Carbon Credit: भविष्य की ‘क्रिप्टो करंसी’ बन सकता है कार्बन क्रेडिट, इस राज्य के किसान अभी से कमा रहे

Carbon Credit: भविष्य की ‘क्रिप्टो करंसी’ बन सकता है कार्बन क्रेडिट, इस राज्य के किसान अभी से कमा रहे

Carbon Credit: किसानों को कमाई के लिए भविष्य में कार्बन क्रेडिट एक तरह का क्रिप्टो करंसी साबित हो सकता है. अगर किसान खेती में ऐसी पद्धतियां अपनाएं जो पर्यावरण के अनुकूल हों और ग्रीन हाउस गैंसों का उत्सर्जन कर करें. ये कार्बन क्रेडिट भारत में एक राज्य के किसान पहले से कमा रहे हैं.

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भविष्य की ‘क्रिप्टो करंसी’ बन सकता है कार्बन क्रेडिट, इस राज्य के किसान अभी से कमा रहे कार्बन क्रेडिट किसानों के लिए कमाई का जरिया (फोटो- AI)

जब भी हम क्रिप्टो करंसी का नाम सुनते हैं तो अमूमन ये पूरी तरह से आधुनिक और डिजिटल मुद्रा के ही तौर पर देखी जाती है. लेकिन अगर आपसे ये कहा जाए कि हमारे किसान भी खेतों में कुछ नई पद्धतियां अपनाकर एक तरह की क्रिप्टो करंसी कमा सकते हैं और ये क्रिप्टो करंसी है कार्बन क्रेडिट. ये भी आने वाले वक्त में एक तरह की क्रिप्टो जैसी मुद्रा बन सकती है, जिसे किसान आराम से कमा सकते हैं. आप जानकर हैरान होंगे कि भारत में तेलंगाना के किसान अभी से कार्बन क्रेडिट कमा रहे हैं. इससे भी ज्यादा हैरानी इस बात की ये कार्बन क्रेडिट धान की खेती से कमाया जा रहा है, ऐसी फसल जो पर्यावरण के लिहाज से अच्छी नहीं मानी जाती है.

किसान कैसे कमाएं कार्बन क्रेडिट?

होता ये है कि जब भी कोई किसान ऐसी खेती या खेती पद्धति अपनाता है जिससे वातावरण में CO₂ या ग्रीन हाइस गैसों का उत्सर्जन घटता है या कार्बन अवशोषण बढ़ता है, इससे किसान को कार्बन क्रेडिट मिल सकते हैं. उदाहरण के तौर पर ऑर्गेनिक फार्मिंग, नो-टिल खेती, अधिक पेड़ लगाना, बायोचार का उपयोग जैसी कई चीजें हैं जो किसानों के लिए कार्बन क्रेडिट कमाने का अच्छी तरीका बन सकती हैं. अगर यूनिट में बात करें तो अगर 1 टन CO₂ की कटौती या अवशोषण होता है तो उस किसान को 1 कार्बन क्रेडिट दिया जा सकता है. फिर आगे जाकर किसान इस क्रेडिट को निजी कंपनियों, सरकारों या व्यक्तियों को बेच सकता है, जो अपने कार्बन उत्सर्जन की भरपाई करना चाहते हैं. इसके एवज में किसान को अच्छा पैसा भी मिलेगा.

ये किसान कमा रहे कार्बन क्रेडिट

धान की फसल हाई मीथेन उत्सर्जन और लाखों लीटर पानी की खपत के कारण पर्यावरण के अनुकूल नहीं मानी जाती. मगर इसी धान की फसल ने तेलंगाना के किसान कार्बन क्रेडिट कमा रहे हैं. दरअसल, जलवायु-प्रौद्योगिकी स्टार्टअप, सो एंड रीप एग्रो ने धान की खेती में पानी की खपत को उल्लेखनीय रूप से कम करने के तरीके विकसित किए हैं, जिससे मीथेन उत्सर्जन को कम करने में मदद मिली है. बिजनेस लाइन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, लगभग 8,000 किसानों (जो शुरू में इस कार्यक्रम में शामिल हुए थे) को प्रति हेक्टेयर 2,500 रुपये की अतिरिक्त आय प्राप्त करने में मदद करने के अलावा, इस नई विधि ने उनकी पैदावार बढ़ाने में भी मदद की, क्योंकि इससे पौधों की जड़ें मजबूत हुईं, जिसके परिणामस्वरूप पोषक तत्वों और पानी का बेहतर इस्तेमाल हुआ.

प्रत्येक हेक्टेयर धान की फसल दो फसल चक्रों में प्रति वर्ष 12 टन मीथेन उत्पन्न करती है. यह उच्च उत्सर्जन दर मुख्यतः बीज बोने से लेकर कटाई तक (आमतौर पर 120-140 दिन) लगातार जलभराव के कारण होती है. इस नई विधि से किसानों को पानी की खपत में 60 प्रतिशत की कमी करने और प्रति वर्ष 6-7 टन प्रति हेक्टेयर मीथेन उत्सर्जन कम करने में मदद मिली. उत्सर्जन में यह कमी महत्वपूर्ण है और इस परियोजना को कार्बन क्रेडिट के लिए योग्य बनाती है.

किसानों के लिए नया भविष्य

कार्बन क्रेडिट किसानों के लिए उनकी उपज के अलावा एक नई कमाई का जरिया बन सकता है. ये कार्बन क्रेडिट हाथों-हाथ बिक जाएगा. मजे की बात है कि किसान गांव में बैठकर भी अपने कार्बन क्रेडिट अंतरराष्ट्रीय खरीदार को बेच सकता है. इसके साथ ही अगर कार्बन क्रेडिट का भाव बढ़ा, तो किसान का “डिजिटल कार्बन वॉलेट” की वैल्यू भी बढ़ सकता है, एक दम क्रिप्टो करंसी की तरह.

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