भारत में अब खेती में तकनीक के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जा रहा है. फिर चाहे वो ड्रोन से खाद और कीटनाशकों का छिड़काव करना हो या आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (AI) तकनीक के इस्तेमाल से फसल की निगरानी का बात हो. इसी क्रम में महाराष्ट्र भी आगे कदम बढ़ा रहा है, जो प्रमुख गन्ना उत्पादन में राज्यों में शामिल है. बीते दिन महराष्ट्र के पुणे में गन्ने की खेती में एआई के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए एक कार्यक्रम आयाेजित हुआ. इसमें एनसीपी (एससीपी) प्रमुख और पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजीत पवार, राज्य के कृषि मंत्री माणिकराव कोकाटे और सहकारिता मंत्री बालासाहेब पाटिल मौजूद थे. शरद पवार ने गन्ना किसानों को 25 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर के रेट से AI तकनीक दिलाने की बात कही. इसमें से किसानों को मात्र 9 हजार रुपये खर्च करने होंगे.
शरद पवार ने सोमवार को 'कैसे खेती के क्षेत्र जैसे गन्ना खेती, चावल और बागवानी में एआई का इस्तेमाल किया जा सकता है' विषय पर आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि गन्ने की खेती में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस्तेमाल से इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था बदल सकती है और किसानों का जीवन स्तर बेहतर हो सकता है. इस दौरान AI तकनीक को ज्यादा से ज्यादा किसानों तक पहुंचाने के लिए वसंतदादा शुगर इंस्टीट्यूट और कृषि विकास ट्रस्ट के बीच एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए गए.
पवार ने गन्ने के खेतों में एआई सक्षम प्रणाली बनाने के खर्च को लेकर बात करते हुए कहा कि शुरुआती लागत 25,000 रुपये प्रति हेक्टेयर है. पवार ने कहा कि इसमें से 9,000 रुपये किसान को खर्च करने होंगे, 6,750 रुपये चीनी मिल को और 9,250 रुपये वसंतदादा संस्थान की ओर से दिए जाएंगे. यह अच्छी बात है कि राज्य कृषि विभाग, महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक अब इस परियोजना में ज्यादा रुचि ले रहे हैं. एआई को लागू करने के लिए ड्रिप सिंचाई जरूरी है. ऐसे में उन्होंने प्रमुख ड्रिप सिंचाई प्रणाली निर्माताओं से मूल्य निर्धारण को कम करने का आग्रह किया है.
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पवार ने क्षेत्र की खामियों की ओर इशारा करते हुए कहा कि चीनी मिलों को पर्याप्त गन्ना नहीं मिल रहा है. इसके कारण पेराई सत्र सिर्फ 100 दिन या उससे भी कम समय तक चलता है. यही वजह है कि फैक्ट्री मशीनरी का कम इस्तेमाल होता है और वित्तीय व्यवहार्यता पर नकारात्मक असर पड़ता है. उन्होंने कहा कि इसका समाधान प्रति एकड़ गन्ने की पैदावार बढ़ाने में है और इसे हासिल करने के लिए एआई एक प्रमुख भूमिका निभा सकता है.
एआई का इस्तेमाल करके गन्ने की पैदावार बढ़ाना और इस तरह अधिक चीनी और इथेनॉल जैसे उप-उत्पादों का उत्पादन करना सही दृष्टिकोण है. एआई गन्ने की अर्थव्यवस्था को बदल सकता है. यह किसानों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने और अच्छी आय उत्पन्न करने में मदद कर सकता है, इसलिए हमें इस तकनीक को बड़े पैमाने पर लागू करना चाहिए. पवार ने कहा कि एआई सभी फसलों के लिए उपयोगी होगा, लेकिन यह गन्ने के लिए एक सच्चा गेम-चेंजर होगा.
उन्होंने कहा कि कृषि विकास ट्रस्ट ने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की मदद से एक कार्यक्रम शुरू किया है. पवार ने कहा कि वसंतदादा चीनी संस्थान और कृषि विकास ट्रस्ट के विशेषज्ञ मिलकर यह पता लगाने के लिए काम कर रहे हैं कि खेतों में मौसम केंद्र और आश्रय कैसे स्थापित किए जाएं, गन्ने की पैदावार बढ़ाने के लिए उनका उपयोग कैसे किया जाए. वे विभिन्न चीनी मिलों का दौरा करके यह जानकारी देंगे.
उन्होंने कहा कि हर चीनी मिल में कृषि अधिकारी होते हैं. मैंने लगातार शिकायत की है कि ये अधिकारी केवल गन्ना बोने की तिथियों, कटाई के कार्यक्रम और परिवहन व्यवस्था पर ध्यान केंद्रित करते हैं. वे इस बात पर ध्यान नहीं देते कि गन्ना कैसे उगता है, इसकी गुणवत्ता या रिकवरी दर कैसे सुधारी जाए. मैं सभी सहकारी चीनी मिलों से अनुरोध करना चाहूंगा कि वे अपने कृषि विभागों को बेहतर बनाने के लिए कदम उठाएं. जरूरत पड़ने पर वीएसआई जरूरी प्रशिक्षण देगा. (पीटीआई)
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