अक्टूबर का महीना आते ही धान की कटाई की तैयारी शुरू हो जाती है, लेकिन इस बार मन में बदलता मौसम और कीटों का खतरा एक बड़ी चिंता बना हुआ है. कभी बहुत ज्यादा गर्मी, कभी बिना समय की बारिश और हवा में नमी बढ़ने से धान की फसल में कीड़े और बीमारियां लगने का डर बढ़ गया है. यह स्थिति न केवल फसल की पैदावार कम कर सकती है, बल्कि दानों की गुणवत्ता पर भी बुरा असर डाल सकती है. एक अच्छी और मुनाफे वाली फसल के लिए यह जरूरी है कि मौसम के अनुसार खेती के नए तरीके अपनाएं और फसल की सुरक्षा के लिए सही कदम उठाएं. ऐसे अहम समय में, धानुका एग्रीटेक ने किसानों को कुछ खास सुझाव दिया है जिससे मेहनत की फसल को हर खतरे से बचा सकें और हेल्दी और सुरक्षित उत्पाद तैयार हो सके.
आजकल बारिश का कोई भरोसा नहीं रहा, कभी खेतों में पानी भर जाता है तो कभी सूखे की स्थिति बन जाती है. ऐसे में हमें पानी के इस्तेमाल का तरीका बदलना होगा. खेत में हर समय पानी भरकर रखने की जगह "बारी-बारी से सिंचाई" (AWD) तकनीक अपनाएं. इससे पानी की बचत होती है, जमीन में नमी का संतुलन बना रहता है और कीड़ों का हमला भी कम होता है. इसके अलावा, खेत को लेजर तकनीक से समतल (लेजर लैंड लेवलिंग) कराने से पानी पूरे खेत में बराबर फैलता है. आजकल खेती में ड्रोन का इस्तेमाल एक बड़ा बदलाव ला रहा है. ड्रोन से कीटनाशक का छिड़काव करने पर दवा हर पौधे तक सही मात्रा में और तेज़ी से पहुंचती है. इससे समय, मेहनत और संसाधन तीनों की बचत होती है. साथ ही, मोबाइल पर खेती से जुड़ी सलाह और सेंसर आधारित निगरानी से किसान सही समय पर सही फैसला ले सकते हैं.
धान पकने के समय कुछ कीड़े और बीमारियां सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं. इनमें तना छेदक, भूरा माहू (BPH), गॉल मिज और पत्ती लपेटक जैसे कीट प्रमुख हैं. वहीं, ब्लास्ट, शीथ ब्लाइट और बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट जैसी बीमारियां फसल को बर्बाद कर सकती हैं. इनसे बचने के लिए सिर्फ रासायनिक दवाओं पर निर्भर रहना सही नहीं है. इसके लिए एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM) अपनाना सबसे अच्छा उपाय है.
इसका मतलब है कि हम रोकथाम से लेकर इलाज तक, हर तरीका अपनाएं. खेत में फेरोमोन और लाइट ट्रैप लगाकर इस बात पर नज़र रखें कि कौन-से कीट आ रहे हैं. इससे खतरा बढ़ने से पहले ही आपको जानकारी मिल जाएगी. शुरुआत में नीम पर आधारित उत्पादों या अन्य जैविक कीटनाशकों का प्रयोग करें. ये पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाते. अगर कीटों का हमला ज़्यादा हो, तो भरोसेमंद कीटनाशकों का प्रयोग करें जो पौधे के अंदर जाकर उसे लंबे समय तक सुरक्षा देते हैं. बीमारियों से बचाव के लिए दोहरी क्षमता वाले फफूंदनाशी चुनें, जो बीमारी को फैलने से रोकते हैं.
फसल की ताकत उसकी जड़ों और मिट्टी से ही आती है. अगर मिट्टी स्वस्थ होगी, तो पौधा भी मजबूत बनेगा और उस पर कीट-बीमारियों का असर कम होगा. खेत में हरी खाद, गोबर की खाद जैविक खाद और बायोफर्टिलाइजर का इस्तेमाल करें. यह मिट्टी को उपजाऊ बनाता है और फायदेमंद सूक्ष्म जीवों की संख्या बढ़ाता है. फसल में जिंक और आयरन जैसे जरूरी पोषक तत्वों की कमी न होने दें. इनकी सही मात्रा से बालियों में दाने खाली नहीं रहते और उनका भराव अच्छी तरह होता है.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today