सिर्फ शिमला में उगती है शिमला मिर्च? जानिए इसके नाम के पीछे की कहानी और उगाने का तरीका

सिर्फ शिमला में उगती है शिमला मिर्च? जानिए इसके नाम के पीछे की कहानी और उगाने का तरीका

मैगी, पास्ता और अन्य तरह के स्नैक्स और टेस्टी सब्जियां बनाने में शिमला मिर्च का उपयोग खूब किया जा रहा है. कई लोगों का मानना है कि ये शिमला से आती है इसलिए इसका नाम शिमला मिर्च पड़ा. दरअसल ये बात इससे थोड़ा हटकर है. आइए जानते हैं.

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सिर्फ शिमला में उगती है शिमला मिर्च? जानिए इसके नाम के पीछे की कहानी और उगाने का तरीकाशिमला मिर्च का नाम कैसे पड़ा?

हमारे देश में खाने-पीने के शौकीन हर जगह मिल जाएंगे. खाने के अलावा खाना पकाने का भी गजब का क्रेज देखने को मिलता है. आजकल ज्यादा लोग स्नैक्स या सुबह के नाश्ते में शिमला मिर्च का यूज करते हैं. शिमला मिर्च विटामिन सी सहित कई पोषक तत्वों से भरपूर होती है इसलिए इसको खाना हेल्थ के लिहाज से भी अच्छा माना जाता है. हालांकि सबसे अधिक चर्चा इसके नाम को लेकर होती है. कई लोगों का मानना है कि शिमला मिर्च हिमाचल की राजधानी शिमला से आती है इसलिए इसका नाम शिमला मिर्च है. लेकिन ये बात पूरी तरह सच नहीं है, आइए जानें इसका नाम कैसे पड़ा.

शिमला मिर्च का नाम कैसे पड़ा? 

कई रिपोर्ट्स के अनुसार वास्तव में यह मिर्च भारत की मूल सब्जी नहीं है. शिमला मिर्च को कैप्शिकम कहते हैं और ये  मेक्सिको और दक्षिण अमेरिका से आई थी. बताते हैं कि 16वीं सदी में पुर्तगाली व्यापारियों के जरिए ये भारत में पहुंची थी. कुछ लोगों का मानना है कि ये सिर्फ शिमला में होती है इसलिए इसके नाम में शिमला जुड़ा है, जबकि ये बात पूरी तरह से सच नहीं है. 

दरअसल शिमला मिर्च की खेती के लिए ठंडी जलवायु की जरूरत होती है. अंग्रेजों ने भारत में इसकी खेती की शुरुआत खासतौर पर हिमाचल प्रदेश में कराई. कैप्शिकम की खेती के लिए वहां की जलवायु उपयुक्त मानी जाती थी. उस समय शिमला अंग्रेजों की गर्मियों की राजधानी थी इसलिए वहां से आने वाली कैप्शिकम को शिमला मिर्च कहा जाने लगा. आज के समय में शिमला मिर्च हिमाचल, उत्तराखंड, हरियाणा, कर्नाटक और महाराष्ट्र में भी खासतौर पर होने लगी है.

शिमला मिर्च की खेती का तरीका

शिमला मिर्च की खेती के लिए ठंडी जलवायु अच्छी मानी जाती है. पहाड़ों में उगाई जाने वाली शिमला मिर्च अब पॉलीहाउस और नेट हाउस के भीतर मैदानी इलाकों में भी उगाई जाने लगी है. आइए जान लेते हैं कि इसकी खेती कैसे की जाती है?

  • इसके लिए भुरभुरी, उपजाऊ और अच्छी जल निकास वाली दोमट मिट्टी अच्छी रहती है.
  • बुवाई से पहले 20-25 टन प्रति हेक्टेयर गोबर की खाद डालना चाहिए.
  • एक हेक्टेयर के खेत में 150–200 ग्राम बीज पर्याप्त माने जाते हैं.
  • करीब 1 महीने बाद पौधे 4–5 पत्तियों वाले हो जाएं तो खेत या पॉलीहाउस में रोपाई करें.
  • बता दें कि पौधों के बीच दूरी 45*45 सेमी का गैप जरूर रखें.
  • पौधों में नमी बनाए रखने के लिए गर्मी में 4–5 दिन पर और सर्दी में 8–10 दिन पर सिंचाई करें.
  • पौधों को रस्सियों से सहारा दें ताकि फल लगने पर वे जमीन की ओर ना झुकें.
  • रोपाई के 60–70 दिन बाद तुड़ाई शुरू हो जाती है, हरी और रंगीन दोनों तरह के फल बिकते हैं. 
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