सुधार होता है. इससे फसल की उपज में 20-30% की बढ़ोतरी देखी गई है. यह तकनीक सूखे मौसम में भी फसलों को नुकसान से बचाती है.
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सीपीसीआरआई ने नारियल, सुपारी और कोको की कई उन्नत किस्में विकसित की हैं, जो अधिक पैदावार और जलवायु प्रतिरोधक क्षमता रखती हैं. जैसे:
इन किस्मों को अपनाने से उत्पादन में 10 फीसद तक की बढ़ोतरी संभव है. यह 'विकसित कृषि संकल्प अभियान' के तहत सीपीसीआरआई की पहल.
सीपीसीआरआई 'विकसित कृषि संकल्प अभियान' के तहत किसानों को फील्ड लेवल पर प्रशिक्षण और वैज्ञानिक तरीके सिखाने का काम कर रहा है. इसका उद्देश्य खेती को अधिक लाभदायक, टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल बनाना है.
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