इथेनॉल बनाने और उसकी मात्रा अधिक से अधिक बढ़ाने में सरकारी महकमा लगा हुआ है. पूरा सरकारी सिस्टम इस काम को धार देने में जुटा है. इसी में एक है इथेनॉल ब्लेंडिंग का 20 फीसद का लक्ष्य. यहां ब्लेंडिंग का सीधा मतलब इथेनॉल मिक्सिंग से है जिसे पेट्रोल में मिलाया जाता है. सरकार पेट्रोल में 20 परसेंट इथेनॉल मिलाने की दिशा में तेजी से काम कर रही है. देश की कुछ जगहों पर इसे शुरू भी किया गया है. लेकिन यह लक्ष्य शत-प्रतिशत तभी हासिल किया जा सकेगा जब उतनी बड़ी मात्रा में इथेनॉल का उत्पादन होगा. अभी तक यह इथेनॉल गन्ना, चीनी या चावल से बन रहा है. लेकिन यह काफी नहीं है. इसलिए विकल्प के तौर पर मक्के को भी देखा जा रहा है. आने वाले समय में मक्के से भी इथेनॉल बनाने का काम होगा.
सरकार का मानना है कि मोलासेस आधारित फैक्ट्रियां पूरे इथेनॉल उत्पादन का लक्ष्य हासिल नहीं कर पाएंगी. अभी तक का नियम ये है कि इथेनॉल बनाने के लिए गन्ने का सबसे अधिक सहारा लिया जाता है. इसके लिए शुगरकेन कंट्रोल ऑर्डर का प्रावधान है. यह ऑर्डर कहता है कि कोई किसान जितना भी गन्ना बेचना चाहे, उसकी खरीद मिलों के जरिये की जाएगी. ऑर्डर यह भी कहता है कि केंद्र ने गन्ने की जो कीमत तय की है, उससे कम दाम पर किसी भी सूरत में किसान का गन्ना नहीं खरीदा जाएगा. सरकार ने चीनी के लिए एक मिनिमम सेलिंग प्राइस भी तय किया है ताकि उससे मिलने वाला पैसा गन्ना किसानों को दिया जा सके.
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इथेनॉल उत्पादन के बारे में केंद्रीय खाद्य सचिव संजीव चोपड़ा कहते हैं, गन्ने का उत्पादन बढ़ाने की एक सीमा है और इथेनॉल की आधी मात्रा अनाज आधारित फैक्ट्रियों पर निर्भर करती है. अगर सरकार कहती है कि 1300 करोड़ लीटर इथेनॉल उत्पादन का लक्ष्य (20 फीसद ब्लेंडिंग का टारगेट पूरा करने के लिए) रखा गया है, तो इसका अर्थ हुआ कि आधी मात्रा चीनी आधारित फैक्ट्रियों से और आधा हिस्सा अनाज आधारित कारखानों से आएगा.
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खाद्य सचिव संजीव चोपड़ा कहते हैं, गन्ने के उत्पादन की भी एक सीमा है जब तक कि उसकी खेती न बढ़ाई जाए. अभी तक जितने रकबे में गन्ने की खेती हो रही है, उससे इथेनॉल की जरूरत पूरी नहीं हो सकती. दूसरी ओर, अनाज आधारित कारखानों पर इथेनॉल के लिए पूरी तरह से निर्भर नहीं रह सकते. ये कारखाने फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया यानी कि FCI से सब्सिडी पर अनाज खरीदते हैं और उससे इथेनॉल बनाकर सरकार को बेचते हैं.
अभी चावल का भाव औसतन 38 रुपये किलो चल रहा है जबकि एफसीआई इथेनॉल बनाने वाली डिस्टीलरी को 20 रुपये के रेट पर चालव बेचता है. चोपड़ा के मुताबिक यह मॉडल इथेनॉल इंडस्ट्री को बनाए रखने के लिए है, न कि इसे हमेशा के लिए कारगर मॉडल मान सकते हैं. अगर इथेनॉल की मात्रा को बढा़ना है तो देश में मक्के की उपज को भी बढ़ाना होगा. अभी मक्के का उत्पादन 340 लाख टन के आसपास होता है जिसे बढ़ाकर 420 लाख टन से अधिक तक ले जाना होगा. मक्के का इतना उत्पादन होगा तभी इथेनॉल ब्लेंडिंग के 20 फीसद लक्ष्य को हासिल किया जा सकेगा.
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