भारतीय समाज में कहावतें केवल लोकज्ञान तक ही सीमित नहीं रही हैं, बल्कि भारत जैसे कृषि प्रधान देश में यह कहावतें समय–समय पर किसानों को खेती और मौसम से जुड़ी विभिन्न चरणों की जानकारी भी देती रही हैं. आज भले ही कृषि तकनीक आधारित हो चुकी हो, मगर फिर भी घाघ और भड्डरी द्वारा कृषि को लेकर कही गई कहावतें आज भी जनमानस के बीच प्रासंगिक बनी हुई हैं. वरिष्ठ पत्रकार रविशंकर उपाध्याय कहते हैं कि इनकी कहावतों ने समय, मौसम और फसल चक्र की बारीकियों को इतने सहज और सटीक ढंग से व्यक्त किया है कि वे आज भी खेती के हर चरण में मार्गदर्शक साबित होती हैं.
इसी कड़ी में आज हम आपको "घाघ और उनकी कहावतें" नामक पुस्तक से जुड़ी खेती और मौसम को लेकर प्रचलित कहावतें इस खबर के जरिए बताने जा रहे हैं, जो कम पढ़े-लिखे किसान को भी कृषि सहित मौसम का विशेषज्ञ बनाता आ रहा है. घाघ की कई कहावतें आज भी जनमानस के बीच लोकप्रिय बनी हुई हैं. घाघ की अधिकांश कहावतें कृषि से जुड़ी होती हैं, जिनमें खेती करने से लेकर मौसम से संबंधित गहरी जानकारी समाहित होती है. इनमें वे खास तौर पर इस बात पर जोर देते हैं कि खेती का काम खुद के हाथों करना चाहिए. जैसे वे कहते हैं...
इस कहावत के ज़रिए घाघ बताते हैं कि किसानी करना, पत्र लिखना (किसी से सहायता की प्रार्थना करना), और घोड़े की तंग (घोड़े की जीन में लगने वाला चमड़े का चौड़ा पट्टा) कसने का काम हमेशा अपने ही हाथों से करना चाहिए. ये काम किसी और से कराने पर नुकसान हो सकता है, चाहे आपके साथ लाखों लोग ही क्यों न हों.
अर्थात, जिस पेड़ पर बगुला बैठ जाए, वह बेकार हो जाता है. जिस घर में सन्यासी (मुड़िया) का वास हो जाए, वह भी निष्प्रयोजन हो जाता है. उसी तरह जिस राज्य का राजा लोभी हो जाए और जिस खेत में गोभी (अर्थात बेकार घास) उगने लगे, वह खेत अनुपजाऊ माना जाता है. ऐसे खेत से अन्न की आशा नहीं की जा सकती.
घाघ कहते हैं कि जो समय पर खेती करता है और समय पर आघात करता है (कार्य करता है), वह कभी नहीं हारता. समय का ध्यान रखने वाला किसान ही अंततः सफल होता है.
इस कहावत में घाघ स्पष्ट करते हैं कि खेती का लाभ केवल उसी को मिलेगा जो स्वयं हल जोतता है, यानी खुद मेहनत करता है. यदि वह खुद खेती नहीं करेगा, तो उसका लाभ किसी और को मिल जाएगा.
घाघ एक अत्यंत विद्वान व्यक्ति थे, जो हर समस्या का समाधान तुरंत कहावत के रूप में प्रस्तुत कर देते थे. उन्हें ज्योतिष का भी अच्छा ज्ञान था, साथ ही लोक व्यवहार और खेती-बाड़ी का अद्भुत अनुभव था. इसी अनुभव और ज्ञान के आधार पर उन्होंने धान की खेती को लेकर कई कहावतें कही हैं, जिनमें से कई आज भी पूरी तरह प्रासंगिक बनी हुई हैं.
इसका अर्थ है कि अगर गेहूं की बुवाई चित्रा नक्षत्र में और धान की रोपाई आद्रा नक्षत्र में हो जाए, तो गेहूं में "गेरूई" (गिरवी नामक रोग) नहीं लगेगा और धान को तेज धूप भी नहीं झेलनी पड़ेगी. इससे दोनों फसलों की उपज अच्छी होगी.
मतलब अगर धान में फूल आने के समय उसका रंग काला पड़ने लगे और उसे पानी नहीं मिले, तो वह अधपके या जवानी में ही सूखकर मर जाता है. यह कहावत धान के फूलने के समय सिंचाई के महत्व को दर्शाती है.
अर्थात, धान, पान और केला – ये तीनों फसलें पानी पर अत्यधिक निर्भर होती हैं. यदि इन्हें भरपूर पानी मिले तो उपज उत्तम होती है.
1. ढेले ऊपर चील जो बोलै, गली-गली में पानी डोलै।
अर्थ: जब चील मिट्टी के ढेले या ऊंचाई पर बैठकर बोलने लगे, तो समझो भारी वर्षा होगी और हर गली-नुक्कड़ पानी से भर जाएगा.
2. दिन को बादर, रात को तारे; चलो कंत, जहां जीवैं बारे।
यदि दिन में बादल छाए हों और रात में आसमान साफ हो, तारे चमकते दिखें, तो यह सूखे के लक्षण हैं. ऐसे में परिवार को ऐसी जगह ले जाना चाहिए जहां जीवन यापन संभव हो.
3. माघ पूस जो दखिना चलै, तो सावन के लक्षण भलै।
यदि माघ और पौष के महीनों में दक्षिण दिशा की हवा चले तो सावन में अच्छी वर्षा के संकेत माने जाते हैं.
4. दिन में गर्मी, रात में ओस; कहै घाघ, वर्षा सौ कोस।
यदि दिन में तेज गर्मी हो और रात में ओस गिरे, तो घाघ कहते हैं कि वर्षा अभी बहुत दूर है — सौ कोस की दूरी पर.
5. जेठ मास जो तपै निरासा, तो जानो बरखा की आसा।
यदि जेठ के महीने में भीषण गर्मी पड़े, तो इसे अच्छी वर्षा की आशा के रूप में देखा जाता है.
6. पूरब धनु, ही पश्चिम भान; घाघ कहैं, बरखा नियरात।
पूर्व दिशा में इंद्रधनुष और पश्चिम दिशा में सूर्य हो, तो घाघ कहते हैं कि वर्षा बहुत जल्द होगी.
ये भी पढ़ें-
खरीफ फसलों की बुवाई के 12-15 दिन बाद जरूरी करें ये काम, कृषि एक्सपर्ट ने दी जरूरी सलाह
पंजाब में जीएम मक्का पर बवाल, एक्टिविस्ट्स बोले, NoC वापस ले सरकार, यूनिवर्सिटी ने कहा-हम तो करेंगे
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today