दिवाली के बाद बिहार समेत पूरे देश में छठ पूजा की तैयारियां शुरू हो जाती हैं. इतना ही नहीं अब छठ पूजा विदेशों में भी मनाई जाती है. जो लोग काम के सिलसिले में दूसरे देशों में रह रहे हैं वे वहां भी इस त्योहार को बड़े धूमधाम से मनाते रहे हैं. हिंदू धर्म में छठ पूजा का विशेष महत्व है. यह त्यौहार चार दिनों तक चलता है. यह व्रत कठिन व्रतों में से एक है. पंचाग के अनुसार छठ पूजा का यह पावन पर्व हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है. यह व्रत बच्चों की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और उज्ज्वल भविष्य की कामना के लिए रखा जाता है. छठ पूजा का व्रत रखने वाले लोग 24 घंटे से अधिक समय तक निर्जला व्रत रखते हैं.
छठ पर्व का मुख्य व्रत षष्ठी तिथि को मनाया जाता है, लेकिन यह पर्व चतुर्थी से प्रारंभ होकर सप्तमी तिथि को सुबह सूर्योदय के समय अर्घ्य देने के बाद समाप्त होता है. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि 18 नवंबर - शनिवार- सुबह 09:18 बजे शुरू होगी और अगले दिन - 19 नवंबर-रविवार-सुबह 07:23 बजे समाप्त होगी. उदयातिथि के अनुसार- छठ पूजा 19 नवंबर को है.
ये भी पढ़ें: Bhai Dooj 2023: 14 या 15 नवंबर, इस साल कब मनाया जाएगा भाई दूज? जानें पूजा विधि मुहूर्त और इसका महत्व
छठ पूजा को सबसे पवित्र त्योहार माना गया है. इसकी शुरुआत नहाय खाय से होती है. अगले दिन खरना करना होता है. और तीसरे दिन छठ पर्व का प्रसाद बनाया जाता है. छठ पर डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. आखिरी दिन उगते सूर्य की पूजा की जाती है. हर दिन का अपना महत्व है. जिस वजह से हर दिन अलग-अलग तरीके से पूजा अर्चना की जाती है.
नहाय खाय के दिन कद्दू खाने के पीछे धार्मिक मान्यताओं के साथ-साथ वैज्ञानिक महत्व भी है. इस दिन व्रती प्रसाद के रूप में कद्दू-चावल ग्रहण कर 36 घंटे तक निर्जला व्रत पर रहती हैं. कद्दू खाने से शरीर को कई तरह के पोषक तत्व मिलते हैं. कद्दू में पर्याप्त मात्रा में एंटी-ऑक्सीडेंट और पानी पाया जाता है. इसके अलावा यह हमारे शरीर में शुगर लेवल को भी बनाए रखता है. कद्दू को इम्यूनिटी बूस्टर के तौर पर खाया जाता है जो व्रत रखने वालों को 36 घंटे तक रोजा रखने में मदद करता है.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today