केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान (CISH) की स्थापना एक जून 1984 को केंद्रीय उत्तर मैदानी उद्यान संस्थान के रूप में हुई, जिसे 14 जून 1995 को केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान रहमानखेड़ा में दोबारा नामित किया गया. फिलहाल यह संस्थान 40 सालों से विभिन्न क्षेत्रों में देश की सेवा कर रहा है. उपोष्ण फल फसलों और एकीकृत कृषि प्रणालियों को विकसित करने के उद्देश्य से संबंधित फसल प्रणालियों पर अनुसंधान और विकास के पहलुओं पर संस्थान के द्वारा काफी कार्य हुए हैं. रहमान खेड़ा स्थित प्रायोगिक फार्म का क्षेत्रफल 132.5 हेक्टेयर है. संस्थान की आधुनिक वैज्ञानिक नर्सरी के द्वारा आम, अमरूद, आंवला और बेल की 2 लाख से अधिक रोपण सामग्री का उत्पादन हो चुका है. संस्थान किसान की आय को दोगुना करने की दिशा में प्रयासरत है. वहीं पूर्वी भारत हेतु उपोष्ण बागवानी फसलों की आवश्यकता हेतु संस्थान ने मखदुमपुर मालदा पश्चिम बंगाल में कृषि विज्ञान केंद्र एवं क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र की भी स्थापना की है.
केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान अपनी नई प्रौद्योगिकी के माध्यम से किसानों की आय में वृद्धि कर रहा है. संस्थान ने आम, केला एवं अमरूद में उकठा जैसी घातक बीमारी की समस्याओं का समाधान किया है. संस्थान के द्वारा समुद्री मार्ग से आम के निर्यात को बढ़ावा देकर विदेशी मुद्रा भंडार का विस्तार करने की दिशा में काम कर रहा है. आम के लिए समुद्री मार्ग निर्यात प्रोटोकॉल भी विकसित किया है. इसके अलावा 40 सालों में संस्थान की कई ऐसी उपलब्धियां भी रही है, जिसकी मदद से बागवानी क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव देखने को मिले हैं. आम के क्षेत्र में उत्तर प्रदेश को सबसे ज्यादा फायदा संस्थान के शोध परिणाम के फल स्वरुप मिला है. केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के परिसर में दुनिया का सबसे बड़ा जर्म्प्लाज्म रिपोजिटरी को विकसित किया गया है. वर्तमान समय में फील्ड जीन बैंक में 772 आम जनन द्रव्य संग्रहित की है.
केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के द्वारा आम की दो रंगीन किस में भी विकसित की गई है जिनमें सीआईएसएच अंबिका एवं सीआईएसएच अरुणिका है. अमरूद की 4 किस्में हैं जिनमें सीआईएसएच ललित, सीआईएसएच श्वेता, सीआईएसएच धवन और सीआईएसएच लालिमा है. इसके अलावा जामुन की सीआईएसएच जामवंत और बेल की सीआईएसएच-3 किस्म को विकसित किया जा चुका है.
केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान ने आम की किस्म रटौल को जीआई टैग किया है. संस्थान के द्वारा आम की किस्मों को गौरजीत, बनारसी लंगड़ा, चौसा में जीआई टैग प्राप्त करने की प्रक्रिया में है, जो उत्पादको यूपी से विपणन के लिए अच्छी कीमत दिलाने में मदद करेगा. इसके अलावा दशहरी आम में उच्च घनत्व 500 पौधे प्रति हेक्टेयर और अमरूद प्रजाति इलाहाबाद सफेदा और ललित को 500 पौधे प्रति हेक्टेयर अनुकूलित भी किया गया है .
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केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के द्वारा शहरी क्षेत्र में बागवानी की तकनीक को विकसित करने के लिए हाइड्रोपोनिक्स के ऐसे मॉडल तैयार किए गए हैं, जिनकी लागत कम है और इनको बड़े ही आसानी से घर की छतों या बालकनी में लगाया जा सके. इनके माध्यम से शहरी लोग भी बागवानी के माध्यम से तैयार सब्जियों को उगा सकेंगे
केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के द्वारा आम के बागों में हल्दी की सफल खेती की तकनीक को विकसित किया गया. मलिहाबाद क्षेत्र में एक गांव में हल्दी के बीज को बागों में सह-फसल के द्वारा रोपित किया गया. इससे 350 से ज्यादा किसान परिवारों को लाभ मिला.
केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के द्वारा आम के बागों में लगने वाले मिलीबग, हापर, लीफ वेबर, शूट गाल, साइला, पाउडरी मिल्ड्यु, सोल्डर ब्राउनिग, एंथ्रोक्नोज, सूटि गोल्ड, अमरूद में शूट बोरर के खिलाफ नए जीव नाशी रसायनों और उनकी कम खुराक का उपयोग करके कीट रोग प्रबंधन को विकसित किया गया, जिससे किसानों को काफी लाभ मिला है. एफओसी टीआर-4 केले के पौधे के उत्पादन के लिए इन विट्रो चरण में बायो- इम्युनो योगीक का उपयोग करने के लिए एक उत्तक संवर्धन तकनीक को भी विकसित किया गया है.
बागवानी के लिए केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के द्वारा अंग्रेजी और हिंदी में 9 मोबाइल ऐप विकसित किए गए. इन ऐप के माध्यम से पके हुए आम के उत्पाद, कच्चे आम के उत्पाद, अमरूद के प्रसंस्कृत उत्पाद, आम की कटाई के सलाहकार और आम के बगीचे पर आधारित कुकुटपालन, आंवला उत्पाद, आम बाबा, उपोष्ण कटिबंधीय फल और बागवान मित्र जैसे एप को विकसित किया गया है. इसके अलावा फलों और फसलों के 11 मूल्य संवर्धित उत्पाद, जिनमें सीआईएसएच ग्लू ट्रैप और सीआईएसएस बायो एनहांसर का उत्पादन का व्यवसायीकरण भी किया गया. संस्थान के द्वारा अब तक 35000 किसानों को विभिन्न तकनीकों से प्रशिक्षित किया जा चुका है.
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