भारत में उगाई जाने वाली सभी फसलों की अपनी अलग पहचान होती है. कई फसलें इंसानों के लिए तो कई फसलें पशुओं के लिए उगाई जाती हैं. ये सभी फसलें अपनी बेहतर क्वालिटी और फायदों के लिए मशहूर होती हैं. ऐसी ही एक फसल है जिसकी वैरायटी का नाम मसकावी है. दरअसल, ये बरसीम की एक खास किस्म है. पशुओं के चारे वाली फसलों में बरसीम एक महत्वपूर्ण फसल है. वहीं, बरसीम की फसल को पशुओं के लिए हरे चारे के रूप में उगाया जाता है. पशुओं के लिए बरसीम एक पौष्टिक आहार होता है. साथ ही पशुओं को ये चारा खिलाने से उनके दूध में बढ़ोतरी भी होती है. ऐसे में आइए जानते हैं बरसीम की मसकावी की खासियत. इसके अलावा ये भी जानेंगे कि बरसीम की 5 उन्नत वैरायटी कौन सी हैं?
मसकावी: चारा फसलों में मसकावी बरसीम की एक प्रमुख उन्नत किस्म है. इस किस्म की खेती करने पर किसानों को 30 से 35 टन प्रति एकड़ हरा चारा मिल जाता है. वहीं, इसकी खेती के लिए अक्टूबर का महीना बेस्ट होता है. इस अवधि में इस किस्म को बोने से अधिकतम पैदावार मिलती है. साथ ही इसकी खेती के लिए दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है.
वरदान: इस किस्म की खेती उत्तर भारत के राज्यों में अधिक की जाती है. इस किस्म की बुवाई के बाद 4 से 5 बार इसकी कटाई की जा सकती है. वहीं, प्रति एकड़ खेत से 32 से 40 टन तक हरे चारे की प्राप्ति होती है.
जवाहर-1: यह बारिश और ठंड के मौसम में खेती करने के लिए उपयुक्त किस्मों में से एक है. इसके पौधों की ऊंचाई 1 से 1.5 फीट होती है. वहीं, रोपाई के लगभग 40 से 50 दिनों बाद इसकी पहली कटाई की जा सकती है. इस किस्म की प्रति एकड़ भूमि में खेती करने पर प्रत्येक कटाई से करीब 7 टन उत्पादन मिलता है.
बी एल-42: इस किस्म की खेती ठंड के साथ गर्मी के मौसम में भी की जा सकती है. अगेती पैदावार पाने के लिए यह उपयुक्त किस्म है. बुवाई के 40 दिनों बाद इस किस्म की पहली कटाई की जा सकती है. वहीं, इसकी खेती से प्रति एकड़ जमीन से 52 टन तक हरे चारे की उपज होती है.
जे एच बी-146: इस किस्म को बुंदेलखंड बरसीम 2 के नाम से भी जाना जाता है. इस किस्म के पौधों में 20 प्रतिशत तक प्रोटीन की मात्रा होती है. इस किस्म के बुवाई के 45-50 दिनों बाद यह पहली कटाई के लिए तैयार हो जाता है. प्रति एकड़ भूमि में खेती करने पर प्रत्येक कटाई से करीब 8 टन उत्पादन मिलता है.
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