बिहार के मिथिलांचल क्षेत्र में मखाना की फसल तैयार हो चुकी है और किसान अब इसकी हार्वेस्टिंग में जुट गए हैं. तालाबों और खेतों से बीज (गुरिया) निकालने का काम शुरू हो गया है, जो जुलाई मध्य तक पूरे जोर पर होगा. हालांकि, इस बार मखाना की कीमत को लेकर किसानों और विशेषज्ञों की राय अलग-अलग है.
राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र, दरभंगा के वैज्ञानिक इंदु शेखर सिंह के मुताबिक इस बार मखाना की फसल अच्छी है, उत्पादन भी बेहतर होने की उम्मीद है. मिथिलांचल के करीब 10 जिलों में मखाना की खेती का रकबा पिछले साल के मुकाबले 25 से 30 प्रतिशत तक बढ़ा है. फिलहाल लगभग 35,000 हेक्टेयर क्षेत्र में मखाना की खेती हो रही है. उन्होंने बताया कि जिन किसानों ने फरवरी में बुवाई की थी, उन्होंने बीज निकालना शुरू कर दिया है, जबकि मार्च और अप्रैल में बुवाई करने वालों की हार्वेस्टिंग जुलाई और अगस्त में होगी. हालांकि कुछ क्षेत्रों में फसल को गलन रोग से नुकसान हुआ है. दरभंगा के किसान धीरेंद्र कुमार सिंह ने बताया कि बढ़े तापमान की वजह से उनके खेतों में लगभग 70 प्रतिशत तक मखाना की फसल खराब हो गई.
मखाना उद्यमी सरवन कुमार का कहना है कि हाल के वर्षों में मखाना की मांग तेजी से बढ़ी है. मिथिलांचल के साथ-साथ अन्य जिलों में भी मखाना की खेती का विस्तार हुआ है, और इसके साथ ही देश-विदेश में इसकी मांग भी बढ़ी है. इसे देखते हुए इस साल मखाना के दाम पिछले साल की तरह ही रहने की संभावना है. वर्ष 2024-25 में मखाना बीज 35,000 से 40,000 रुपये प्रति क्विंटल तक बिका, जबकि इसका लावा 1,000 से 4,000 रुपये प्रति किलो तक विभिन्न स्थानों पर बिका. तुलनात्मक रूप से, 2023-24 में मखाना बीज 15,000 से 18,000 रुपये प्रति क्विंटल और लावा अधिकतम 1,200 रुपये प्रति किलो के आसपास रहा. वहीं, 2021-22 में लावा 400 से 1,000 रुपये प्रति किलो के बीच बिका था.
उद्यमी सरवन कुमार के अनुसार, देश में मखाना की खेती का लगभग 85 प्रतिशत बिहार में होता है, लेकिन 10 में से 8 कंपनियां मखाना का वैल्यू एडिशन अन्य राज्यों में करती हैं. बिहार में मखाना की खेती से लेकर लावा तैयार करने तक का काम होता है, लेकिन पैकेजिंग अन्य राज्यों के नाम से होती है. इस मामले में राज्य के उद्योग विभाग को विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है, क्योंकि मखाना को अब किसी पहचान की जरूरत नहीं है.
राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक इंदु शेखर सिंह का कहना है कि भविष्य में मखाना बोर्ड के गठन के बाद मखाना के दाम, वैल्यू एडिशन और बाजार से जुड़े कार्यों में काफी सुधार होगा. साथ ही, अब मखाना की खेती और निर्यात से संबंधित डेटा आसानी से उपलब्ध होगा, क्योंकि इसका HSN कोड घोषित हो चुका है.
दरभंगा जिले के रहने वाले किसान धीरेंद्र कुमार सिंह कहते हैं कि बीते दिनों जिस तरह से तापमान बढ़ा था. उसके बाद से कई खेतों में मखाना की फसल में गलन की समस्या देखने को मिली. करीब 70 प्रतिशत तक फसल बर्बाद हो गई. हालांकि, इस बार भी मखाना का दाम पिछले साल को तरह रहने की उम्मीद है. हालांकि, किसान नेता महादेव सहनी कहते हैं कि इस साल खेती का रकबा बढ़ने के साथ उत्पादन भी पिछले साल की तुलना में अधिक होने की उम्मीद है. जिसके बाद दाम कम मिलने की आशंका है क्योंकि मखाना के दाम पर सरकार का नहीं बल्कि निजी व्यापारी और दलालों का कब्जा है.
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