CIA की एक गलती की सजा भुगतेगी गंगा! नंदा देवी में दफन एक परमाणु राज सबकुछ कर देगा तबाह

CIA की एक गलती की सजा भुगतेगी गंगा! नंदा देवी में दफन एक परमाणु राज सबकुछ कर देगा तबाह

साल 1965 में CIA और भारत के इंटेलिजेंस ब्यूरो ने भारत की दूसरी सबसे ऊंची चोटी नंदा देवी पर एक सीक्रेट मिशन लॉन्‍च किया. इस मिशन के तहत नंदा देवी एक ऐसा डिवाइस इंस्‍टॉल किया जो न्‍यूक्लियर एनर्जी से ऑपरेट होता था. अभी तक किसी प्रदूषण की आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन एक्सपर्ट्स ने लंबे समय से चेतावनी दी है कि रेडियोएक्टिव मटेरियल पहाड़ की बर्फ से निकलने वाली नदियों के लिए खतरा पैदा कर सकता है.

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CIA की एक गलती की सजा भुगतेगी गंगा! नंदा देवी में दफन एक परमाणु राज सबकुछ कर देगा तबाह

भारत में एक रिपोर्ट ने हंगामा मचाकर रखा है. इस रिपोर्ट के साथ ही भारत के हिमालय में दबा एक राज भी सामने आ गया है. अमेरिकी इंटेलीजेंस एजेंसी सीआईए की एक खोई हुई न्यूक्लियर डिवाइस अबतक वहां दबी हुई है जहां से गंगा नदी निकलती है. इस डिवाइस को करीब 60 साल पहले सीआईए ने नंदा देवी के पास छोड़ दिया था. अब माना जा रहा है कि यह न्‍यूक्लियर डिवाइस गंगा के साथ पूरे हिमालय के पर्यावरण और कई गांवों के लिए खतरा बन गई है. 

क्‍यों लगाई गई थी डिवाइस 

साल 1965 में चीन के नए-नए न्यूक्लियर प्रोग्राम की वजह से कोल्ड वॉर को लेकर चिंताएं चरम पर थीं. इसी दौरान CIA और भारत के इंटेलिजेंस ब्यूरो ने भारत की दूसरी सबसे ऊंची चोटी नंदा देवी पर एक सीक्रेट मिशन लॉन्‍च किया. इस मिशन के तहत नंदा देवी एक ऐसा डिवाइस इंस्‍टॉल किया जो न्‍यूक्लियर एनर्जी से ऑपरेट होता था. यह डिवाइस रेडियोआइसोटोप थर्मोइलेक्ट्रिक जनरेटर (आरटीजी) पर आधारित थी. यह कई किलोग्राम प्लूटोनियम से ऑपरेट होता था. इसका मकसद उन सेंसर्स को ताकत देना था जो सीमा पार चीनी मिसाइल और परमाणु परीक्षणों की जासूसी करना था. 

अमेरिका नहीं मानता सच 

नंदा देवी पर आए भयंकर बर्फीले तूफान में फंसकर, टीम ने डिवाइस को पहाड़ पर छिपा दिया और पीछे हट गई. जब पर्वतारोही लौटे तो आरटीजी और उसका प्लूटोनियम कोर गायब हो गया था. न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स की रिपोर्ट के अनुसार डिवाइस शायद हिमस्खलन में कहीं बइ गई या ग्लेशियर में गहराई में दब गया. कई दशक तक चले भारत और अमेरिका के खोज अभियानों में जनरेटर का पता नहीं चल पाया है और न ही कोई सरकार यह बताने को तैयार है कि उसका क्या हुआ. अमेरिका आज तक इस सच को मानने से इनकार कर देता है. वहीं कुछ अधिकारियों और लेखकों का मानना है कि भारतीय दल ने शायद चुपचाप उपकरण बरामद कर लिया हो, जबकि कुछ कहते हैं यह डिवाइस अभी भी नंदा देवी की अस्थिर बर्फ और चट्टानों में कहीं फंसी हुई है. 

गंगा के लिए बड़ा खतरा 

यह ग्लेशियर में ही खोया हुआ है, और हालांकि अभी तक किसी प्रदूषण की आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन एक्सपर्ट्स ने लंबे समय से चेतावनी दी है कि रेडियोएक्टिव मटेरियल पहाड़ की बर्फ से निकलने वाली नदियों के पर्यावरण के लिए खतरा पैदा कर सकता है. भारत के न्‍यूक्लियर एनर्जी कमीशन की तरफ से 1978 में किए गए एक सर्वे में स्थानीय नदियों में प्लूटोनियम प्रदूषण का कोई पता नहीं चला, लेकिन डिवाइस की जगह का सटीक पता भी नहीं लगा सका. यह मामला बेहद गंभीर है क्योंकि नंदा देवी के ग्‍लेशियर्स ऋषि गंगा और धौलीगंगा नदियों के लिए पानी मुहैया कराते हैं. ये अलकनंदा और आखिरी में भागीरथी नदियों से मिलकर गंगा नदी बनाती हैं, जो नीचे रहने वाले करोड़ों लोगों के लिए लाइफ लाइन है. 

समुदायों पर भी रिस्‍क 

विशेषज्ञों का कहना है कि बर्फ में गहराई में दबा हुआ आरटीजी बड़ा खतरा पैदा करता है. अगर इसमें कोई भी दरार आई तो फिर रेडियोधर्मी पदार्थ पिघले हुए पानी और तलछट में मिल सकते हैं, जो घनी आबादी वाले मैदानी इलाकों की ओर बहते हैं. उत्तराखंड की नाजुक घाटियों में जब भी बाढ़, हिमस्खलन या बर्फीली चट्टान के ढहने जैसी कोई घटना होती है, तो पर्यावरणविदों और स्थानीय समुदायों पर खतरा और बढ़ सकता है. 

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