देश के अधिकतर किसान अपनी बंजर होती जमीन को बचाने के लिए परेशान हैं, क्योंकि रासायनिक खाद और कीटनाशक के अधिक प्रयोग से जमीन अपनी उर्वरक शक्ति खोती जा रही है. ऐसे में किसान खेतों को बचाने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं. इसी मुश्किल स्थिति का सामना करने के लिए कुछ किसान ऐसे तरीके भी सामने ला रहे हैं जो काफी उपयोगी साबित हो रहे हैं. इन किसानों ने रासायनिक खाद और कीटनाशकों के इस्तेमाल का तोड़ निकाला है. ऐसे ही एक किसान हैं विवेक कुमार. विवेक की उम्र 25 साल है. वह बिहार के समस्तीपुर के रहने वाले हैं. इन्होंने घर में मिलने वाले सामान से जीवामृत, बीजामृत और जैविक चटनी बनाना शुरू कर दिया है. विवेक के साथ ही प्रदेश के कई और किसान भी हैं जो इस तरीके से खेती करके लाभ कमा रहे हैं.
किसान विवेक अपने तीन एकड़ खेतों में सब्जियों की खेती करते हैं. उन्होंने बताया कि पिछले तीन साल से दो एकड़ जमीन में प्राकृतिक खेती और जैविक खेती कर रहे हैं. इससे फसलों की गुणवत्ता में सुधार आया है. साथ ही मिट्टी और उसकी सेहत में भी सुधार हुआ है. इससे उन्हें उत्पादन और आय में भी वृद्धि हुई है.
वैशाली की रहने वाली विनीता देवी ने बताया कि वह भी जीवामृत, बीजामृत और जैविक चटनी बनाकर खेती करतीं हैं. इससे उन्हें खेती करने में कम लागत आती है. आगा ख़ा ग्राम संवर्धन कार्यक्रम के तहत उन्हें जीवामृत, बीजामृत और जैविक चटनी बनाने का प्रशिक्षण दिया गया है.
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इसको लेकर कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि रासायनिक खाद के इस्तेमाल से लोगों को कैंसर, पेट से संबंधित और कई तरह की बीमारियों से जूझना पड़ रहा है. इससे बचने के लिए किसानों को जैविक और प्राकृतिक खेती करने की आवश्यकता है. वैज्ञानिकों ने कहा कि फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए प्राकृतिक रूप से मौजूद चीजों का इस्तेमाल करना चाहिए खासकर जीवामृत, बीजामृत और जैविक चटनी का प्रयोग करना चाहिए.
बीजामृत गोमूत्र, गुड़ बेसन से बनाते हैं. खेत में बीज लगाने से पहले बीजामृत का इस्तेमाल किया जाता है. वहीं जीवामृत, सड़े हुए केले, गौमूत्र, गुड़ और गोबर से बनाई जाती है. इसका प्रयोग खेतों में छिड़कने के लिए किया जाता है. इसे खेतों में छिड़कने से खेतों की उर्वरक शक्ति बनी रहती है. साथ ही फसलों का अधिक उत्पादन होता है. जैविक चटनी बनाने के लिए आठ लीटर गुनगुने पानी में आधा किलो लहसुन, आधा किलो प्याज, आधा किलो हरी मिर्च और आधे अदरक को कूटकर चटनी का घोल बनाया जाता है. वहीं इसका प्रयोग खेतों में कीड़े-मकौड़ों को मारने के लिए किया जाता है.
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